नई दिल्ली। पुडुचेरी विश्वविद्यालय के कुलपति गुरमीत सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से सेवानिवृत्ति के तीन साल बाद भी विश्वविद्यालय में अपना सरकारी आवास खाली नहीं किया है। उन पर 23 लाख रुपये बकाया है। संबंधित सरकारी कागजों से यह जानकारी सामने आयी है।
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गुरमीत सिंह ने कहा कि शुरुआत में देरी कोविड के कारण लगे लॉकडाउन के चलते हुई। बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा बकाया राशि की गलत गणना और समय की कमी की वजह से हुई। उन्होंने विश्वविद्यालय पर उनके साथ गलत व्यवहार करने और उनकी सेवानिवृत्ति निधि के 50 लाख रुपये रोकने का भी आरोप लगाया। डीयू ने पिछले सप्ताह सिंह को नया नोटिस भेजा था, जिसमें उन्हें या तो नॉर्थ कैंपस में कैवलरी लाइंस स्थित ‘टाइप 5’ बंगला खाली करने के लिए कहा गया था या बिजली एवं पानी के कनेक्शन काटे जाने और इस तरह की अन्य कार्रवाइयों का सामना करने की चेतावनी दी थी। उन्हें अब तक कुल नौ नोटिस जारी किए जा चुके हैं।
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डीयू ने नोटिस में कहा कि न तो आपने विश्वविद्यालय का आवास खाली किया है और न ही सामान्य लाइसेंस शुल्क के 50 गुना की दर से लागू क्षति शुल्क एवं पानी शुल्क की बकाया राशि का भुगतान किया है। भारत सरकार के नियम सेवानिवृत्ति के बाद छह महीने से अधिक रहने की अनुमति नहीं देते हैं। इसके विपरीत, आप किराया दंड का भुगतान किए बिना दो साल और नौ महीने से अधिक की अवधि तक कब्जा किए हुए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय का दावा है कि कुलपति पर उसका 23.70 लाख रुपये किराया दंड और पानी का शुल्क बकाया है।
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सिंह ने 2017 में पुडुचेरी विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यभार संभाला था। उन्हें पिछले साल सितंबर में एक वर्ष का विस्तार दिया गया था। सिंह तमिलनाडु में गांधीग्राम ग्रामीण संस्थान के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे हैं। वह अक्टूबर 2019 में दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें अप्रैल 2020 तक डीयू का सरकारी आवास खाली करना था। सिंह ने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें पुडुचेरी विश्वविद्यालय में भी आवास मिला हुआ है।
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सिंह ने कहा कि मैंने 43 वर्ष से अधिक समय तक विभिन्न पदों पर रहते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की सेवा की है। 50 लाख रुपये की मेरा बकाया सेवानिवृत्ति निधि अभी भी विश्वविद्यालय के पास है। आवास खाली करने की मेरी अनुग्रह अवधि अप्रैल 2020 में समाप्त हो गई थी। हालांकि, कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन और आने-जाने पर लगीं पाबंदियों के चलते मैं आवास खाली नहीं कर पाया। मेरे साथ गलत व्यवहार किए जाने के बावजूद मैं विश्वविद्यालय को इस बारे में बताता रहा हूं।
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