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Editorial: आधी शताब्दी में लिखी गयी एक जीवनी (बायोग्राफी)

लेखक: चोबसिंह वर्मा सेवानिवृत्त आई0ए0एस0 समसामयिक विषयों के स्तम्भकार

1961 से 1980 के दशक तक जीवनीकार ने दर्जनों ऐसे विशिष्ट व बड़े राजनेताओं के साक्षात्कार लिए जो चौ. चरण सिंह को जानते समझते थे अथवा उनसे इत्तेफाक या विरोधी मत रखते थे। इंदिरा गाँधी से 26 मार्च 1978, में ट्रांस्क्राइब्ड इंटरव्यू लिया। सी0बी0 गुप्ता, कमलापति त्रिपाठी, बनारसीदास, ठा0 गेंदा सिंह, सम्पूर्णानन्द, सुचेता कृपलानी, टी0ए0 सिंह से पॉल ब्रास ने कई कई बार साक्षात्कार सत्य व तथ्यों की खोज के लिए थे।

यह एक अद्भुत विश्व रिकॉर्ड हो सकता है कि किसी व्यक्तित्व या महापुरुष की जीवनी की लिखायी पूर्ण करने में पचास साल लग गये हों। यह जीवनी चौधरी चरण सिंह की थी। इसका लेखक 1961 से मैटीरियल इक_ा करता करता इसके पहले वॉल्यूम का प्रकाशन वर्ष 2011, दूसरे का वर्ष 2012 व तीसरे और अंतिम वॉल्यूम को पूर्ण कर लोकार्पण 2014 में कर पाया। है न विस्मयकारी घटना! राजनीति शास्त्र का एक पच्चीस वर्षीय अमेरिकी नवयुवक (जन्म 1936) शोधार्थी के रूप में वाशिंगटन विश्वविद्यालय से दिल्लीं 1961 में आया था। एम्बेसी से ज्ञात हुआ कि उसके शोध के लिए ताजा एवं समसामयिक जानकारी भारत के सबसे बड़े व संवेदनशील राज्य उत्तर प्रदेश में चल रही सत्ताधारी कांग्रेस की दलीय आंतरिक उठापठक ज्यादा रुचिकर व मुफीद रहेगी। उत्सुक व तमाम आशंकाएं दिमाग में पाले यह नवयुवक इसी क्रम में लखनऊ पहुँच गया। काफी हाउस, क्लबों, रेस्तराओं व सड़क चलते गपोडिय़ों से शोधार्थी को आभास हो गया कि कांग्रेस के कई गुट एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई मौका नहीं गवां रहे हैं। अलग-अलग गुटों के नेताओं से मिलने के क्रम में लेखक को यह बताया गया कि 1950 से 1960 के बीच एक मंत्री ने कृषि भूमि सुधार, कर्जा माफी, चकबन्दी व भूमि सीमा निर्धारण जैसे क्रान्तिकारी अधिनियम अकेले अपने दम पर सफलतापूर्वक पास करा लिए और उन्हें जमीनीं धरातल पर लागू भी करा दिया। वे मंत्री चरण सिंह थे। उत्सुक पॉल आर ब्रास शोधछात्र उनसे मिलने उनके घर गया। उनके मॉल एवेन्यू स्थित बंगले पर पहुँचते ही आंगतुक को जबर्दस्त कल्चरल शॉक लगा। हुआ यह कि वहाँ दो गायें बँधी थीं, उनके बीच चौधरी साहब संध्या समय मूंज की बिनी नंगी खाट पर केवल सूती धोती व बंडी पहने लेटे थे। अंगोछा को फोल्ड कर उससे गोलाई वाला सिर टिकाने हेतु तकिया बना रखा था। मूँडा खींच कर सहायक ने खाट के पास ही ब्रास को सादर बिठा दिया। तभी गायों ने अपनी आदतन एक एक कर गोबर व मूत्र उत्सर्जन कर दिया। ऐसी गंवई व पशु संगत से अमेरिकी नौजवान अनभिज्ञ था। वह बदबू से बचने के उपक्रम में नाक दबा कर चौधरी साहब से बात करने लगा। मेजवान ने विदेशी आंगतुक की असहता भांप ली और सूक्ष्म परिचयात्मक वार्ता कर अगले दिन सचिवालय स्थित कार्यालय में तसल्ली से वार्ता करने की सलाह दे दी। शोध-छात्र अब मुलाकात के प्रति अन्यमनस्क हो चला था और वह अगले दिन रात्रि में दिल्ली वापिसी का प्रोग्राम बनाने लगा। निर्धारित समय पर अगले दिन ब्रास सचिवालय स्थित मंत्री जी के कार्यालय पहुँच गया। निजी सचिव ने उनसे कुछ समय इंतजार करने को कहा। देखा कि कुछ कुछ अंतराल पर टाई, सूट बूट पहने कर्मचारी व अधिकारी बगल में फाइलें दबाए मंत्री जी के कक्ष से तेजी से अन्दर जाते व बाहर निकलते जा रहे हैं। वह पिछले सांध्यकाल की असहज व कड़वी यादें भूल गया। गंभीर व काम काजी वातावरण में पॉल ब्रास की चरण सिंह से जब बातें शुरु हुईं तो पता नहीं चला कि तीन घंटे कब व कैसे निकल गये। परिणामत: ब्रास ने अपनी वापिसी यात्रा कैंसिल कर दी और वह उत्सुकतावश और जनकारियाँ जुटाने लगा। उसकी रुचि अब अचानक चौधरी चरण सिंह को ज्यादा से ज्यादा जानने व समझने में केन्द्रित हो गयी। फोर्ड फाउंडेशन की स्कॉलरशिप पर भारत आया यह नौजवान शोध-छात्र तथ्य क्रॉस चैक करने हेतु तत्समय के बड़े-बड़े नेताओं से मिलने लगा। वह बार-बार लखनऊ की यात्राएं व देहात का भ्रमण जमीनी हकीकत के मिलान हेतु करने लगा। पॉल आर ब्रास अपने शोध से सम्बन्धित सिनॉप्सिस व पेपर्स वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के अपने प्रोफेसर/ गाईड को रेगूलर पोस्टल डाक से भेजता रहा। गाइड को भी शोध विषय का विस्तारित होता रूप व विविधता रुचिकर लगती गयी। समसामयिक दक्षिण एशियायी राजनीति का तुलनात्मक अध्ययन अमेरिकियों के लिए एक नया व रुचिकर विषय था।
1961 से 1980 के दशक तक जीवनीकार ने दर्जनों ऐसे विशिष्ट व बड़े राजनेताओं के साक्षात्कार लिए जो चौ. चरण सिंह को जानते समझते थे अथवा उनसे इत्तेफाक या विरोधी मत रखते थे। इंदिरा गाँधी से 26 मार्च 1978, में ट्रांस्क्राइब्ड इंटरव्यू लिया। सी0बी0 गुप्ता, कमलापति त्रिपाठी, बनारसीदास, ठा0 गेंदा सिंह, सम्पूर्णानन्द, सुचेता कृपलानी, टी0ए0 सिंह से पॉल ब्रास ने कई कई बार साक्षात्कार सत्य व तथ्यों की खोज के लिए थे। स्व0 अजित सिंह ने अपने पिता के ट्रकलोड दस्तावेज व फाइलें नेहरु लाइब्रेरी दिल्ली में भविष्य में उनके उपयोग होने के लिए जमा करा दिये थे। लेखक ने सैंकड़ों घंटे इस लाइब्रेरी में उन्हें पढऩे व कॉपी करने में व्यतीत किये। लेखक की बौद्धिक ईमानदारी की तारीफ करनी होगी कि उसने 1960 के दशक में गाजियाबाद के दिल्ली से सटे जिन खेतों में किसानों को बैलों से हल जोतते हुए देखा था उन्हें 2011 में पुस्तक को अंतिम रूप देने से पूर्व मेरठ जाते रीविजिट किया और पाया कि 20-25 मंजिली गगनचुंबी इमारते इंदिरा पुरम कॉलोनी नाम से एशिया के सबसे तेज नगरीकरण होते शहर की प्रमाण बन चुकी है। जीवनीकार पॉल ब्रास ने कई बार शिद्दत से गहरा अफसोस जाहिर किया है कि एक आत्मीयता भरा विश्वास का रिश्ता कायम करके वह चौधरी साहब से सारे निजी, गोपनीय, अहस्ताक्षरित, हस्ताक्षरित पत्र व दस्तावेज हासिल कर लिए थे लेकिन चौ0 चरण सिंह के जीवन काल में उनकी जीवनी पूर्ण कर उन्हें भेंट नहीं कर सके। पूरी संजीदगी से इस अपराधबोध को हल्का करने हेतु पुस्तक की प्रस्तावना में ब्रास ने इसके लिए उनके परिजनों से क्षमायाचना की है। फिर भी समय के लिहाज से विश्वरिकॉर्डधारी बायोग्राफी तीन खंडों में प्रकाशित कर इस भारतविद अमेरीकी विद्वान ने चौधरी साहब को श्रेष्ठतम श्रद्धांजलि दे ही दी है।

1936 में बोस्टन अमेरिका में जन्मे पॉल आर ब्रास ने गवर्नमेंट हार्वर्ड कालेज से 1958 में बी0ए0 की डिग्री ली थी। शिकागो यूनिवर्सिटी से उन्होंने राजनीति विज्ञान में 1959 में एम0ए0 किया। इसी विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में 1964 में पी0एच0डी0 की उपाधि हासिल की थी। उनकी विशेषज्ञता तुलनात्मक राजनीति (दक्षिण एशिया) रही है। इनके लेख व रिपोर्ताज विश्व की तमाम नामचीन पत्रिकाओं व न्यूजपेपर्स में दशकों से छपते रहे हैं। ब्रास को दर्जनों अवार्ड व फैलोशिप अपने शोधपरक कार्यों के लिए मिल चुके हैं। 2012 में प्रो0 ब्रास फुल ब्राइट-नेहरु सीनियर रिसर्च फैलोशिप ग्रांट पर 2012-13 एकेडेमिक सेशन के लिए भारत आए थे और 9 माह भारत में रुक कर चौधरी चरण सिंह की जीवनी का तृतीय व अन्तिम वॉल्यूम तैयार कर उसे विमोचित करा कर ही अमेरिका वापिस गये थे। यह युगांतरकारी कार्य सम्पन्न करने में जहाँ जीवनीकार को पचास साल लगे वहीं हम आम भारतीयों को उनका ऋणी होना चाहिए कि एक अमेरिकी नागरिकी होते उन्होंने ऐसा श्रमसाध्य व धैर्य की परीक्षा लेने वाला काम पूरा करने का बीड़ा उठाया। उनके द्वारा 20-25 लाख कि0मी0 की पैदल, साईकिल, रिक्शे, इक्का-तांगे, ऑटो, बस, टैक्सी, रेलगाड़ी व हवाई जहाज से की गयी यात्राएं उनके साहस, लगन, सत्य व तथ्य की सतह तक जानने का जुनून, सहनशक्ति और उनकी मिशनरी भावना को उजागर करती हैं। प्रैस क्लबों, काफी हाउस, बार, गोष्ठियों, सेमिनारों, विभिन्न राजनेताओं की सभाओं, विभिन्न लाइब्रेरियों, निजी साक्षात्कार लेने, सटीक सूचनाएं एकत्रित करने व समसामयिक राजनैतिक घटनाओं को जनदीक से जानने व समझने में अपना 50 साल तक का अमूल्य समय व्यतीत किया था। राजनैतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक, शिक्षक व लेखक पॉल आर ब्रास वाशिंगटन सीयेटल विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व अंत में प्रोफेसर बन शिक्षा दी। आज भी वे इसी विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफेसर इमरीटस एक शिक्षक का धर्म निभा रहे हैं।
ब्रास के साथ एक साक्षात्कार के दौरान 1960 के दशक में चरण सिंह ने एक ऐसा वाकया बताया था कि उसकी जमीनीं तहतीकात भी लेखक ने की थी। पचास के दशक में एक ईमानदार व लोकप्रिय एस0डी0एम0 बागपत को भ्रष्टाचार के झूठे अरोप लगा कर चौधरी साहब के गृह जनपद के विरोधियों ने उनको नीचा दिखाने के उद्देश्य से न केवल ट्रांसफर करवा दिया वरन् जाँच भी बिठवा दी। एस0डी0एम0 पी0के0 जौहरी का जुर्म इतना भर था कि चरण सिंह उनकी ईमानदारी व कार्य के प्रति निष्ठा की पब्लिक मीटिंगों में प्रशंसा कर दिया करते थे। जीवनीकार
सेवानिवृत्त हो चुके पी0के0 जौहरी का अता पता लखनऊ सरकारी सेवकों का ब्यौरा रखने वालों से जान कर बस, इक्का, तांगा की सवारी करते हुए हरदोई जिले के आंतरिक अंचल के उनके गाँव व घर पहुँच गये जिससे कि उनकी ईमानदारी/ बेईमानी की तफ्तीश हो सके। सेवानिवृत्त अधिकारी खपरैल की छत वाले एक छोटे से अधपक्के पकान में रहते मिले। कुरेदने पर भी अधिकारी ने ज्यादा बात नहीं की। भ्रष्टाचार के आरोप का जिक्र आने पर उन्होंने अपनी आँखों को घर के भूगोल की ओर कैमरे के जूमलेंस की तरह घुमाया, साथ-साथ ब्रास की खोजी निगाहें घर की स्केनिंग करती रही थीं। पीडि़त अधिकारी ने इतना जरुर कहा कि वह ब्रिटिश शासन में भर्ती होकर नौकरी प्रारम्भ किए थे और चरण सिंह व वे स्वयं सिर्फ एक बात के समान गुनहगार थे कि सरकार कार्य पूरी ईमानदारी व निष्ठा से किया जाये। अमेरीकी अन्वेषक की जिज्ञासा शांत हो चुकी थी।
पॉल ब्रास ने 1960 के दशक में सम्पन्न हुए आम चुनावों में बड़े-बड़े राजनेताओं की तमाम पब्लिक मीटिंगों में प्रतिभाग किया था। मंच तक साझा किया था। अपनी पुस्तक में इसके रोचक विवरण उन्होंने लिखे हैं। अलीगढ़ के देहात में तत्समय के कांग्रेस के कद्दावर नेता व मंत्री मोहनलाल गौतम की आम सभा में साझीदार रहे ब्रास ने लिखा है कि पंडाल सजा था- तख्त जोड कर ऊँचा मंच बनाया गया था- उस पर दो बड़ी-बड़ी कुर्सियाँ लगा दी गयी थीं। एक पर मोहनलाल गौतम व दूसरी पर पॉल ब्रास बैठे। ब्रास ने जनता व नेता के बीच बनावटी फासला पैदा किया महसूस किया। कुछ दिनों के अंतराल पर ब्रास चरण सिंह के साथ कई आम सभाओं में सहभागी बने। मंत्री ज्यादातर मौकों पर दरी बिछवाकर जमीन पर अपने साथ ब्रास को भी पल्थी बिठा कर भोजन कराते और बाद में आमजन को संबोधन होता। उनकी सभाओं में ब्रास ने देखा कि मंच व जनता के बीच दूरी ज्यादा नहीं है। चरण सिंह की सभा का मंच साधारण व जमीन से मामूली ऊँचाई वाला होता था। हजारों की भीड़ अनुशासित व गौर से एक-एक शब्द सुनती व कभी-कभी ही ताली बजाती। कई मौकों पर चौधरी साहब ने ब्रास को माईक के सामने खड़ा कर बुलवाया। उन्होंने अमेरिकन अंग्रेजी के साथ टूटी फूटी हिन्दी में बोलने की प्रैक्टिस कर रखी
थी। भीड़ में इन्हें सुनकर हँसी के फव्वारे फूट पड़ते थे। ऐसा ही नजारा सहारनपुर से गोरखपुर तक एक जैसा ही रहता। नेहरु या इंदिरा गाँधी की तरह भीड़ व मंच के बीच न तो दूरी रखी जाती और न लोगों को बिठाने में कोई भेद रखा जाता था। भीड़ चरण सिंह में अपनापन पाती और वह अपने बीच से ही निकल कर आगे बढ़ रहे नेता को देखने व सुनने आती थी। पॉल ब्रास ने चरण सिंह व इंदिरा गांधी के बीच घोर राजनैतिक प्रतिद्वंदिता व कटुता महसूस की थी। लेकिन अहम मौकों पर शिष्टाचार निभाने में दोनों सदा आगे रहते भी पाये थे। 1978 की वोट क्लब के मैदान पर हुई अभूतपूर्व विशाल किसान रैली में इंदिरा गांधी ने बुके के साथ चौधरी साहब को शुभकामनाएं भेजी थीं। इसी तरह जयंत चौधरी के जन्म की खुशी में 12, तुगलक रोड के लॉन में आयोजित चाय पार्टी में 7 जनवरी, 1979 को इंदिरा गांधी सम्मिलित हुई थीं। पॉल ब्रास को एक बार बातचीत में इंदिरा गांधी ने चरण सिंह को जाति विशेष का नेता बताया था। इसी तरह दिल्ली के एक नामचीन अखबार के एडीटर ने भी चरण सिंह को जाति विशेष का नेता भर संबोधित किया था। इसकी तहतीकात करने ब्रास चरण सिंह की पश्चिम में मुजफ्फरनगर से लेकर सुदूर पूर्व में समस्तीपुर व गाजीपुर की चुनावी सभाओं में शिरकत किए। जीवनीकार ने पाया कि नेता के प्रति जुनूनी लगाव व प्रेम सुदूर पूर्व में कहीं कई गुना ज्यादा है वनिस्पत उनकी जाति के पश्चिमी क्षेत्र में। चौधरी साहब का राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर अवतरण बहुत देर से हुआ लेकिन यह धमाकेदार व विस्मयकारी घटना थी। दिल्ली की लुटयेन जोन की अभिजात्य प्रैस कभी चरण सिंह को समझ ही नहीं पायी। ब्रास ने गहरे अफसोस के साथ लिखा है कि जहाँ अमेरिकन व यूरोपीय नामचीन पत्रकार व विद्वान चरण सिंह से मिलकर उनकी विलक्षण प्रतिभा, तीक्ष्ण मेधा व विषय की गहन जानकारी के मुरीद व कायल होते रहे वहीं भारत की राष्ट्रीय प्रैस के लिए चौधरी चरण सिंह एक अबूझ पहेली अंत तक बने रहे।


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