Saturday, 20 April 2024

Noida News : सुरक्षा और पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग कर रहे हैं कानाफूसी

– राजकुमार चौधरी Noida : नोएडा। ‘नौ दिन चले अढाई कोस।’ यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। लेकिन, मौजूदा…

Noida News : सुरक्षा और पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग कर रहे हैं कानाफूसी

– राजकुमार चौधरी

Noida : नोएडा। ‘नौ दिन चले अढाई कोस।’ यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। लेकिन, मौजूदा वक्त में इसमें तब्दीली आ गई है। अब इस कहावत को यूं कहें कि ‘तीन साल चले अढाई कोस’ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। 13 जनवरी-2020 को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने जिस मकसद से गौतमबुद्ध नगर में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू किया था, शायद उसमें कामयाबी नहीं मिल रही है। जिले में हजारों की संख्या में छोटी-बड़ी और मल्टीनेशनल कंपनियां हैं। देश ही नहीं, दुनियाभर के लोग यहां रहे रहे हैं। यह प्रदेश का शोविंडो है, यह आर्थिक राजधानी भी है। लेकिन, जब यहां सत्ताधारी पार्टी के नेता ही सुरक्षित नहीं हैं तो भला आम लोगों के मन में कितना भय होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। दरअसल, सीएम योगी आदित्यनाथ ने गौतमबुद्ध नगर में माफिया के सिंडिकेट की कमर तोड़ने के उद्देश्य से कमिश्नरेट व्यवस्था लागू की थी। लेकिन, सुरक्षा और पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अब भी कानाफूसी कर रहे हैं।

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साल-1997 में गौतमबुद्ध नगर जिला अस्तित्व में आया। देश की राजधानी दिल्ली और पड़ोसी हरियाणा प्रदेश की सीमा से लगे हुए गौतमबुद्ध नगर को उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के आर्थिक राजधानी के तौर पर भी जाना जाता है। प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार रही, ये इलाका हमेशा प्राथमिकताओं का केंद्र रहा। यहां अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक संस्थाओं की बदौलत लाखों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान हो रहे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश का कोई प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां के लोग इस महानगर में ना हों। विदेशों से आए हुए लोग भी अपने बेहतर भविष्य के लिए रोजगार के अवसर इस इलाके मे तलाश रहे हैं। एस्कॉर्ट, डीसीएम देबू, होंडा सीएल, सैमसंग, विवो, विप्रो, डेंसो, एशियन पेंट की बड़ी कंपनियां पहले से ही यहां स्थापित हैं। अब तो अडानी और अम्बानी ग्रुप, बाबा रामदेव का पतंजलि समूह भी इसी सरजमीं पर धन उपार्जन का काम करने आ रहे हैं। इन संस्थानों में लाखों लोग अपनी रोजी रोटी के लिए कार्यरत हैं।

यदि इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि यहां पिछले तीन दशकों से माफिया और उन्हें संरक्षण देने वाले संगठन का राज है। सूत्र बताते हैं मल्टीनेशनल कंपनियों में कबाड़े की खरीद फरोख्त के काम से लेकर माफिया तमाम तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं। वे खुद और अपने रहनुमाओं को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने का काम कर रहे हैं। इससे लखनऊ की बदनामी होती है।

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इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस कमिश्नरेट व्यवस्था लागू की। एडीजी रैंक के अधिकारी यहां के कमिश्नर हैं। 11 आईपीएस अफसर और 13 पीपीएस स्तर के अधिकारी पुलिस व्यवस्था को संभाल रहे हैं। 5000 से अधिक पुलिसकर्मी आम लोगों को सुरक्षित माहौल देने के लिए तैनात हैं। इसके बावजूद जनपद में माफिया का सिंडिकेट मजे से अपना काम कर रहा है। आएदिन माफियाओं द्वारा किए जा रहे आपराधिक षड्यंत्र की खबरें सामने आ रही हैं। क्या कमिश्नरेट व्यवस्था बनने के बाद माफिया का सिंडीकेट ध्वस्त हो चुका है? यह सवाल जनता के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है।

अभी हाल ही में बेखौफ बदमाशों ने भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता संचित शर्मा और मंडल अध्यक्ष महेश चंद शर्मा पर कातिलाना हमला किया। ये कार्यकर्ता खौफ के साये में जी रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब अपराधी हाईटेक पुलिस को चकमा देकर फरार हो गए और घटना के लगभग दो हफ्ते बाद भी वे पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। हालांकि पुलिस मामले का शीघ्र खुलासा करने का दावा कर रही है, लेकिन अब तक उसे कामयाबी नहीं मिली है। इस बात को लेकर पुलिस भी सवालों के घेरे में है। चर्चा तो यहां तक लग रहे हैं कि भाजपा के ही किसी नेता के इशारे पर पुलिस बार-बार अपनी थ्योरी बदल रही है, और मुख्य आरोपी को गिरफ्तार करने से कतरा रही है।

भारतीय जनता पार्टी के एक जिम्मेदार कार्यकर्ता ने नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि यह मामला केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंच चुका है। हालातों को लेकर गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारी नजर रख रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि संचित शर्मा के हमलावरों को पुलिस कब तक सलाखों के पीछे भेजती है।

इन अफसरों ने भी संभाली है यहां की कमान :

गौतमबुद्धनगर की पुलिसिंग व्यवस्था जब एक कप्तान के सहारे चलती थी, तब उत्तर प्रदेश के मौजूदा डीजीपी देवेंद्र सिंह चौहान, आरके चतुर्वेदी, आनंद कुमार, दलजीत सिंह, नवनीत अरोड़ा, पीयूष मोर्डिया, ए सतीश गणेश, लव कुमार, प्रवीण कुमार, वैभव कृष्ण, अजय पाल शर्मा, प्रीतिंदर सिंह आदि यहां के एसएसपी रहे हैं। इनमें से कई के नाम कुछ बड़ी उपलब्धियां दर्ज हैं।

ऐसे हुई नई व्यवस्था लागू :

सबसे पहले मायावती की बसपा सरकार के दौरान कमिश्नरेट व्यवस्था लागू करने की कोशिशें शुरू हुई थीं। आईएएस लॉबी की लॉबिंग के चलते यह मामला खटाई में पड़ गया था। फिर अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान इसके प्रयास तेज हुए, लेकिन सफलता नहीं मिली। साल-2017 में जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन डीजीपी जावीद अहमद से पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली के बारे में जानकारी हासिल की। कुछ दिन बाद ही जावीद अहमद का स्थानांतरण हो गया और प्रस्ताव पर काम फिर रुक गया। फिर सुलखान सिंह डीजीपी बने, लेकिन पुलिस कमिश्नरेट पर फैसला नहीं हो पाया। आखिर, जनवरी 2018 में डीजीपी बने ओमप्रकाश सिंह ने पुलिस कमिश्नरेट के लिए कवायद शुरू की और उन्हें अपने कार्यकाल के अंतिम महीने में इसमें कामयाबी भी मिल गई। 13 जनवरी 2020 को पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली अस्तित्व में आ गई। अब चर्चा है कि पुलिस कमिश्नरेट के दायरे को बढ़ाकर बुलंदशहर और गाजियाबाद का हिस्सा भी इसमें जोड़ा जाएगा।

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