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Democracy: यह कैसा लोकतंत्र है जहाँ भाषा की सारी मर्यादा भूल गए हैं नेता

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Democracy : उदय प्रताप सिंह

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय आदित्यनाथ जी एक संत हैं,पढ़े लिखे भी हैं और भारत के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं। इतने विशेषणों के बावजूद उनकी भाषा ऐसी है कि जो न तो लोकतांत्रिक दिखती है, पढ़े लिखे आदमी की भी भाषा नहीं लगती है। संत की तो बिल्कुल नहीं लगती। योगी जी ने समाजवादी पार्टी को विध्वंसक बताया, गुंडों की पार्टी बताया, माफियाओं की पार्टी बताया। लेकिन उनकी अपनी भाषा जो वह सदन में चुनावी प्रचार सभाओं में बोलते किसी माफिया की भाषा से कम नहीं है।

यह सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सीधी टक्कर सपा से है। यह भाषा कहीं भयभीत की भाषा नहीं है? लोकतंत्र मैं विपक्ष उतना ही सम्मानित महत्वपूर्ण और आवश्यक है जितना सत्तापक्ष होता है।

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अगर विपक्ष नहीं होगा या विपक्ष को इस तरह से अपमानित किया जाएगा और उसकी अवमानना की जाएगी तो वह लोकतंत्र के मूल भावना के विरुद्ध है। वैसे भी पढ़े लिखे एक संत को याद रखना चाहिए कि संतों ने भाषा के बारे में क्या कहा है?

तुलसीदास जी ने लिखा है…
(तुलसी मीठे वचन से सुख उपजत चहुं ओर वशीकरण एक मंत्र है तज दे वचन कठोर)

वहीं कबीर ने लिखा है..
(कागा काको धन हरे कोयल काको देय मीठी वाणी बोल कर सबका मन हर लेय)

लज्जा स्पद है कि भारतीय लोकतंत्र विश्व सूचकांक में बराबर नीचे खिसक रहा है। जिसके अनेक कारण हैं उनमें तानाशाही की यह भाषा भी एक कारण है।
क्षद्म देशप्रेम और संकीर्णतावादी हिन्दुत्व के अलमबरदार सबसे श्रेष्ठ धर्म और देश को जो हानि भाषा से पहुंचा रहे हैं उसे आने वालीं नस्लें निंदा सहित अस्वीकार करेंगी।

जिन देशों का नाम विश्व के लोकतांत्रिक सूचकांक में ऊपर है, उन देशों में नेता विपक्ष का सम्मान सत्ता पक्ष के नेता के बराबर होता है। पर यहाँ संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था और गणतंत्र की मर्यादा की आए दिन, तरह-तरह से किश्तों मे हत्या की जा रही है। विडम्बना यह है कि इस जघन्य अपराध को करने वाले उसी संविधान की शपथ लेकर पदासीन हुए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के पिछले कुछ साल के वे सब फैसले जो उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की कार्य शैली के विरुद्ध दिए हैं। देखा जाएं तो सरकार की अयोग्यता, मनमानी का प्रामाणिक दस्तावेज तैयार हो जाएगा।

(लेखक सुप्रसिद्ध कवि व शिक्षाविद हैं)

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