Monday, 7 October 2024

Pune News : मंगला नार्लीकर: गणित के प्रति अवधारणा को बदला,‘फन एंड फंडामेंटल्स ऑफ़ मैथमेटिक्स’से गणित को बना दिया खेल !

Pune News :  Mangala Narlikar  नहीं रहीं.  17 जुलाई को पुणे में उनकी मृत्यु हो गई. उन्हें कैंसर था.उनका नाम…

Pune News : मंगला नार्लीकर: गणित के प्रति अवधारणा को बदला,‘फन एंड फंडामेंटल्स ऑफ़ मैथमेटिक्स’से गणित को बना दिया खेल !

Pune News :  Mangala Narlikar  नहीं रहीं.  17 जुलाई को पुणे में उनकी मृत्यु हो गई. उन्हें कैंसर था.उनका नाम सुनते ही जेहन में मशहूर खगोल वैज्ञानिक और साइंस-फिक्शन लेखक जयंत नार्लीकर का नाम आता है. उनका बड़ा नाम है. मंगला उनकी पत्नी थीं.

बहुत कम लोगों को पता है कि मंगला नार्लीकर खुद एक बहुत ऊंचे दर्जे की गणितज्ञ थीं. एक पारम्परिक भारतीय परिवार में जन्मीं मंगला ने स्कूल की पढ़ाई करते हुए दो प्रतिष्ठित छात्रवृत्तियां हासिल कीं. उन्होंने अपने पसंदीदा विषय गणित में एम. ए. किया. खाली समय वे पढ़ने और चित्रकारी करने में लगाती थीं. 1964 में उन्होंने बंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च में रिसर्च एसोसियेट की तरह काम करना शुरू किया और दो साल बाद जयंत नार्लीकर के साथ उनका विवाह हो गया.

Pune News अपने शोध के सिलसिले में जयंत दुनिया भर में जाया करते थे. जाहिर है मंगला उनके साथ रहती थीं. ऐसी ही एक यात्रा कैम्ब्रिज की थी. यहाँ वे छः साल रहे. यहीं उनकी दो बेटियां हुईं. जब दोनों वापस लौटे तो मंगला 29 की हो चुकी थीं. उनके सामने पूरी तरह घरेलू जीवन में धंस जाने का विकल्प खुला हुआ था जैसा उन्होंने कैम्ब्रिज में किया था लेकिन उन्होंने ऐसा न करते हुए गणित में पी. एच. डी. करने का फैसला किया. इधर जयंत के बूढ़े माता-पिता भी उन्हीं के साथ शिफ्ट हो गए. मंगला का दिन सुबह चार बजे शुरू होता और आधी रात के बाद तक चलता – इस दिनचर्या में बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने, सास-ससुर की देखभाल, खाना पकाने, और बंबई यूनिवर्सिटी में पार्ट टाइम अध्यापन के साथ-साथ अपनी रिसर्च के लिए समय निकालना होता था.

गणित के प्रति इस आम अवधारणा को बदलना चाहती थीं कि वह एक दुरूह विषय है

जब तक उन्हें पी. एच. डी. अवार्ड हुई वे तीन बेटियों – गीता, गिरिजा और लीलावती – की माँ बन चुकी थीं. यह बताना जरूरी है कि ये तीनों बेटियाँ भी विज्ञान के क्षेत्र में ही कम कर रही हैं. मंगला को अपनी रसोई में प्रयोग करना भी अच्छा लगता था. उन्हें दुनिया-जहान के व्यंजन बनाना सीखने का शौक था. एक मशहूर और व्यस्त पति के जीवन को सुगम बनाना उनकी पहली प्राथमिकता रहा.एक गणितज्ञ के रूप में मंगला का सबसे बड़ा सरोकार था गणित के प्रति बच्चों में बैठने वाले शुरुआती भय को दूर करने की दिशा में काम करना. वे गणित के प्रति इस आम अवधारणा को बदलना चाहती थीं कि वह एक दुरूह विषय है. पति के साथ मिलकर उन्होंने इस बारे में किताबें लिखीं. दोनों की लिखी ‘फन एंड फंडामेंटल्स ऑफ़ मैथमेटिक्स’ ऐसी ही एक किताब है जिसे हर ऐसे घर में होना चाहिए जिसके बच्चे स्कूल जाते हों. मंगला नार्लीकर का बड़ा काम अकादमिक होने के साथ-साथ आम आदमी के लिए भी है.

‘फन एंड फंडामेंटल्स ऑफ़ मैथमेटिक्स’ ऐसी किताब है जिसे हर ऐसे घर में होना चाहिए जिसके बच्चे स्कूल जाते हों.

मंगला नार्लीकर तर्कवाद की ज़बरदस्त समर्थक थीं और इस विषय पर स्वतंत्र विचार रखती थीं. अपने एक लेक्चर में उन्होंने ऐसे लोगों को विवेकनिष्ठ आस्तिक कहा है जो विज्ञान को भी मानते हैं और ईश्वर को भी. वे कहती हैं कि उनकी जान-पहचान के 99 प्रतिशत से अधिक लोग किसी न किसी भगवान को मानते हैं. उनमें से बहुत सारे वैज्ञानिक भी हैं. वे कहती हैं कि अगर ऐसा आस्थावान व्यक्ति अपने भगवान से अच्छा काम करने की किसी तरह की प्रेरणा हासिल कर रहा है तो हम उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकते. हाँ हम उससे यह आशा अवश्य करेंगे कि वह अन्धविश्वासी न हो और अधिकतर चीज़ों को तर्क की कसौटी पर परखने का हामी हो. उसे हर उस अन्याय के खिलाफ खड़े होने की आशा भी की जाएगी कि जो धर्म के नाम पर समाज में किया जा रहा हो.

Pune News तर्कवाद की ज़बरदस्त समर्थक थीं

यह उनका मजबूत सहारा था जिसके होते हुए जयंत नार्लीकर को घर-परिवार जैसी चीज़ों की फ़िक्र नहीं करनी पड़ी और वे ढेर सारा काम कर सके. उन्हें देश का दूसरा बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण भी दिया गया. मंगला नार्लीकर को उनके हिस्से का कितना श्रेय मिला इसे इस बात से समझा जा सकता है कि आप-हम में से निन्यानवे प्रतिशत ने उनका नाम भी नहीं सुन रखा होगा. मंगला नार्लीकर ही नहीं उन्हीं के जैसी असाधारण गणितज्ञ-वैज्ञानिक महिलाओं जैसे रमन परिमाला, रोहिणी गोडबोले, राधा बालकृष्णन या सुधा भट्टाचार्य का नाम भी किसी की स्मृति में नहीं है. जीवन भर अपना काम खामोशी से करती चली गई मंगला नार्लीकर नाम की इस औरत को खाली समय में घर के बगीचे में बैठे देखा जा सकता था जहाँ वे घर में काम करने वाली महिला के बच्चों को गणित सिखाया करती थीं.

“मुझे मालूम था कि गणित एक ऐसा विषय था जिसमें पुरुषों का एकाधिकार चलता है लेकिन मैं इस प्रचलित विश्वास को नहीं मान सकती थी कि लड़कियां गणित में कमज़ोर होती हैं. मुझे लड़कियों के गणित ज्ञान को लेकर बनाए जाने वाले चुटकुले भी समझ में नहीं आते थे क्योंकि मैंने यूनीवर्सिटी के आख़िरी इम्तहान सहित अपनी सारी परीक्षाओं में टॉप किया था.” एक इंटरव्यू में यह कहने वाली मंगला अपने असाधारण जीवन को लेकर वे बेहद विनम्र थीं. एक जगह उन्होंने स्वीकार करते हुए लिखा है –

“मेरी कहानी संभवतः मेरी पीढ़ी की उन बहुत सारी औरतों के जीवन का प्रतिनिधित्व करती है जो बहुत पढ़ी-लिखी हैं लेकिन जिन्होंने घरेलू जिम्मेदारियों को अपने व्यक्तिगत करियर के ऊपर रखा.”Pune News

फ़ेसबुक से साभार

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