चंबल घाटी, जिसे कभी डाकुओं की धरती कहा जाता था, आज एक ऐसी कहानी का गवाह बनी है जो न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी साबित करती है कि जन्म से नहीं, कर्म से इंसान की पहचान बनती है।
देव तोमर – एक ऐसा नाम, जिसने नकारात्मक विरासत को पीछे छोड़कर अपने जज़्बे और मेहनत से नया इतिहास रच दिया।
देव मध्यप्रदेश के उस परिवार से हैं, जिसकी पहचान कभी भय और बंदूकों से होती थी। उनके दादा रामगोविंद सिंह तोमर कुख्यात डाकू थे। लेकिन देव ने उस विरासत को नहीं अपनाया। उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया। उनके पिता बलवीर सिंह तोमर ने भी पढ़ाई को प्राथमिकता दी और वही संस्कार देव में भी आए।
देव ने IIT Roorkee से पढ़ाई पूरी की और 88 लाख रुपये के पैकेज पर एक मल्टीनेशनल कंपनी में साइंटिस्ट बने। लेकिन उनका सपना कुछ और था — देश के लिए कुछ करने का। 2019 में उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की। शुरू के दो साल उन्होंने खुद के पैसों से पढ़ाई की, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते उनकी पत्नी ने नौकरी कर उन्हें सहारा दिया। परिवार ने भी हर मोड़ पर साथ निभाया।
तानों, असफलताओं और कठिनाइयों के बावजूद देव ने हार नहीं मानी। 2025 में उन्होंने UPSC में 629वीं रैंक हासिल की और अब वे एक अफसर बनने जा रहे हैं।
देव की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, एक पूरे समाज की सोच को बदलने की मिसाल है। ये बताता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी अतीत आपके भविष्य को नहीं रोक सकता।
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