Chaudhary Charan Singh

Chaudhary Charan Singh : किसानों के सच्चे मसीहा के रूप में स्थापित भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह की आज पुण्यतिथि है। भारत रत्न के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित चौ. चरण सिंह की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय लोकदल के नेता जोगेन्द्र सिंह अवाना ने एक विस्तृत संपादकीय लेख लिखा है। भारत के सच्चे सपूत चौ.चरण सिंह के ऊपर लिखे गये संपादकीय लेख को हम हू-ब-हू यहां प्रकाशित कर रहे हैं।

भारत ने जब 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की, तब देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी-किसानों और ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना। इस दिशा में चौधरी चरण सिंह का योगदान अतुलनीय रहा। आज, जब भारत “आज़ादी का अमृत काल” मना रहा है, चौधरी साहब की नीतियाँ और विचारधारा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई हैं  भारतीय राजनीति में यदि किसी नेता ने देश की आत्मा कहे जाने वाले ‘किसान’ को केंद्र में रखा और ग्रामीण भारत की वास्तविकता को नीति निर्माण की प्राथमिकता बनाया, तो वह थे चौधरी चरण सिंह। उन्हें न केवल ‘किसानों के मसीहा’ के रूप में जाना जाता है, बल्कि एक ऐसे दूरदर्शी नेता के रूप में भी याद किया जाता है, जिन्होंने सादगी, सत्यनिष्ठा और लोकहित को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उनकी नीतियाँ और दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक हैं, विशेषकर वर्तमान मोदी युग में, जहाँ कृषि और ग्रामीण विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1302 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर गांव में हुआ था। उनके पिता एक साधारण किसान थे, और यही साधारणता उनके जीवनभर की पहचान बनी रही। बचपन में ही उन्होंने खेत की जुताई, हल चलाना, बैलों को संभालना और बरसात में बुआई जैसे कार्य किए। गाँव की कच्ची पगडंडियों और संघर्षपूर्ण जीवन ने उन्हें यथार्थ से जोड़ा और उनके अंदर किसान के दुख-दर्द की गहरी समझ विकसित की। एक बार जब गाँव में सूखा पड़ा था, तो उनके पिता ने घर की एकमात्र गाय बेच दी ताकि खेत के बीज खरीदे जा सकें। यह घटना उनके मन में गहराई तक समा गई और उन्होंने जीवनभर किसानों की आर्थिक मजबूती को अपनी राजनीति का ध्येय बना लिया। चरण सिंह का राजनीतिक जीवन स्वतंत्रता संग्राम से ही प्रारंभ हो गया था। वे महात्मा गांधी से अत्यंत प्रभावित थे और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1937 में वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। यह वही समय था जब भारत की राजनीति में किसान-मजदूर प्रश्नों को गंभीरता से उठाया जा रहा था। लेकिन अधिकतर नेता इन प्रश्नों को केवल भाषणों तक सीमित रखते थे। चरण सिंह ने इन्हें अपने जीवन का मिशन बना लिया।

भारत की आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कृषि मंत्री के रूप में कार्यरत रहते हुए उन्होंने किसानों की दशा सुधारने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए  उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950’। इस अधिनियम के माध्यम से उन्होंने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया और किसानों को उनकी भूमि का वास्तविक स्वामी बनाया। यह केवल एक कानूनी सुधार नहीं था, यह ग्रामीण भारत की संरचना को बदल देने वाला परिवर्तन था। चौधरी चरण सिंह जी का मानना था कि “मैं एक किसान का बेटा हूँ, और मेरा पहला कर्तव्य है -किसान की सेवा। मैं जब तक जीवित हैं, उनकी आवाज़ बनकर बोलता रहूँगा।” इसके बाद उन्होंने ‘भूमि धारण अधिनियम, 1960’ और ‘कर्ज मुक्ति विधेयक, 19397 जैसे विधेयकों की पहल की। इनसे किसानों को शोषण से मुक्ति और आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हुई।

उनकी नेतृत्व क्षमता और जनसमर्थन के बल पर वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने सिंचाई, ग्रामीण सड़कों, बिजली, कृषि ऋण, बीज वितरण, कृषि बाजार सुधार और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में व्यापक सुधार किए। उनका यह कार्यकाल भारतीय राजनीति में लोकहित के लिए समर्पित कार्यशैली का आदर्श उदाहरण बन गया। 1960 के दशक के उत्तरार्ध में जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, उन्होंने प्रशासन में कठोरता और ईमानदारी का परिचय दिया। एक बार जब उनकी ही पार्टी के नेताओं ने अनुशासनहीनता दिखाई और भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए, तो उन्होंने बिना झिझक मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा था, “मुझे कुर्सी नहीं, अपनी आत्मा की शांति चाहिए।” यह दर्शाता है कि वे पद के पीछे नहीं, उस पद की गरिमा के पीछे चलते थे।

1979 में चौधरी चरण सिंह को भारत का पांचवां प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला। यद्यपि उनका कार्यकाल केवल महीने का रहा, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई दूरगामी निर्णय लिए। उन्होंने कृषि को केंद्र में रखकर योजनाएँ बनाई। विशेष रूप से, ग्रामीण ऋण माफी, कृषि विपणन में सुधार, कृषि मूल्य नीति, और ग्रामोदय की अवधारणा को आगे बढ़ाया  15 अगस्त 1979 को, स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी ने लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया। उनका यह भाषण किसानों, ग्रामीण विकास, भ्रष्टाचार, और सामाजिक न्याय पर केंद्रित था। उन्होंने गांधीवादी जीवनशैली को अपनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने पर जोर दिया।

उन्होंने अपने भाषण में कहा: “हमारे किसान खेतों में पसीना बहाते हैं, तभी हमारे शहरों में रोटियाँ पकती हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। जब तक गाँव समृद्ध नहीं होगा, देश विकास के पथ पर नहीं बढ़ सकता। भ्रष्टाचार और बेरोजगारी हमारे समाज के लिए गंभीर चुनौतियाँ हैं। हमें ईमानदारी, पारदर्शिता, और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को अपनाकर इन समस्याओं का समाधान करना होगा। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलना चाहिए। इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा। इस भाषण में उन्होंने ग्राम स्वराज, सिंचाई व्यवस्था, सहकारी समितियों की मजबूती, और कृषि शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने गाँव लौटें और कृषि को सम्मानजनक व्यवसाय बनाएं।

चौधरी चरण सिंह के जीवन में सादगी और ईमानदारी एक विशेष स्थान रखती थी। वे दिखावे से कोसों दूर रहते थे। जब वह प्रधानमंत्री बने, तब भी उनके जीवन में कोई भौतिक परिवर्तन नहीं आया। उन्होंने हमेशा अपने कार्यों को ही अपना परिचय बनाया। उनके एक संस्मरण में उनके निजी सचिव ने बताया कि एक बार प्रधानमंत्री निवास में किसी बैठक में विदेशी प्रतिनिधि आए थे, तब चरण सिंह ने बिना किसी औपचारिकता के उन्हें बैठाकर चाय पिलाई और खेतों की चर्चा शुरू कर दी। यह उनकी सहजता और आत्मीयता का उदाहरण था। चौधरी चरण सिंह जी का जीवन अत्यंत सादा था। वे खादी पहनते थे और दिखावे से दूर रहते थे।

प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अपने जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं किया। एक बार एक पत्रकार ने उनसे पूछा, “आप प्रधानमंत्री होते हुए भी इतनी सादगी से क्यों रहते हैं?” उन्होंने उत्तर दिया, “मैं किसानों का प्रतिनिधि हैं; उनका जीवन सादा है, तो मेरा भी होना चाहिए।” एक बार जब वे दिल्ली में केंद्रीय मंत्री बने, तो उनके सरकारी आवास में सोफा, पर्दे और कालीन नहीं थे। जब किसी ने पूछा तो उन्होंने कहा, “किसान का बेटा हूँ। फर्श पर चटाई ही पर्याप्त है।” वे संसद में अंग्रेजी नहीं बोलते थे, जबकि वे शिक्षित थे। उनका मानना था कि आम जनता की भाषा में बात की जाए। उन्होंने एक बार संसद में कहा, “मेरी हिंदी किसानों की हिंदी है, और वहीं मेरी ताक़त है।” उन्होंने अपने बेटे अजित सिंह को कभी राजनीतिक संरक्षण नहीं दिया। वे चाहते थे कि अजित अपनी योग्यता से आगे बढ़े।

चौधरी चरण सिंह की राजनीति की जड़ें भारत की मिट्टी में थीं वह मिट्टी, जिसमें किसान का पसीना, उसकी मेहनत और उसके स्वाभिमान की महक समाई है। उनके लिए राजनीति सत्ता नहीं, सेवा का माध्यम थी, और इस सेवा का केंद्रबिंदु था भारत का अन्नदाता। उन्होंने ज़मींदारी प्रथा के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी और भूमि सुधारों के जरिए किसानों को जमीन का मालिक बनाकर उन्हें आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर किया। उनका मानना था कि जब तक किसान आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होगा, भारत सशक्त नहीं हो सकता। यह दृष्टिकोण आज नरेंद्र मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं में परिलक्षित होता है, जिसने किसान को सीधे केंद्र में रखकर नीतियाँ बनाई हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने चरण सिंह के विचारों को आधुनिक संदर्भ में पुनर्जीवित किया है। पीएम किसान सम्मान निधि योजना, जिसमें किसानों को हर वर्ष 26,000 की नकद सहायता मिलती है, चरण सिंह की उस सोच की आधुनिक व्याख्या है जिसमें किसान को आर्थिक आत्मनिर्भरता की आवश्यकता बताई गई थी। इसी तरह, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने कृषि को जोखिम मुक्त बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। यह उसी विचार को आगे बढ़ाता है कि किसानों को उनके श्रम का समुचित मूल्य और सुरक्षा दी जाए। चरण सिंह ने हमेशा गांवों को भारत की आत्मा माना और उनका विश्वास था कि ग्रामीण भारत को मजबूत किए बिना देश का समुचित विकास असंभव है। यह सोच आत्मनिर्भर भारत अभियान में जीवंत रूप से सामने आती है, जिसमें मोदी सरकार ने कृषि आधारित उद्योगों, स्थानीय कुटीर उद्योगों और ग्रामीण स्टार्टअप्स को बल दिया है। प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रेरित करना, चरण सिंह के उस सिद्धांत का ही आधुनिक रूप है जिसमें उन्होंने गांवों को उद्योग और स्वावलंबन का केंद्र बनाने की वकालत की थी।

चौधरी चरण सिंह सहकारिता के बड़े समर्थक थे। उनका मानना था कि सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को सस्ता कर्ज, बीज, उर्वरक और विपणन सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है। मोदी सरकार ने इस विचार को राष्ट्रीय महत्व देते हुए 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की। सहकारी बैंकों और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों का डिजिटलीकरण, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली और किसानों को संस्थागत ढांचे से जोड़कर वित्तीय समावेशन की दिशा में ठोस पहल की गई। चरण सिंह ने फसल की उचित कीमत को किसानों की स्थिरता का आधार बताया था। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य की वकालत की और चाहते थे कि किसान को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले। मोदी सरकार ने न केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की, बल्कि कृषि मंडियों को ई-नाम प्लेटफॉर्म के जरिए डिजिटल बनाकर पारदर्शिता लाई है। किसानों को बाजार से जोड़ने के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग ठीक वैसा ही है जैसे चरण सिंह ने बिचौलियों के वर्चस्व को तोड़ने का सपना देखा था।

जहाँ चरण सिंह प्रशासनिक ईमानदारी और सीधे संवाद के हिमायती थे, वहीं मोदी सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से सरकारी तंत्र को पारदर्शी और सरल बनाने का प्रयास किया है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किसानों को लाभ सीधे बैंक खाते में पहुंचाया जा रहा है। चरण सिंह हमेशा कहते थे कि किसान के साथ धोखा नहीं होना चाहिए। मोदी सरकार की नीतियाँ इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो और सहायता सीधे लाभार्थी तक पहुँचे। चरण सिंह खाद्यान्त्र आत्मनिर्भरता को भारत की सुरक्षा से जोड़कर देखते थे। मोदी सरकार ने इस विचार को गरीब कल्याण योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से मूर्त रूप दिया है, जिसमें लाखों गरीब परिवारों को मुफ्त राशन दिया गया। इसके साथ ही उज्ज्वला योजना और स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाया है। यह सभी योजनाएं उस दृष्टिकोण की पुष्टि करती हैं कि जब तक ग्रामीण भारत स्वस्थ और सशक्त नहीं होगा, तब तक भारत प्रगति नहीं कर सकता।

सिर्फ नीतिगत समानता ही नहीं, बल्कि निजी जीवन में भी चरण सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच कुछ गहरी समानताएं दिखती हैं। चरण सिंह पद की गरिमा को महत्व देने वाले नेता थे, परंतु उन्होंने कभी भी सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं उठाया। दिल्ली में प्रधानमंत्री रहते हुए भी वे गाँव के साधारण किसान की तरह जीते थे। नरेंद्र मोदी भी एक सादा जीवन जीने वाले प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत होते हैं जो योग, आत्मानुशासन, स्वदेशी वस्तुओं और मिट्टी से जुड़ाव का संदेश देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी बार-बार अपने भाषणों में कहते हैं, “मैं भी किसान के घर में जन्मा हूँ,” जो सीधे चरण सिंह के “किसान का बेटा किसान की बात करेगा” वाली भावना से जुड़ता है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि चौधरी चरण सिंह की राजनीति, विचार और जीवन शैली ने भारत की कृषि आधारित नीति निर्माण में जो बीज बोए थे, मोदी सरकार ने उन्हें आधुनिक तकनीकी, प्रशासनिक और वैश्विक संदर्भ में सींचा और विकसित किया है। यह एक विचार की निरंतरता है-जहाँ मूल भावना वही है, लेकिन प्रस्तुति, माध्यम और औजार आधुनिक हो गए हैं। जैसे चरण सिंह ने कहा था, “किसान ही भारत का असली शासक है, मोदी सरकार ने उसी विचार को आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया और किसान सशक्तिकरण जैसे अभियानों के जरिए जीवंत बनाया है। आज़ादी के अमृत काल में जब भारत वैश्विक मंच पर अग्रसर है, तब यह आवश्यक है कि हम चौधरी चरण सिंह जैसे विचारशील नेताओं की दूरदर्शिता को याद करें और उनके विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाएं।

भारत को यदि आत्मनिर्भर बनाना है, तो चौधरी चरण सिंह की ग्राम-केंद्रित, किसान सशक्त विचारधारा को आत्मसात करना होगा। उनकी ईमानदारी, सरलता और समर्पण आज के समय में दुर्लभ गुण हैं। लाल किले की प्राचीर से दी गई उनकी वह पुकार आज भी हमें बुलाती है-“किसानों को न्याय दो, गाँवों को समृद्ध करो, तभी भारत महान बनेगा।” उनकी विरासत, उनके संस्मरण और उनका दर्शन भारतीय राजनीति के लिए अमूल्य धरोहर हैं। आने वाली पीढ़ियाँ अगर उन्हें समझें और अपनाएं, तो भारत एक सशक्त और समरस राष्ट्र बन सकता है।

(लेखक जोगेन्द्र सिंह अवाना पूर्व विधायक हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय लोकदल के राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हैं।)

 

 

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