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Article : सुरक्षा बलों में खाली पदों की भरमार

पुलिस में रिक्त पदों पर भर्ती के मामले में भारत अंतरराष्ट्रीय मानकों से कोसों दूर है। संयुक्त राष्ट्र संघ  (WHO)के मानकों के मुताबिक एक लाख नागरिकों के लिए कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। इस सूची में हमारा देश विश्व (World) में 18वें स्थान पर है। दक्षिण-पूर्वी कैरेबियन सागर में स्थित द्वीपीय देश ग्रेनाडा इस सूची में सबसे ऊपर और भूटान चौथे स्थान पर है। इस मामले में हम कितनी दयनीय स्थिति में है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत अपनी ओर से निर्धारित मानक से भी काफी पीछे है। देश में पुलिसकर्मियों (Policemen) का अनुपात एक लाख लोगों पर 196 तय किया गया है, लेकिन हम 152 पर ही पहुंच सके हैं।


Article : केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद स्वामी ( Nityananda Swami) ने 14 मार्च, 2023 को देश में पुलिस थानों की बाबत जो जानकारी लोकसभा में दी, वह वर्तमान में आम जनमानस की सोच से तो एकदम उलट है ही, साथ ही, 80 के दशक की फिल्मों में पुलिस थानों की दुर्दशा के चित्रण की पुनरावृत्ति भी करती मालूम पड़ती है। स्वामी ने बताया कि देश भर में अभी भी 63 थाने ऐसे हैं, जिनके पास अपना वाहन नहीं है। यही नहीं, 628 थानों में टेलीफोन कनेक्शन नहीं है, तो वहीं 285 थानों में न वायरलेस सेट है और न ही मोबाइल फोन की सुविधा। ऐसे थानों में तैनात पुलिसकर्मी खुद की मदद करने की हालत में नहीं, तो उनसे जनता की मदद की उम्मीद करना बेमानी ही होगा। सुरक्षा के इस मोर्चे पर खामियां यहीं खत्म नहीं हो जातीं। पुलिस महकमे में बेशुमार रिक्त पद हमें इस मोर्चे पर काफी कमजोर बना देते हैं। सिर्फ पुलिस के मामले में ही नहीं, बल्कि अर्धसैनिक बलों और सेना में लाखों खाली पद देश की त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा रहे हैं।

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इसमें कोई शक नहीं कि रक्षा प्रौद्योगिकी के मामले में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व तरक्की की है। शायद, आत्मनिर्भरता की इस उठापटक में हम सुरक्षा एजेंसियों में मैनपावर की कमी के खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं। त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था के तीन मोर्चों; पुलिस, अर्धसैनिक बल और सेना में लाखों रिक्त पद इशारा कर रहे हैं कि हम इस मामले में काफी पिछड़ गए हैं। 28 मार्च को रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने राज्यसभा को बताया कि तीनों सेनाओं में 1.55 लाख पद खाली हैं। इनमें अकेले थल सेना के ही 8129 अफसरों और 127673 जेसीओ एवं अन्य रैंक के पद शामिल हैं। रक्षा राज्य मंत्री ने दिसंबर, 2021 में भी राज्यसभा में जानकारी दी थी कि थल सेना में 7476 पदों पर अफसरों की तैनाती होनी है, जबकि अन्य रैंक के 97177 पद रिक्त बताए गए थे। इस हिसाब से तकरीबन सवा साल में अफसरों के रिक्त पदों में 653 और अन्य पदों में 30496 का इजाफा हुआ। वायु सेना में अफसरों के 621 और एयरमैन के 4850, वही नौसेना में अफसरों के 1265 और अन्य रैंक के 11196 पद खाली होने की बात भी कही गई थी।

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अर्धसैनिक बलों में भी खाली पदों की भरमार है। यहां फरवरी 2023 तक 83127 पदों पर रिक्तियां थीं। इनमें सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) में 29283, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) में 19987, सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) में 19475, सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में 8273 और इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आइटीबीपी) में 4443 पद खाली हैं। अगर, अर्धसैनिक बलों में रिक्त पदों के सापेक्ष भर्ती के चार साल के आंकड़ों पर नजर डालें, तो रिक्तियों का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। साल 2017 में 77153 रिक्त पदों के सापेक्ष 58396 भर्ती हुई, तो वहीं 2018 में 98861 के मुकाबले 30098 पदों को ही भरा गया। साल 2019 में भर्ती का ग्राफ एकदम नीचे गिर गया, जो 127120 खाली पदों के सापेक्ष महज 16618 का ही था। इसके अगले साल कोरोना ने स्थिति को और बिगाड़ दिया, जिसके चलते 129292 पदों के मुकाबले 10184 भर्तियां ही हुईं। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च डिपार्टमेंट (बीपीआरडी) की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर, 2020 तक अर्धसैनिक बलों में खाली पदों का आंकड़ा 1.29 लाख तक पहुंच गया था। हालांकि कोरोना कमजोर पडऩे के बाद भर्ती के चलते रिक्तियों का ग्राफ गिरकर 83127 पर आ गया, लेकिन इस स्थिति को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। कोरोना काल से पहले भी रिक्तियों और भर्तियों में बड़ा अंतर था। समय के साथ यह अंतर कम होने की बजाय बढ़ता ही गया।

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सेना के साथ ही पर्दे के पीछे अर्धसैनिक बलों को भी राष्ट्रों की अंतरराष्ट्रीय रक्षा नीति का हिस्सा माना जाता है, लेकिन पुलिस का सीधा जुड़ाव आम नागरिकों से होता है। ऐसे में किसी भी देश में पुलिस बल का पर्याप्त न होना सीधे तौर पर नागरिकों की सुरक्षा को प्रभावित करता है। पुलिस में रिक्त पदों पर भर्ती के मामले में भारत अंतरराष्ट्रीय मानकों से कोसों दूर है। संयुक्त राष्ट्र संघ (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के मुताबिक एक लाख नागरिकों के लिए कम से कम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। इस सूची में हमारा देश विश्व में 18वें स्थान पर है। दक्षिण-पूर्वी कैरेबियन सागर में स्थित द्वीपीय देश ग्रेनाडा इस सूची में सबसे ऊपर और भूटान चौथे स्थान पर है। इस मामले में हम कितनी दयनीय स्थिति में है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत अपनी ओर से निर्धारित मानक से भी काफी पीछे है। देश में पुलिसकर्मियों का अनुपात एक लाख लोगों पर 196 तय किया गया है, लेकिन हम 152 पर ही पहुंच सके हैं।

विगत 28 मार्च को गृह राज्य मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि बिहार में एक लाख लोगों पर महज 77 पुलिसकर्मी है। यह संख्या अंतरराष्ट्रीय मानक से 145 कम, देश के मानक से 44 और राज्य स्तरीय मानक से 38 कम है। उत्तर प्रदेश की भी कमोबेश यही स्थिति है। यहां का आंकड़ा 133 पुलिसकर्मियों का है, जो अंतरराष्ट्रीय मानक के सापेक्ष 89, तो वहीं देश के मानक से 63 और राज्य स्तरीय मानक के मुकाबले 48 कम है। नगालैंड की स्थिति जरूर सुकून देने वाली है, यहां एक लाख लोगों पर 1189 पुलिसकर्मी हैं। बीपीआरडी की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2020 तक देश में पुलिसकर्मियों के 5.62 लाख पद खाली थे। उस साल पुलिसकर्मियों का नागरिकों के सापेक्ष औसत 194 और उससे पहले साल 195 था। इसके बाद यह गिरते-गिरते 152 पर पहुंच गया है। साल 2017 में पुलिस विभाग में रिक्त पद 542697 थे, जबकि 124717 भर्तियां ही की गईं। इसके अगले साल 528165 पदों के मुकाबले 150690 और 2019 में 531737 के लिए 119069 भर्ती हुई। साल 2020 में 562328 खाली पदों के लिए महज 84137 लोगों को ही भर्ती किया जा सका।

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इसमें दोराय नहीं कि कोरोना ने पूरी व्यवस्था को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भर्ती प्रक्रिया भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुई। साल 2020-21 और 2021-22 में थल सेना के लिए एक भी भर्ती रैली नहीं हो पाई। इन दो साल में नौसेना में महज 8319 और वायु सेना में 13032 भर्ती की जा सकी। अर्धसैनिक बलों एवं पुलिस महकमे की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही रही। लेकिन कोरोना काल से पहले के आंकड़े बताते हैं कि खाली पदों पर भर्ती में सरकार अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पायी। यही वजह रही कि तमाम सरकारी विभागों में रिक्त पदों का आंकड़ा 979000 तक पहुंच गया। आंकड़ों पर गौर किया जाए तो भारत में सुरक्षा के तीनों स्तरों को मजबूत किए जाने की जरूरत है। यह तभी हो सकता है जब सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस में खाली पदों को भरने के लिए तेज और ईमानदार प्रयास किए जाएं। देखना यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले साल जून में की गई उस घोषणा के सटीक परिणाम कब तक आएंगे, जिसमें उन्होंने डेढ़ साल में दस लाख भर्तियां करने की बात कही थी।

 

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