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पुरानी पेंशन की बहाली पर सरकारों का अवांछित अड़ियल रवैया

Old Pension Issue

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Old Pension: भारतीय राजव्यवस्था वर्तमान में एक विचित्र और विद्रूप भरे संक्रमण काल से गुजर रही है जहां सत्तापक्ष स्वयं पर आत्ममुग्ध और देशकाल समाज की वास्तविकताओं से दूर एक स्वनिर्मित स्वप्नलोक में विचरण कर रहा है, जिसमे वह तथाकथित “अच्छे दिनों” का सदाबहार मौसम लाने के बाद देश को ऐसे ही कपोल कल्पित “अमृतकाल” की ओर ले जाने का दम भर रहा है जबकि देश का एक बड़ा तबका जिसे मध्य वर्ग कहा जाता है निरंतर सरकार की अनेकों विरोधाभासी शोषक नीतियों से त्रस्त है और छुटकारा पाने के लिए लगातार छटपटा रहा किंतु उसकी विवशता कि वह न तो सरकार की तथाकथित कल्याणकारी नीतियों के विमर्श में कही है और न ही विपक्ष के बेतुके और दिशाहीन कोलाहल में कहीं उसकी अकुलाहट के स्वर सुनाई पड़ रहे है।

Old Pension Issue

यूँ तो इस मध्यवर्ग जो वास्तव में देश की रीढ़ है के सरकारी शोषणकारी नीतियों से त्रस्त रहने के अनेकों उदाहरण है, लेकिन यहाँ हम बात करना चाहेंगे देश के उन चौरासी लाख सरकारी कर्मचारियों की जो विभिन्न राज्यों और केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में कार्यरत हैं। विदित हो कि वर्ष 2004 के पश्चात भर्ती हुए सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति उपरांत सुनिश्चित पेंशन जो उनका संवैधानिक अधिकार था, से तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाकर वंचित कर दिया गया था और वर्तमान में इसके स्थान पर शेयर मार्केट में निवेश पर आधारित अंशदायी पेंशन योजना, जिसको नई पेंशन योजना (एनपीएस) कहा जाता है, को प्रवृत्त किया गया है।

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संवेदनहीन सरकारों की उत्पीड़नकारी नीति

पुरानी (सुनिश्चित) पेंशन योजना में जहां कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति उपरांत एक सुनिश्चित राशि जो उनके अंतिम आहरित वेतन का लगभग आधी होती थी, निर्वाह हेतु जीवनपर्यंत नियमित प्रतिमाह मिलती रहती थी यही नई पेंशन योजना (जो जबरदस्ती कर्मचारियों पर थोपी गई है) इस प्रकार का कोई आश्वासन नहीं देती है। पुरानी पेंशन योजना में जहां प्रत्येक छः माह उपरांत पेंशनभोगी को प्रचलित महंगाई दर की प्रतिपूर्ति हेतु मंहगाई राहत का प्रावधान था वहीं नई पेंशन योजना इस प्रकार के किसी भी प्रावधान से सर्वथा मुक्त हैं। हाल के कुछ वर्षो में नई पेंशन योजना के तहत सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों के अनुभव बेहद भयावह और संवेदनहीन सरकारों की उत्पीड़नकारी नीतियों के निकृष्टतम उदाहरण है, जहां कई सरकारी कर्मचारी जिनका अंतिम आहरित वेतन पचास हजार से सत्तर हजार के मध्य था, वर्तमान में मात्र सात सौ से चार हजार रुपये के मध्य पेंशन पा रहे हैं सोचने की बात है कि महंगाई के इस दौर में इतनी अल्प राशि में कोई भी सरकारी कर्मचारी जिसने अपना संपूर्ण जीवन स्वाबलम्बित रहकर स्वाभिमानपूर्वक व्यतीत किया हो, भला सेवानिवृत्ति उपरात अपना जीवननिर्वाह स्वाभिमान से कैसे कर पाएगा, वह भी तब जबकि वृद्धावस्था में अनेकों रोग और जराजन्य व्याधियांप्रायः शरीर को जीर्ण और असहाय कर देती हैं, और एक अच्छी खासी रकम वृद्धावस्था में नियमित इलाज और दवाओं के मद में ही व्यय हो जाती है।

राजकोषीय घाटे को संतुलित रखने का तर्क

सरकार के द्वारा प्रायः इस सम्बन्ध में एनपीएस को जारी रखने के लिए राजकोषीय घाटे को संतुलित रखने का तर्क दिया जाता है जो कि वास्तव में अर्धसत्य, मिथ्या और सरकार के द्वारा पोषित कुछेक विशिष्ट पूँजीवादी अर्थशास्त्रियों के द्वारा मीडिया में सृजित किए गए भ्रामक विमर्श का इंद्रजाल मात्र है। वास्तविकता कुछ और ही है जिसको कभी भी सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया जाता है। सरकार के द्वारा संसद में दिए गए बयान के अनुसार ही विगत पाँच वर्षों में उद्योगपतियों और कारपोरेट का 10 लाख 9 हजार करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया गया है। यह लगभग इतनी ही राशि है जितने से 5 वर्षों तक सभी सेवानिवृत्त केंद्रीय कर्मचारियों को पेंशन दी जा सकती है एक और उदाहरण- सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को पुनः एक वर्ष का विस्तार देते हुए दिसंबर 2023 तक देश के 81 करोड़ 35 लाख लोगों को मुफ्त राशन दिए जाने की घोषणा की गई जिसका सालाना बिल भी लगभग दो लाख करोड़ रुपए ही है पुनः यह लगभग उतनी ही राशि है जिससे समस्त सेवानिवृत्त केंद्रीय कर्मचारियों को वर्षभर पेंशन दी जा सकती है।

यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं गरीबों को राशन वितरित किए जाने की योजना का किंचित विरोधी नहीं हूँ, किंतु यह विचारणीय है कि जब लगभग संपूर्ण देश कोरोना काल की विषम परिस्थितियों से उबर चुका है, देश की अर्थव्यवस्था विश्व की शीर्षतम अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित हो चुकी है। वस्तु एवं सेवा कर की संग्रह राशि प्रतिमाह नए शिखरों का रिकॉर्ड बना रही है, तब ऐसे में प्रतिमाह प्रति परिवार मात्र 48 रुपए का राशन (प्रति परिवार चार सदस्य मानते हुए) मुफ्त में वितरित कर सरकार कौन सी गरीब हितैषी नीति का पोषण कर रही है ? जबकि इन्हीं गरीबों को यदि इस मुफ्त में मिले राशन को पकाने के लिए गैस सिलेंडर रिफिल कराना पड़े तो उन्हें लगभग 1100 रुपए खर्च करने पड़ेंगे- गजब का विरोधाभास है।

ऊपर मात्र दो ऐसे उदाहरण दिए गए हैं जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि राजकीय कर्मचारियों को (पुरानी) पेंशन न देने के पक्ष में सरकार जो तर्क दे रही है वह वास्तव में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को उनके जीवनयापन के नैसर्गिक अधिकार से जबरन वचित किए जाने हेतु प्रपंचपूर्ण रचे गये तथ्यहीन तर्कों के अतिरिक्त कुछ नहीं है, क्योंकि इससे भी अधिक राशि तो सरकार कई सारी तथाकथित गरीब कल्याण और कर्ज माफी योजनाओं पर लुटा रही है जिनका व्यवहार में कोई औचित्य नहीं है. सिवाय वोट बैंक की निर्लज्ज ओछी राजनीति के।

इसके अलावा जो सरकार खुद अपने पूर्व सांसदों, विधायकों, मंत्रियों आदि को दो-दो, तीन-तीन (और कई बार तो चार-चार) पेंशनों के अतिरिक्त अनेकों विशिष्ट सुविधाएं प्रदान कर रही हो वह भला किस नैतिक आधार पर अपने ही सरकारी कर्मचारियों की पेंशन को अनावश्यक वित्तीय भार बताकर उन्हें उससे वंचित कर रही है ? यदि शेयर बाजार आधारित नई पेंशन योजना इतनी ही आकर्षक है जैसा कि सरकार द्वारा दावा किया जाता है तो क्यों ना सभी माननीय सांसदों, विधायकों, मंत्रियों को भी इसी से आच्छादित किया जाए ?

क्या विडंबना है कि जो सरकारी कर्मचारी स्वयं सरकार की योजनाओं को धरातल पर क्रियान्वित करने में अपना संपूर्ण यौवन, ऊर्जा और जीवन खर्च कर देते है, अपने जीवन की सांध्यबेला में एक अनिश्चित और आशंकाओं से भरा जीवन जीने के लिये अभिशप्त हैं। ”कर रहा होगा कोई वर्ग अमृतकाल का अमृतपान…. देश के लाखों कर्मचारियों के हिस्से तो वही हलाहल है” जिसको कंठस्थ करके भी उन्हें चुपचाप लोक के कल्याणार्थ सन्नद्ध होना है और श्रेय भी उन्हीं माननीयों को देना है जो उन्हीं के जीवन को अंधकारमय कर देने पर आमादा है। शेष फिर…

जयेन्द्र शेखर गुप्ता “जय”
बरेली

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