Dharam Karma : वेद वाणी

Rigveda
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 09:36 AM
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Sanskrit : प्र वो मित्राय गायत वरुणाय विपा गिरा। महिक्षत्रावृतं बृहत्॥ ऋग्वेद ५-६८-१॥

Hindi : हे मनुष्य! तुम परमेश्वर की महिमा का गुणगान करो। वह तुम्हारा सच्चा मित्र है। वह न्याय करने वाला है। वह शक्तिशाली है। वह इस वह को चलाने वाला है। वह अनंत सत्य है। और अखंड विधान का संचालक है। (ऋग्वेद ५-६८-१) #vedgsawana

English : O man! you sing song in glory of the God, Who is your true friend and dispenser of justice, Who is the most powerful and sustainer of the world, and Who maintains the eternal Truth and Law. (Rig Veda 5-68-1) #vedgsawana

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Sanskrit : प्र वो मित्राय गायत वरुणाय विपा गिरा। महिक्षत्रावृतं बृहत्॥ ऋग्वेद ५-६८-१॥

Hindi : हे मनुष्य! तुम परमेश्वर की महिमा का गुणगान करो। वह तुम्हारा सच्चा मित्र है। वह न्याय करने वाला है। वह शक्तिशाली है। वह इस वह को चलाने वाला है। वह अनंत सत्य है। और अखंड विधान का संचालक है। (ऋग्वेद ५-६८-१) #vedgsawana

English : O man! you sing song in glory of the God, Who is your true friend and dispenser of justice, Who is the most powerful and sustainer of the world, and Who maintains the eternal Truth and Law. (Rig Veda 5-68-1) #vedgsawana

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धर्म-अध्यात्म : होइहि सोइ जो राम रचि राखा!

Spritual 1
locationभारत
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calendar18 Oct 2021 04:46 AM
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 विनय संकोची

प्रत्येक संवेदनशील जिज्ञासु व्यक्ति के मन में भांति भांति के ऐसे प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठते रहते हैं, जिनके उत्तर वह जानना चाहता है। लेकिन जान नहीं पाता है। कुछ ऐसे ही स्वाभाविक प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास इस पटल के माध्यम से किया जा रहा है।

गुणातीत कौन? : गुणातीत पुरुष का अपनी ओर से किसी भी प्राणी में मित्र अथवा शत्रु भाव नहीं होता है, इसलिए वह मित्र और शत्रु दोनो के पक्षों में सम रहता है, दोनों पक्ष वालों में समभाव रखता है। वह समभाव से सबके हित की चेष्टा करता है। जब तक अंतःकरण में राग, द्वेष, विषमता, हर्ष, शोक, अविद्या और अभिमान का जरा सा भी अंश रहता है, तब तक समझना चाहिए कि गुणातीत अवस्था प्राप्त नहीं हुई है।

आज ऐसे गुणातीत पुरुष विरले ही मिलते हैं। कलियुग में राग, द्वेष, विषमता, भेदभाव, हर्ष, शोक, अभिमान, दर्प, क्रोध, तृष्णा, मोह आदि विकारों से बच पाना असंभव प्रतीत होता है, इसीलिए अपने सच्चिदानंद स्वरूप में स्थित रहने वाले गुणातीत पुरुष दुर्लभ हैं। लेकिन फिर भी यह तो नहीं ही कहा जा सकता है कि संसार गुणातीत पुरुषों से शून्य है।

स्वस्थ कौन?: अच्छा स्वास्थ्य होना, निरोगी होना ही स्वस्थ होना नहीं है। वास्तव में स्वस्थ वह व्यक्ति है जो सुख दु:ख में समभाव से रहता है। कोई शरीर से स्वस्थ हो और मानसिक विकार से ग्रस्त हो उसे स्वस्थ तो नहीं कहा जा सकता है। स्वस्थ रहने के लिए सुख दु:ख को समान भाव से स्वीकार करना होता है, जो आजकल के समय में असंभव ही कहा जाएगा। आज व्यक्ति तमाम तरह की चुनौतियों, परेशानियों, विकारों, चिंताओं से ग्रस्त है। प्रत्येक व्यक्ति बेचैन है। किसी बेचैन मनुष्य को स्वस्थ घोषित नहीं किया जा सकता। मात्र गुणातीत पुरुष ही स्वस्थ हो सकता है।

सुख-दु:ख क्या हैं? : अनुकूल की प्राप्ति और प्रतिकूल की निवृत्ति से मन को जो प्रसन्नता प्राप्त होती है, वह सुख है और प्रतिकूल की प्राप्ति तथा अनुकूल की अनुपलब्धता से अंतःकरण में होने वाली व्याकुलता दु:ख है।

प्रभु इच्छा सर्वोपरि क्यों? : जिनकी भक्ति प्रबल होती है, वे बिना किसी तर्क-वितर्क के शुद्ध भाव से इस सत्य को स्वीकार करते हैं कि प्रभु इच्छा ही सर्वोपरि है। जिनको प्रभु पर अटूट विश्वास नहीं होता, वही प्रभु की इच्छा को सर्वोपरि माने जाने पर सवाल खड़े करते हैं। परमात्मा से ज्यादा हमारा हित चाहने वाला और कोई नहीं है। मनुष्य स्वयं भी अपना उतना हित नहीं जानते, जितना प्रभु जानते हैं। प्रभु हमारी प्रत्येक सात्विक इच्छा को पूरा करते हैं। लेकिन ऐसी किसी भी इच्छा को पूरा नहीं करते जिससे वर्तमान में अथवा भविष्य में हमारा अहित हो सकता है। हमें लगता है कि हमारे प्रयास से हमारी इच्छा पूर्ति हो रही है लेकिन यह मात्र भ्रम है। होता वही है जो परमात्मा करता है और होता भी वही है जो परमात्मा की दृष्टि में हमारे लिए नितांत आवश्यक होता है। यही कारण है कि हम अनेकों बार प्रयास करने के बाद भी अपनी किसी इच्छा, अभिलाषा को मूर्त रूप नहीं दे पाते हैं, असफल हो जाते हैं। ऐसा केवल इसलिए होता है क्योंकि प्रभु ऐसा चाहते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि प्रभु इच्छा सर्वोपरि है, तभी तो हमारी सभी इच्छाएं पूरी नहीं होती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है - ' होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥