New Delhi : जब मध्य पूर्व में ईरान-इजराइल युद्ध ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में उथल-पुथल मचाई, तब भारत ने अपनी ऊर्जा नीति में एक रणनीतिक और दूरदर्शी कदम उठाते हुए रूस से तेल आयात में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की। जून 2025 में भारत ने रूस से प्रतिदिन 22 लाख बैरल तक कच्चा तेल खरीदा, जो अब तक का सर्वाधिक स्तर है। इससे भारत ने सऊदी अरब, इराक और यूएई जैसे पारंपरिक आपूर्तिकतार्ओं को पीछे छोड़ दिया है। ऊर्जा विश्लेषण फर्म ‘केपलर’ के मुताबिक, मई की तुलना में जून में रूस से आयात में लगभग 10% की वृद्धि हुई। दिलचस्प यह है कि इस दौरान मध्य पूर्व से आयात घटकर 20 लाख बैरल प्रतिदिन रह गया, जो पिछले महीनों के औसत से नीचे है।
रूस और अमेरिका दोनों पर भारत का संतुलित दांव
भारत ने केवल रूस पर ही भरोसा नहीं जताया, बल्कि समानांतर रूप से अमेरिका से भी तेल खरीद में तेजी लाई। जून में अमेरिका से आयात 4.39 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया, जो मई के मुकाबले लगभग 57% अधिक है। यह संकेत है कि भारत ने एक बहु-स्रोत ऊर्जा आपूर्ति रणनीति विकसित कर ली है, जिससे वैश्विक अस्थिरता के बावजूद उसकी ऊर्जा सुरक्षा मजबूत बनी रहे।
स्ट्रेट आफ हॉर्मुज को लेकर आशंकाएं, पर भारत सतर्क
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते टकराव के बीच, स्ट्रेट आफ हॉर्मुज को बंद करने की ईरान की चेतावनी ने बाजारों को चौंका दिया है। यह जलमार्ग वैश्विक तेल आपूर्ति का एक प्रमुख केंद्र है, जिससे दुनिया का लगभग 20% तेल और 40% गैस गुजरती है। भारत की कुल ऊर्जा आपूर्ति का लगभग 40% हिस्सा इसी रूट से आता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्ण अवरोध की संभावना बेहद कम है। केपलर के सीनियर एनालिस्ट सुमित रितोलिया के अनुसार, “अगर ईरान स्ट्रेट को पूरी तरह बंद करता है, तो उसकी खुद की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी, क्योंकि उसका 96% तेल इसी रास्ते से निर्यात होता है।” साथ ही, चीन और खाड़ी देशों से उसके बेहतर होते रिश्ते भी इसे रोकने में भूमिका निभा सकते हैं। New Delhi
रूस से आयात का रणनीतिक फायदा
रूस से तेल आयात भारत के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि यह स्ट्रेट आॅफ हॉर्मुज पर निर्भर नहीं है। रूसी तेल सुएज नहर, केप आॅफ गुड होप या पैसिफिक मार्गों से भारत तक पहुंचता है। इस कारण यदि खाड़ी क्षेत्र में संकट गहराता है, तो भी भारत को रूसी आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी। भारत ने अपनी रिफाइनरियों को अपग्रेड कर इन नए स्रोतों के अनुरूप तैयार किया है, जिससे अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से भी तेल प्रोसेस करना अब संभव है। साथ ही, भारत के पास करीब 9 से 10 दिनों का रणनीतिक तेल भंडार भी मौजूद है, जो किसी भी आपात स्थिति में मददगार साबित होगा। New Delhi
ऊर्जा नीति में लचीलापन बना भारत की सबसे बड़ी ताकत
रितोलिया का कहना है, भारत की तेल आपूर्ति नीति अब लचीली, बहुआयामी और संकट-प्रतिरोधी हो चुकी है। भारत चाहे तो शिपिंग लागत बढ़ाकर भी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे विकल्पों को अपना सकता है। रूस और अमेरिका से बढ़ती सप्लाई भारत की ऊर्जा सुरक्षा को वैश्विक भू-राजनीतिक संकटों के बावजूद स्थिर बनाए हुए है। New Delhi