Dwarka Expressway : तीन-चार माह में हो पूरा हो जाएगा द्वारका एक्सप्रेसवे : गडकरी

Dwarka Expressway
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स्वचालित होगा टोल संग्रह गडकरी ने बृहस्पतिवार को कहा कि एक्सप्रेसवे का काम चार पैकेज में पूरा होगा। द्वारका एक्सप्रेसवे पर टोल संग्रह का काम पूरी तरह से स्वचालित होगा। पूरी परियोजना दक्ष परिवहन प्रणाली (आईटीएस) से युक्त होगी। द्वारका एक्सप्रेसवे की कुल लंबाई 29 किलोमीटर है। इसमें 18.9 किलोमीटर हरियाणा में जबकि शेष 10.1 किलोमीटर दिल्ली में है।Dwarka Expressway
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अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिये भी उपलब्ध होगी संपर्क सुविधा एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 के पास दिल्ली के महिपालपुर में शिव मूर्ति के पास से शुरू होगा। फिर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या आठ पर गुरुग्राम खेड़की-दौला गांव के पास बने टोल प्लाजा के पास खत्म होगा। यह द्वारका की तरफ से द्वारका एक्सप्रेसवे के जरिये इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिये संपर्क सुविधा प्रदान करेगा। देश विदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देश–दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।अगली खबर पढ़ें
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ढाई लाख रूपये किलो बिकती है केसर
सेक्टर-25 में रहने वाले सेवानिवृत्त इंजीनियर रमेश गेरा ने चेतना मंच को बताया कि उनकी लैब में पैदा हुई केसर नोएडा में ही आयुर्वेद दवाओं के निर्माता 2.5 लाख प्रति किलो की दर से खरीद कर ले जाते हैं। वहीं हल्दीराम कंपनी भी उनसे केसर लेती है। उनके द्वारा पैदा किये केसर को कश्मीर की शेरे-ए-पंजाब विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने भी शुद्ध केसर का प्रमाण-पत्र दिया है।
कमरे में कैसे करते हैं केसर पैदा
कश्मीर जैसी जलवायु को नोएडा में पैदा करके वे कैसे केसर की पैदावार करते हैं ? इसके जवाब में श्री गेरा ने बताया कि वे कमरे को ग्रीन हाउस में तब्दील करते हैं। इसके लिए मशीनों व उपकरण के जरिए कमरे का तापमान न्यूनतम 5 डिग्री तक करते हैं। वहीं आद्रता का स्तर 85-90 तक रखते हैं। चूंकि केसर की खेती के लिए प्रकाश की न्यूनतम आवश्यकता होती है। इसलिए कमरे में प्रकाश की व्यवस्था 200-600 लक्स तक रखते हैं।
उन्होंने बताया कि वे मिटटी रहित हाईड्रोपोनिक्स तकनीक के जरिए केसर की पैदावार करते हैं। कमरे में उन्होंने कई लेयर के मचान बनाये हैं। यहां पर वे कश्मीर से केसर के बल्व (सीडस) लाकर लगाते हैं। 3-4 माह में केसर पूरी तरह तैयार हो जाता है। बाद में वे केसर के बल्व को ग्रोबैग में मिटटी में रख देते हैं जिससे दोबारा बीज तैयार हो सके। नवंबर से जुलाई तक सीडस तैयार हो जाता है। इसके बाद अगस्त से नवंबर तक वे फिर हाईड्रोपोनिक्स तकनीक के जरिए केसर पैदा करते हैं।
उन्होंने बताया कि चूंकि उनका मुख्य पेशा विपरीत जलवायु में केसर पैदा करने के लिए ट्रेनिंग देना है। वे व्यवसायिक व आर्थिक लाभ के लिए यह काम नहीं कर रहे हैं। इसलिए वे न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों के लोगों को वे अपनी तकनीक की ट्रेनिंग देते हैं।
कैसे करें असली केसर की पहचान
रमेश गेरा ने बताया कि कश्मीर में जो अधिकांश केसर बाजारों में बिकती है उसमें 90 फीसदी मिलावटी होता है। उसकी पहचान के लिए कांच के ग्लास में एक चुटकी केसर डालें यदि पानी लाल या केसरिया रंग का हो जाए तो केसर मिलावटी है। यदि ये पीला या गोल्डन रंग छोड़े तो समझें केसर असली है।
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