नि:संकोच : गांधी जी ने सौ साल पहले कहा था- 'लोकराज्य ही रामराज्य है!'

विनय संकोची
'राम राज्य' (Ramraj) का सपना भी सुखद अहसास देता है। 'राम राज्य' को धर्म से जोड़कर देखा जाता रहा है, उस धर्म से जो कट्टरतावादी सोच के चलते अधर्म की पगडंडी पर चलता दिखाई पड़ता है। 'राम राज्य' जिस धर्म के पालन से स्थापित हो सकता है, वह है राजधर्म। लेकिन धर्म के इसी स्वरूप की सबसे कम चर्चा होती है। 'जैसा राजा वैसी प्रजा' का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और पूरी तरह से राजधर्म (Ramraj) पर आधारित है। राम ने पग-पग पर राजधर्म का पालन किया है। राज्याभिषेक से एक दिन पूर्व महाराज दशरथ ने श्रीराम (Lord Ram) को राजधर्म का पाठ पढ़ाते हुए कहा था-'कल तुम्हारा राज्याभिषेक है। तुमको राजमुकुट पहनाया जाएगा, परंतु याद रखना जो राजमुकुट पहनता है, वह स्वयं को अपने राज्य और प्रजा को सौंप देता है। एक राजा का अर्थ है, संन्यासी हो जाना।' संन्यासी का एक अर्थ है - 'सब का हो जाना।'
राजा जब सबका हो जाता है, तो सब अपने आप राजा के हो जाते हैं और रामराज्य का सपना आकार लेने लगता है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास जैसे नारे लगाने मात्र से कुछ होता नहीं है, कुछ होने वाला नहीं है, क्योंकि इस बारे में जो 'सब' है वह सच नहीं है और उसमें 'सब' तो कतई नहीं है। इस 'सब' में उन वर्गों की प्रधानता है, जो राजा और सत्ता के विशेष कृपा पात्र हैं। यूं तो जब योजनाएं बनती हैं, तो थोड़ा घना लाभ सबको मिल ही जाता है। लेकिन पिछले दरवाजे से विशेष कृपा कुछ खास लोगों, वर्गों को ही नसीब होती है। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि न राजा सबको पसंद करता है और न ही राजा को सभी वर्ग या लोग पसंद करते हैं। इस पसंद नापसंद के चक्रव्यूह में फंसते वही लोग हैं जिन्हें राजा पसंद नहीं होता है और राजा भी जिन्हें पसंद नहीं करता है। प्रक्रिया रामराज्य की स्थापना में सबसे अधिक बाधक है।
भगवान राम (Lord Ram) ने राजा बनकर स्वयं को राज्य और प्रजा को सौंप दिया था, समर्पित कर दिया था। तभी रामराज्य स्थापित हुआ था। राजा होने का अहंकार प्रजा के प्रति भेदपूर्ण नीति, आलोचना को निंदा मानना और मैं ही सर्वोपरि हूं का भाव रखने वाला शासक 'राम राज्य' लाने की बात तो कर सकता है लेकिन 'राम राज्य' ला नहीं सकता। महात्मा गांधी 'राम राज्य' के प्रबल समर्थक थे।
22 मई 1921 को गुजराती 'नवजीवन' में लिखे अपने लेख में बापू ने लिखा था-'हम तो राम राज्य का अर्थ स्वराज, धर्म राज, लोकराज करते हैं। वैसा राज्य तो तभी संभव है, जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान बने ...अभी तो कोई सद्गुणी राजा भी यदि स्वयं प्रजा के बंधन काट दे, तो प्रजा उसकी गुलाम बनी रहेगी।' क्या महात्मा गांधी द्वारा 100 वर्ष पूर्व दिया गया यह बयान आज भी प्रासंगिक नहीं है। आज एक बड़ा वर्ग आत्मा से सत्ता का गुलाम होकर न खुद स्वतंत्र होना चाहता है, न दूसरों को स्वतंत्र होते देखना चाहता है। क्या ऐसी सोच के चलते 'राम राज्य' स्थापित हो सकता है? यहां 'राम राज्य' का सपना देखने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि जैसा मैंने पूर्व में कहा 'राम राज्य' का सपना भी सुखद एहसास की अनुभूति कराता है।
20 मार्च 1930 को हिंदी पत्रिका 'नव जीवन' में 'स्वराज और राम राज्य' शीर्षक से एक लेख गांधी जी ने लिखा, जिसमें उन्होंने कहा था-'यदि किसी को राम राज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्म राज्य कहूंगा। राम राज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धैर्य पूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा।' पिछले कुछ वर्षों से सारा देश देखता रहा है कि लोकमत का निरादर करते हुए किस तरह सत्ता कब्जाने का भद्दा खेल खेला जा रहा है। लोक जिन्हें सत्ता के सिंहासन पर बैठाता है, उन्हें षड्यंत्र कर सिंहासन से उतार दिया जाता है। रामराज्य ऐसा ही होता है, रामराज ऐसे ही आता है क्या?
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विनय संकोची
'राम राज्य' (Ramraj) का सपना भी सुखद अहसास देता है। 'राम राज्य' को धर्म से जोड़कर देखा जाता रहा है, उस धर्म से जो कट्टरतावादी सोच के चलते अधर्म की पगडंडी पर चलता दिखाई पड़ता है। 'राम राज्य' जिस धर्म के पालन से स्थापित हो सकता है, वह है राजधर्म। लेकिन धर्म के इसी स्वरूप की सबसे कम चर्चा होती है। 'जैसा राजा वैसी प्रजा' का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और पूरी तरह से राजधर्म (Ramraj) पर आधारित है। राम ने पग-पग पर राजधर्म का पालन किया है। राज्याभिषेक से एक दिन पूर्व महाराज दशरथ ने श्रीराम (Lord Ram) को राजधर्म का पाठ पढ़ाते हुए कहा था-'कल तुम्हारा राज्याभिषेक है। तुमको राजमुकुट पहनाया जाएगा, परंतु याद रखना जो राजमुकुट पहनता है, वह स्वयं को अपने राज्य और प्रजा को सौंप देता है। एक राजा का अर्थ है, संन्यासी हो जाना।' संन्यासी का एक अर्थ है - 'सब का हो जाना।'
राजा जब सबका हो जाता है, तो सब अपने आप राजा के हो जाते हैं और रामराज्य का सपना आकार लेने लगता है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास जैसे नारे लगाने मात्र से कुछ होता नहीं है, कुछ होने वाला नहीं है, क्योंकि इस बारे में जो 'सब' है वह सच नहीं है और उसमें 'सब' तो कतई नहीं है। इस 'सब' में उन वर्गों की प्रधानता है, जो राजा और सत्ता के विशेष कृपा पात्र हैं। यूं तो जब योजनाएं बनती हैं, तो थोड़ा घना लाभ सबको मिल ही जाता है। लेकिन पिछले दरवाजे से विशेष कृपा कुछ खास लोगों, वर्गों को ही नसीब होती है। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि न राजा सबको पसंद करता है और न ही राजा को सभी वर्ग या लोग पसंद करते हैं। इस पसंद नापसंद के चक्रव्यूह में फंसते वही लोग हैं जिन्हें राजा पसंद नहीं होता है और राजा भी जिन्हें पसंद नहीं करता है। प्रक्रिया रामराज्य की स्थापना में सबसे अधिक बाधक है।
भगवान राम (Lord Ram) ने राजा बनकर स्वयं को राज्य और प्रजा को सौंप दिया था, समर्पित कर दिया था। तभी रामराज्य स्थापित हुआ था। राजा होने का अहंकार प्रजा के प्रति भेदपूर्ण नीति, आलोचना को निंदा मानना और मैं ही सर्वोपरि हूं का भाव रखने वाला शासक 'राम राज्य' लाने की बात तो कर सकता है लेकिन 'राम राज्य' ला नहीं सकता। महात्मा गांधी 'राम राज्य' के प्रबल समर्थक थे।
22 मई 1921 को गुजराती 'नवजीवन' में लिखे अपने लेख में बापू ने लिखा था-'हम तो राम राज्य का अर्थ स्वराज, धर्म राज, लोकराज करते हैं। वैसा राज्य तो तभी संभव है, जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान बने ...अभी तो कोई सद्गुणी राजा भी यदि स्वयं प्रजा के बंधन काट दे, तो प्रजा उसकी गुलाम बनी रहेगी।' क्या महात्मा गांधी द्वारा 100 वर्ष पूर्व दिया गया यह बयान आज भी प्रासंगिक नहीं है। आज एक बड़ा वर्ग आत्मा से सत्ता का गुलाम होकर न खुद स्वतंत्र होना चाहता है, न दूसरों को स्वतंत्र होते देखना चाहता है। क्या ऐसी सोच के चलते 'राम राज्य' स्थापित हो सकता है? यहां 'राम राज्य' का सपना देखने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि जैसा मैंने पूर्व में कहा 'राम राज्य' का सपना भी सुखद एहसास की अनुभूति कराता है।
20 मार्च 1930 को हिंदी पत्रिका 'नव जीवन' में 'स्वराज और राम राज्य' शीर्षक से एक लेख गांधी जी ने लिखा, जिसमें उन्होंने कहा था-'यदि किसी को राम राज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्म राज्य कहूंगा। राम राज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धैर्य पूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा।' पिछले कुछ वर्षों से सारा देश देखता रहा है कि लोकमत का निरादर करते हुए किस तरह सत्ता कब्जाने का भद्दा खेल खेला जा रहा है। लोक जिन्हें सत्ता के सिंहासन पर बैठाता है, उन्हें षड्यंत्र कर सिंहासन से उतार दिया जाता है। रामराज्य ऐसा ही होता है, रामराज ऐसे ही आता है क्या?
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