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Article : बी-टेक छात्रा बेच रही है गोल-गप्पे

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अंजना भागी
Article :  एनआईटी (NIT) और आईआईएम (IMS) जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के बारे में पिछले दिनों एक भयानक खबर सामने आयी थी सरकारी तौर पर यह बताया गया कि पिछले 5 सालों में इन प्रमुख शिक्षण संस्थानों में पढऩे वाले 55 छात्रों (55 students) ने आत्महत्या (Suicide) कर ली। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन युवाओं के कंधों पर देश का भविष्य टिका है। वह माता-पिता की महत्वाकांक्षा, प्रतिस्पर्धा के दौर और भविष्य की चिंताओं को लेकर ऐसे भारी मानसिक तनाव में हैं कि उसे मौत को गले लगाना ही आसान रास्ता दिखता है। माता-पिता की महत्वाकांक्षा भी कहीं कभी संतान की बर्बादी का कारण न बन जाए…। होता यूं है कि कभी-कभी जो हम स्वयं नहीं कर पाते हम सोचते हैं कि यदि हम अपने बच्चों पर कड़ी मेहनत करेंगे, खूब तन, मन, धन लगाएंगे। उन पर पूरा ध्यान देंगे। यहाँ तक कि उनके लिये हम सारे रिश्ते-नातों तक को ताक पर रख देंगे। उनके जिम्मे सिर्फ एक ये ही काम छोड़ेंगे पढऩा और पढऩा। तो वे भी कल हमारे बॉस की तरह ऑफिसर बनेंगे। जहां भी हम कार्यरत हैं वहाँ के बॉस जैसे विद्वान हमारे बच्चे भी बनेंगे। हम जो न कर सके। अब हमारे सपनों को हमारे बच्चे उड़ान देंगे।

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बिना यह जाने या समझे कि हमारे बच्चे कितने सक्षम हैं। वह कितना कर सकते हैं। उनकी कैसी क्षमता है। ऐसा प्राय: हर घर में ही देखा जाता है। यदि मैं क्लर्क हूं तो मेरा बेटा ऑफिसर होना चाहिए। आईआईटी इंजीनियर होना चाहिये। उसके लिए हर किस्म की कोचिंग ट्यूशन बच्चे को देने के लिए हम स्वयं को अत्यधिक कड़ी परिस्थितियों से निकलने लगते हैं। बिना यह सोचे जाने कि इसका बच्चे पर कितना दबाव बन रहा है। कहीं हमारा यह बच्चे पर अत्यधिक दबाव उसकी खुशियां या जीवन जीने की महत्वाकांक्षा को ग्रहण की तरह डस ही तो नहीं रहा। जरूर सोचें?
मेरी बेटी जिस कोचिंग सेंटर में गणित की ट्यूशन पढऩे जाती थी वहां उसको गणित पढ़ाने के लिए जो युवा आता था वह आईआईटी पास इंजीनियर था। लगभग 2 साल से उसको उसकी चॉयस की नौकरी नहीं मिली थी। अब वह कोचिंग में 4 घंटे के लिए मैथ्स की क्लास लेता था। बच्चों को देखकर ही लगता था कि वह कितना फ्रस्ट्रेटेड है। बारहवीं कक्षा के बच्चों को जीजान से पढ़ाता था घर आकर भी बच्चे खूब पढ़ते थे। लेकिन अपने माता-पिता को कहीं संशय की दृष्टि से भी देखने लगते। कभी-कभी दुखी हो कहने या रोने भी लगते कि हमारा क्या होगा? हमारे इतने विद्वान सर तो हमें ट्यूशन पढ़ा रहे हैं।

देश की आबादी 135 करोड़ से ऊपर जा रही है। एक पद हजारों उसके उम्मीदवार। बहुत ही विचारणीय प्रश्न है। कड़ी मेहनत करने वाले युवाओं की यह दशा देख बहुत हताशा होती है। हमारे देश में सदा दो ही तो पार्टी रही हैं। एक कार्यकारिणी जो काम करती है दूसरी अपोजिशन। आज जब अपोजिशन अत्यधिक मंदे हाल में है। तब भी सदन की बैठक स्थगित हो रही हैं। ऐसे में प्रोग्रेस कैसे होगी? तरक्की की उम्मीद कहां से आएगी? या आगे क्या कार्य हो रहा है क्या करना है। उसका कोई विश्लेषण। सदन स्थगित के बाद तो कोई प्रावधान ही नहीं बचता। हमारा युवा अत्यधिक मेहनत करने के बाद भी सुसाइड जैसे निर्णय लेने पर मजबूर हो रहे हैं।

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राज्यमंत्री सुभाष सरकार (Minister of State Subhash Sarkar) ने जब लिखित रूप में राज्यसभा को यह जानकारी दी कि 2018 से 2022 के दौरान 5 सालों में एनआईटी और आईआईएम जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थानों में 55 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। यानी कि आईआईटी एनआईटी और भारतीय प्रबंधन संस्थान आईआईएम उन्होंने यह भी कहा दो हजार अ_ारह में ऐसी घटनाओं की संख्या 11 थी। 2019 में 16, 2020 में 52, 2021 में 7 और 2022 में 16 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की। 2023 के इन 3 महीनों में ही अब तक 6 मामले सामने आ चुके हैं।


इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ‘बी.टेक (B.Tech) पानीपुरी वाली’ 21 साल की इंजीनियरिंग ग्रेजुएट दिल्ली की सडक़ों पर पानी पूरी बेच रही है। अपने पानी पूरी के स्टॉल पर बीटेक पानी पूरी वाली लिखनें में उसका स्वाभिमान तथा व्यक्तित्व अपने आप बोलता है। ‘जनता को स्वस्थ भोजन परोसना’ तापसी का उद्देश्य है। गोलगप्पे खाना किसे पसंद नहीं। वाह तापसी आपके स्टार्ट-अप चुनने पर। लेकिन इस देश की दूर-दर्शिता पर?

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21 वर्षीय बी.टेक स्नातक सुश्री तापसी उपाध्याय (Taapsee Upadhyay) आज अपनी बुलेट मोटर साइकिल द्वारा अपने गोल- गप्पे (Golgappas) के स्टॉल को दिल्ली में जगह-जगह खींच कर ले जाते हुए सभी लोगों का गोल-गप्पे खाने का शौक तथा अपना व्यवसाय कर रही हैं। पानी पूरियां बेच वह देहली की गलियों में बुलेट कारवां की सवारी करती हैं, ‘जनता को स्वस्थ भोजन परोसने’ के उद्देश्य से हवा में तली हुई पूरियां बेचती हैं। लेकिन उनकी स्टॉल का नाम है ‘बीटेक पानी पुरी वाली’।
जो भी खाता है ये ही कहता है कि तापसी के गोल गप्पों से आपका पेट भर जाएगा पर मन नहीं। खाने वाले भी हर तरह के होते हैं। अलग-अलग तरह की बातें करते हैं कुछ कहते हैं आप इंजीनियर हो अच्छा लगता है आप गोलगप्पे बेचें? कुछ कहते हैं आप लडक़ी हो अपने घर जाओ घर के काम करो। तैयार आप कर दें फिर घर के किसी आदमी को बेचने भेजें। तापसी कहती हैं जब मैं व्यवस्था करके दे सकती हूँ तो बेच क्यों नहीं सकती। ऐसे में भी दिल्ली में यदि सदन न चलने दिये जाएँगे तो पता नहीं गोल गप्पे (Golgappas) खाने वाले भी कब तक खा पाएंगे।
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता व चेतना मंच की प्रतिनिधि हैं)

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