Noida News : भारत में आज आप जो भी विकास देख रहे हैं वह विकास किसानों के बलबूते हुआ है। बड़े बड़े उद्योग हों या भव्य आधुनिक शहर हो अथवा एयरपोर्ट सब किसानों से ली गई जमीन पर ही बने हैं। यूपी के जेवर में स्थापित हो रहा नोएडा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट (Noida International Airport) भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। इस एयरपोर्ट को बनाने के लिए आधा दर्जन गांवों को उजड़ना पड़ा है। उजड़े हुए गांवों को दूसरे स्थानों पर बसाया तो गया है किंतु नए बसे स्थानों में ढ़ेर सारी समस्याएं हैं। ऐसी ही एक समस्या का समाधान अब निकलने वाला है।
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आपको बता दें कि नोएडा व ग्रेेटर नोएडा के बाद एक नया शहर विकसित हो रहा है। इस शहर का विकास यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण यीडा कर रहा है। इस शहर का अभी तक कोई नामकरण नहीं हुआ है। इसे यमुना सिटी कहा जाता है। इसी शहर में बन रहा है भारता का सबसे बड़ा एयरपोर्ट। यह एयरपोर्ट जेवर कस्बे के पास बन रहा है। इस एयरपोर्ट से प्रभावित हुए आधा दर्जन गांवों को विस्थापित किय गया है। इन गांवों के किसानों को जेवर बांगर की जमीन पर स्थापित की गई टाउनशिप में बसाया गया है। टाउनशिप को बसे हुए तीन साल से भी अधिक हो गए हैं। अभी तक विस्थापित किसानों को मिले प्लाटों व भवनों का मालिकाना हक (रजिस्ट्री) नहीं मिला है। अब केंद्र सरकार के एक विभाग की स्वीकृति के बाद मालिकाना हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
6 गांव उजड़े प्रथम चरण में
आपको बता दें कि जेवर एयरपोर्ट को बनाने के लिए प्रथम चरण में ग्रेटर नोएडा व जेवर क्षेत्र के 6 गांवों की जमीन अधिग्रहित की गई थी। जमीनों के साथ ही पूरे के पूरे गांव भी अधिग्रहित कर लिए गए थे। गांवों को पूरा का पूरा उजाड़कर विस्थापित किया गया था। उन गांवों के नाम किशोरपुर, नंगला छीतर, रोही व उसका मजरा नगला गणेशी, दयानतपुर खेड़ा एवं नंगला शरीफ खां गांव है। इन गांवों के 3065 किसानों से 1239 हेक्टेयटर जमीन को अधिग्रहित किया गया था। साथ ही पूरे गांव विस्थापित किए गए थे। इन गांवों को विस्थापित करने के लिए जेवर के बागंर के पास एक टाउनशिप बनाकर दी है।
अब होगी रजिस्ट्री
जिन 6 गांवों के किसानों को विस्थापित किया गया था उनको वर्ष 2020 में भूखंड आवंटित किए गए थे। उन भूखंडों के आंवटन पत्र यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने जारी जारी किए थे। आंवटन पत्र मिल जाने मात्र से किसानों को मालिकाना हक नहीं मिला था। मालिकाना हक के लिए भूखंडों की रजिस्ट्री होना जरुरी थी। सभी विस्थापित 3065 किसान तीन साल से रजिस्ट्री कराने की मांग कर रहे थे। अब भारत सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग के सिविल एविएशन डिपार्टमेंट (Civil Aviation Department) ने सभी भूखंडों की रजिस्ट्री कराने की अनुमति प्रदान कर दी है।
रजिस्ट्री पर खर्च होंगे 17 करोड़ रुपये
अब आपको बता देते हैं कि जेवर एयरपोर्ट के लिए उजाड़े गए किसानों के भूखंडों की रजिस्ट्री कैसे होगी। दरअसल, जेवर बांगर की मॉर्डन टाउनशिप में विस्थापित किसानों को 1.94 लाख वर्गमीटर जमीन आवंटित की गई है। जमीन का रेट 14,500 रुपये प्रति वर्गमीटर है। जमीन की कीमत लगभग 282 करोड़ रुपये है। पांच प्रतिशत स्टांप शुल्क 14.11 करोड़ रुपये व एक फीसदी निबंधन शुल्क 2.82 करोड़ और प्रतिलिपिकरण शुल्क सहित कुल रजिस्ट्री पर कुल 16.97 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
एयरपोर्ट निर्माण के लिए गठित कंपनी, नियाल किसानों को दिए जाने वाले मालिकाना हक में आने वाले खर्चे का वहन करेगी। इसमें राज्य सरकार 37.5 प्रतिशत के हिसाब से कुल 17 करोड़ की धनराशि में से 6.36 करोड़ की धनराशि जारी कर चुकी है। नोएडा प्राधिकरण की हिस्सेदारी 37.5 प्रतिशत व ग्रेटर नोएडा 12.5 प्रतिशत व यीडा की 12.5 हिस्सेदारी के हिसाब से जल्द अपना पैसा जमा कराएंगे। तीनों प्राधिकरण की तरफ से पैसा जमा होने के बाद किसानों की रजिस्ट्री का काम शुरू कर दिया जाएगा। Noida News
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