Wednesday, 30 April 2025

नोएडा के स्मृति पार्क में करोना काल में शहीद हुए पत्रकार साथियों को नमन व श्रद्धांजलि

Smriti Park In Noida : अंजना  भागी /  2 अक्टूबर को नोएडा एनसीआर के सभी पत्रकार सेक्टर 72 ए ब्लॉक…

नोएडा के स्मृति पार्क में करोना काल में शहीद हुए पत्रकार साथियों को नमन व श्रद्धांजलि

Smriti Park In Noida : अंजना  भागी /  2 अक्टूबर को नोएडा एनसीआर के सभी पत्रकार सेक्टर 72 ए ब्लॉक के स्मृति पार्क मैं करोना काल में अपने पत्रकार साथियों द्वारा दी गई शहादत  जो कि समाज सेवा करते हुए उन्होंने दी थी को नमन व श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र हुये। शहीद होने वाले 497 पत्रकार थे जो की ऑन duty भाग दौड़ करते हुए करोना से ग्रसित हुए । यदि हम याद करें उस काल में हम वीडियो में, फिल्मों में,पुलिस को आर्मी को अन्य विभागों को जो भी करोना काल में आम लोगों की मदद कर रहे थे ,उन पर पब्लिक को फूल बरसाता देखते थे पर पत्रकारों पर फूल बरसाना शायद अभी आम जनता के जहन में नहीं आता इसलिए पूरे नोएडा एनसीआर के पत्रकार दुखी दिल से शहर के सभी पत्रकारों, परिजनों, राजनेताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को हवन में आहुति देकर दिवंगत पत्रकारों को याद कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे थे । सभी के दिल में कितना दर्द था कोई किसी से कह नहीं रहा था पर इस कार्यक्रम को पूर्ण रूप से समर्पित था ।

पत्रकार का जीवन Smriti Park In Noida

हमने कभी सोचा है पत्रकार जो की बहुत ही दबंग होता है तभी पत्रकारिता कर पता है लेकिन वह दिल से बहुत इमोशनल होता है पत्रकारिता के भी बहुत से प्रकार है जिसे हर पत्रकार बहुत दबंगई से चुनता है और बहुत मेहनत से कार्य करता है। आम जनता को जब भी उनकी आवश्यकता पड़ती है वह उनकी मदद लेते हैं ।  देखा तो यह जाता है कि अधिकांशत लोग कोशिश करते हैं कि उनकी लड़ाई पत्रकार ही लड़ ले लेकिन जब सम्मान की बात आती है तो पत्रकार पीछे ही रह जाते हैं बहुत छोटी-छोटी की घटनाओं से मैं आपको पत्रकारों से मिलाना चाहूंगी फिर आप भी सोचेंगे कैसे 1 मिनट में कह दिया जाता है। गोदी मीडिया क्या करें, पत्रकार को भी पेट लगा है उसके भी परिवार है। दबंगई मेहनत भावना इन सब के साथ जीते हुए पेट तो उसको भी पालना है  अपने 497 साथियों की शहादत को श्रद्धांजलि देते हुए समस्त पत्रकार परिवार आज सेक्टर 72 के स्मृति पार्क में नजर आया एक तरफ पूरा शहर का पढ़ा लिखा समाज दिवंगत पत्रकारों को पुष्प चढ़ा रहा था दूसरी तरफ उनकी याद में भंडारा चल रहा था ।

Smriti Park In Noida

जालंधर कैंट में रहने वाले वोहरा जी के दोनों पुत्र लंदन चले चले गये। श्रीमती वोहरा बहुत बोर होतीं। एक दिन बाजार से एक तोता खरीद लाई। वोहरा जी पीने के बहुत शौकीन थे पीकर मस्त रहते । श्रीमती वोहरा तोते से ही बातें करतीं मुख्य बात ये ही होती तोतु पापा आ गए? तोतु सबसे पहली बात ये ही सीख गया था, ‘ पापा आ गए’ । श्रीमती वोहरा 2 साल बाद ही चल बसी अब तो तोता सारा दिन पापा आ गए चिल्लाता। सर्दी का मौसम था। वोहरा जी को परिवार की याद सता रही थी। अब तो तोतु ही परिवार था। वोहरा जी बोले तोतु पीएगा। और उसके भोजन के कप मेँ महंगी शराब उड़ेल दी। तोतु जो श्रीमती वोहरा के चले जाने के बाद भोजन में तीनों समय बिस्कुटों पर ही जी रहा था। नया स्वाद गटागट पी गया। फिर उसने बहुत ही देर तक मटक मटक कर शोर मचाया पापा आ गए। पापा आ गए। वोहरा जी का दिल भी खूब लगा। अब पिंजरा बंद हो या खुल्ला तोतु कभी घर छोड़कर नहीं गया। इस बीच तोतु कब  दारू का ऐडिक्ट हो गया पता ही नहीं चला। यदि वोहरा जी कहीं चले जाएँ तो वो अड़ोस-पडोस के लोगों को काटे चोंचे मारे लगातार चिल्लाये चारों ओर से शिकायतें। तोतु तो फीचर लेखकों का मुख्य टॉपिक बन गया। तब वोहरा जी को अपनी बदनामी, गलती तथा अपने अकेले इस साथी की चिंता सताई कि यदि तोतु मर गया तो  फीचर लेखन वाले पत्रकार कहीं का न छोड़ेंगे। अब वोहरा जी ने भी पीना छोड़ा। तोतु को अलग अलग भोजन खिलाते तथा सिखाते राम राम कहो तोतु। समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट ही तो है जिसमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो यूं दारू बाज तोता तो सभी की रुचि जगा रहा था और इसका दूर- दूर तक  लोगों पर प्रभाव पड़ रहा था। कोई हंस रहा था तो कोई दया दिखा रहा था । यूं फीचर लिखने वाले पत्रकारों ने अभी तक सूचना पहुंचाई। कितनों को ही शिक्षित किया और लोगों का मनोरंजन करते हुए भी समाज को उनकी गलती का एहसास भी करवाया। ये भी सही है कि अब तो चूहे बंदर भी कहीं कहीं दारू बाज हुए हैं । देखा जाये तो  विशुद्ध पत्रकारिता की शुरुआत तहलका डॉट कॉम ने शुरू की थी। समाज का चौथा स्तम्भ यानि के पत्रकार बनना भी कोई सरल काम नहीं हैं। बहुत ही कम लोग हैं उँगलियों पर गिने चुने जो कि इस क्षेत्र में ढंग का काम कर रहे हैं। अन्यथा सिर्फ पेट पालना बिलकुल साधारण सी ज़िंदगी जीना और खतरों से खेलना भी पत्रकारिता से मिलने वाले इनाम हैं। लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व ही सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है। तथा समाज पर सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यों की क्या प्रतिक्रिया है। इसका प्रतिबिंब भी सरकार को समय समय पर पत्रकार ही दिखाता है। एक बहुत कम धन कमाने वाला व्यक्ति यानि कि पत्रकार कभी कभी बहुत ही दबंग होता है। इसीलिए बड़े बड़े नेताओं के मुह के आगे अपना साधारण सा माइक लगा कर ऐसे ऐसे प्रश्न पूछ लेता है कि कभी कभी अपनी जान से भी हाथ धो बैठता है। और कोई गड़बड़ी होने पर उसका परदाफाश करने कि धुन में बहुत बार घायल भी कर दिया जाता है। परंपरागत रूप से ये वॉचडॉग पत्रकारिता कहलाती है। जो कि बहुत ही जोखिम का काम है। पत्रकार जानता है फिर भी करता है। पर एक स्तर पर वह भी बहुत ही बाध्य हो जाता है। क्योंकि है तो वह भी कर्मचारी ही न ? लेकिन यह भी सत्य है कि यदि मालिक कोई व्यापारी न होकर पत्रकार ही है तो फिर पत्रकारिता विशुद्ध सतर तक पहुँचती है। उसका समाज में दबदबा भी कुछ अलग ही होता है। और वह ही समाज का सच्चा संरक्षक भी होता है। ऐसे ही नहीं पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ कहलाता। वाचड़ोग पत्रकारिता  पूर्णत: जोखिम भरी होती है। ऐसे ही स्ंपाद्कीय  किसी एक व्यक्ति का विचार या राय नहीं होता। बल्कि समग्र पत्र-समूह की काफी चर्चा तथा राय के बाद ही जारी होता है। जनसंचार का सबसे पहला माध्यम प्रिंट मीडिया ही है। अब प्रिंट मीडिया के साथ साथ डिजिटल या इंटरनेट द्वारा पत्रकारिता अपने चरम पर है। इसके कारण आज कोई भी व्यक्ति कुछ भी लिख कर लेकिन प्रत्यक्ष तस्वीरे खींच लगभग पत्रकार ही हो रहा है। सच पूछें तो आज लोग जागरूक हो रहे हैं। कोई नहीं जान पाता कि किसी की कोई करतूत या किया गया अच्छा कार्य कहाँ तक पहुँच चुका है। बल्कि अब तो पाठकों को लुभाने के लिए या अधिक से अधिक विचारों को पाने के लिए भी झूठी अफवाहें ,आरोप-प्रत्यारोप, प्रेमसंबंधों के भोंडे प्रदर्शन से संबंधित सनसनीखेज समाचारों द्वारा पीत पत्रकारिता बहुत तवज्जो पा रही है। इतना ही नहीं आम जनता का रुख इक तरफा मोड़ने को । या यूं कहिए कि किसी खास मुद्दे या विचारधारा को लेकर जनमत बनाने के लिए भी पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है। आज महंगाई के दौर में पत्रकारों का उनकी ज़िंदगी कि जरूरतों को पूरा करने के लिए, या यूं कहिए कि जीवन यापन के लिए पर कभी कभी नाजायज अमीर होने को लेकर भी एडवोकेसी पत्रकारिता का बोल- बाला है। अब इस दौर में सच कहें तो एडवोकेसी पत्रकारिता के आगे समाज का चौथा स्तम्भ भी कभी कभी मजबूत नजर आता है कभी रोटी को लेकर तो कभी कभी जान को लेकर तो कभी- कभी बोटियों को लेकर।Smriti Park In Noida

ग्रेटर नोएडा में किन्नरों के दो गुटों में महाभारत, घर में घुसकर पीटा

ग्रेटर नोएडा नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें।

देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें  फेसबुक  पर लाइक करें या  ट्विटर  पर फॉलो करें।

 

 

Related Post