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Award : डीयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. रमानाथ त्रिपाठी को भारत भारती सम्मान

Lucknow/Noida : लखनऊ/नोएडा। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा घोषित किए गए वार्षिक पुरस्कारों की खूब चर्चा हो रही है। एक ओर साहित्य जगत में पुरस्कार पाने वालों को बधाइयां मिल रहीं हैं। दूसरी ओर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चल रहा है। लोग आरोप लगा रहे हैं कि इन पुरस्कारों पर ‘अंधा बांटे रेवड़ी अपनों-अपनों को दे’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने समर्पित भाव से हिंदी की सेवा करने वाले हिन्दी की कुछ विभूतियों को सम्मानित करने की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से वर्ष-2021 के लिए सम्मान पाने वाले जिन साहित्यकारों के नाम की घोषणा की है, उनमें सर्वोच्च भारत भारती सम्मान दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. रमानाथ त्रिपाठी को दिया गया है। भारत भारती सम्मान के तहत दी जाने वाली सम्मान राशि आठ लाख रुपये है। सम्मान सूची में लखनऊ से डॉ. ओपी मिश्रा व उत्तर प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित समेत 18 साहित्यकारों के नाम शामिल हैं।

संस्थान की ओर से पांच लाख रुपये की राशि वाले सम्मान की श्रेणी में लोहिया साहित्य सम्मान देहरादून उत्तराखंड के बुद्धिनाथ मिश्र को, हिंदी गौरव सम्मान महाराष्ट्र के डॉ. विश्वास पाटिल, महात्मा गांधी साहित्य सम्मान गौतमबुद्धनगर के डॉ. रामशरण गौड़ और पंडित दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान लखनऊ के डॉ. ओम प्रकाश मिश्र को चुना गया है।

संस्थान ने साहित्य भूषण सम्मान की भी घोषण की है। यह सम्मान पाने वालों में हितेश कुमार शर्मा-बिजनौर, डॉ. रघुवीर सिंह अरविंद- अलीगढ़, डॉ. प्रीति श्रीवास्तव कबीर लखनऊ, किशन स्वरूप-मेरठ, डॉ. उमाशंकर शुक्ल- लखनऊ, डॉ. नताशा अरोड़ा- नोएडा, जयप्रकाश शर्मा- प्रयागराज, डॉ. अशोक कुमार शर्मा लखनऊ, डॉ. दयानिधि मिश्र- वाराणसी, डॉ. सभापति मिश्र- प्रयागराज, डॉ. प्रमोद कुमार अग्रवाल- झांसी, शिवानंद सिंह सहयोगी- मेरठ, डॉ. नरेश मिश्र- रोहतक, डॉ. रूपसिंह चंदेल धारुहेड़ा (हरियाणा), डॉ. सुशील सरित- आगरा, शुचि मिश्र- पुणे, विजयशंकर मिश्र भास्कर सुल्तानपुर, गिरीश पंकज-रायपुर, शिवदयाल- पटना एवं डॉ. नीरजा माधव- वाराणसी शामिल हैं।

ढाई लाख रुपये की सम्मान राशि वाले लोकभूषण सम्मान डॉ. महेंद्र भनावत-उदयपुर को, कलाभूषण सम्मान डॉ. हृदय गुप्त-कानपुर को, तथा विद्या भूषण सम्मान विजय चितौरी- प्रयागराज को दिए गए हैं। इसके अलावा पत्रकारिता भूषण सम्मान नोएडा में रहने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेता बलबीर सिंह पुंज को, प्रवासी भारतीय हिंदी भूषण सम्मान डॉ. नलिनी बलबीर को, हिंदी विदेश प्रसार सम्मान कल्पना लालजी, बाल साहित्य भारती सम्मान डॉ. फकीरचंद शुक्ला, मधुलिमये साहित्य सम्मान डॉ. विक्रम सिंह- आगरा, पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी साहित्य सम्मान अश्विनी कुमार दुबे- इंदौर और विधि भूषण सम्मान सुधा अवस्थी प्रयागराज को दिया गया है।

भारत-भारती सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान है। यह पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के माध्यम से साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सृजन एवं अनवरत हिंदी सेवा के लिए अखिल भारतीय स्तर पर यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने हिन्दी की सेवा करने वाले पुरस्कार वर्ष 1982 में शुरू किए थे। उस वर्ष यानि 1982 में पहला भारत भारती पुरस्कार महान साहित्यकार सुश्री महादेवी वर्मा को दिया गया था। उसके बाद दुर्भाग्य से आठ वर्षों तक यह पुरस्कार नहीं दिया गया। वर्ष 1990 में यह प्रतिष्ठित सम्मान प्रसिद्ध साहित्यकार धर्मबीर भारती को मिला। वर्ष 1998 में जगदीश गुप्त को, वर्ष 2001 में जानकी बल्लभ शास्त्री, वर्ष 2005 में नामवर सिंह, वर्ष 2006 में परमानंद श्रीवास्तव, वर्ष 2007 में राम दरस मिश्र, वर्ष 2008 में केदारनाथ सिंह, वर्ष 2009 में महीप सिंह, वर्ष 2010 में कैलाश वाजपेई, वर्ष 2011 में गोविंद मिश्र, वर्ष 2012 में गोपालदास नीरज, वर्ष 2013 में दूधनाथ सिंह, वर्ष 2014 में काशीनाथ सिंह, वर्ष 2015 में विश्वनाथ त्रिपाठी, वर्ष 2016 में आनन्द प्रकाश दीक्षित, वर्ष 2017 में रमेशचंद्र शाह, वर्ष 2018 में ऊषा किरण खान तथा वर्ष 2019 में डॉ. सूर्यबाला को सम्मानित किया गया था। अब वर्ष-2021 के लिए भारत भारती से दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा. रमानाथ त्रिपाठी को सम्मानित किया गया है।

पुरस्कारों की घोषणा के बाद से ही ये चर्चा का विषय बने हुए हैं। साहित्य जगत में पुरस्कारों पर मिली-जुली प्रतिक्रिया हो रही है। साहित्यकारों का एक तबका इन पुरूस्कारों का समर्थन करते हुए पुरस्कृत मित्रों को बधाइयां दे रहा है तो एक तबका ऐसा भी है जो कह रहा है कि यह तो वही बात हो गई कि ‘अंधा बांटे रेवड़ी अपनों-अपनों को दे’ यानि भाजपा की सरकार ने अपनी ही पार्टी, संगठन एवं विचारधारा के लोगों को ही ये पुरस्कार दिए हैं।

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