यूं हुआ था कश्मीर का भारत में विलय
विनय संकोची 26 अक्टूबर का दिन भारत के ऐतिहासिक और भौगोलिक स्वरूप निर्धारण में बेहद खास है। 1947 के अक्टूबर…
चेतना मंच | October 25, 2021 11:56 PM
विनय संकोची
26 अक्टूबर का दिन भारत के ऐतिहासिक और भौगोलिक स्वरूप निर्धारण में बेहद खास है। 1947 के अक्टूबर माह की 26 तारीख को ही कश्मीर के राजा हरि सिंह ने अपने राज्य को भारत में मिलाने का फैसला लिया था। यह काफी हड़बड़ी और जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था, इसका प्रमाण यह है कि इतने महत्वपूर्ण राज्य का विलय पत्र मात्र दो पेज का ही था और उसे भी खासतौर पर तैयार नहीं किया गया था।
राजा हरि सिंह लाखों की जनसंख्या वाले अपने राज्य को स्वतंत्र रखने की इच्छा रखते थे। लेकिन अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने देश के तमाम रजवाड़ों को साफ संदेश दे दिया था कि स्वतंत्र रहने का अधिकार और अन्य कोई विकल्प उनके पास नहीं था। महाराजा हरि सिंह के पास भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में विलय के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प था ही नहीं। उस समय अंग्रेजों को लगता था कि कश्मीर का पाकिस्तान में विलय होगा, इस सोच के पीछे कारण था कि रियासत की करीब तीन चौथाई आबादी मुसलमानों की थी। लेकिन महाराजा हरि सिंह हिंदू थे और उनका मन कश्मीर को पाकिस्तान में विलय करने का नहीं था।
महाराजा हरि सिंह असमंजस में थे और किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे थे। ब्रिटिश और भारतीय अधिकारी भी उनका असमंजस दूर करने में सफल नहीं हो पाए थे। अंततः ऐसे संकेत मिलने लगे कि महाराजा भारत में विलय की तैयारी में हैं। पाकिस्तान से आने वाले कबाइलियों के आक्रमण के बाद महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ जाने का फैसला लिया था। पाकिस्तान की नई सरकार और सेना के एक बड़े हिस्से ने कबायली लड़ाकों का न केवल समर्थन किया था, बल्कि उन्हें लड़ने के लिए हथियार भी उपलब्ध कराए थे।
जब आक्रमणकारी कबाइलियों की फौज श्रीनगर की ओर बढ़ी और गैर मुस्लिमों की हत्या करने लगी, तब महाराजा हरि सिंह 25 अक्टूबर 1947 को शहर छोड़कर परिवार से ही जम्मू भाग गए। आक्रमणकारी कबाइलियों का सामना करने की शक्ति महाराजा में नहीं थी। हरि सिंह जम्मू के अपने महल में सुरक्षित पहुंच गए और वहां पहुंच कर उन्होंने घोषणा की – ‘हम कश्मीर हार गए’। भारत के गृह मंत्रालय के तत्कालीन सचिव वी पी मेनन 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू गए और दो पेज के विलय पत्र पर महाराजा के हस्ताक्षर करवा लिए।
एक वर्ग का मानना है कि महाराजा हरि सिंह मजबूरी में कश्मीर के भारत में विलय के लिए तैयार हुए थे। महाराजा स्वतंत्र रहना चाहते थे। पाकिस्तान के कबायली लड़ाकों ने 24 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर धावा बोला तो महाराजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर की सुरक्षा को लेकर परेशान हो गए। महाराजा ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई लेकिन ऐसे में गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने साफ-साफ कह दिया कि भारतीय सेना कश्मीर की मदद नहीं कर सकती। ऐसा कहे जाने का कारण संभवतः यह था कि जम्मू कश्मीर का तब तक भारत में विलय नहीं हुआ था।
यही वह समय था जब भारत सरकार की तरफ से महाराजा हरि सिंह का को प्रस्ताव दिया गया यदि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हो, तो भारतीय सेना को मदद के लिए भेजा जा सकता है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और 27 अक्टूबर से जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। 1948 में जम्मू कश्मीर में पहली बार अंतरिम सरकार का गठन हुआ और शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री घोषित किया गया। सवा साल के युद्ध के उपरांत दिसंबर 1948 को युद्धविराम लागू हुआ और जम्मू कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा और एक तिहाई हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया।