Hindi Kahani - दुःख का कारण

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar19 Sep 2023 12:05 PM
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Hindi Kahani - एक शहर में एक आलीशान और शानदार घर था। वह शहर का सबसे ख़ूबसूरत घर माना जाता था। लोग उसे देखते, तो तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाते।

एक बार घर का मालिक किसी काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर चला गया।

कुछ दिनों बाद जब वह वापस लौटा, तो देखा कि उसके मकान से धुआं उठ रहा है। करीब जाने पर उसे घर से आग की लपटें उठती हुई दिखाई पड़ी। उसका ख़ूबसूरत घर जल रहा था। वहाँ तमाशबीनों की भीड़ जमा थी, जो उस घर के जलने का तमाशा देख रही थी।

अपने ख़ूबसूरत घर को अपनी ही आँखों के सामने जलता हुए देख वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? कैसे अपने घर को जलने से बचाये? वह लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा कि वे किसी भी तरह उसके घर को जलने से बचा लें।

उसी समय उसका बड़ा बेटा वहाँ आया और बोला, “ पिताजी, घबराइए मत सब ठीक हो जायेगा।”

इस बात पर कुछ नाराज़ होता हुआ पिता बोला, “कैसे न घबराऊँ? मेरा इतना ख़ूबसूरत घर जल रहा है।”

बेटे ने उत्तर दिया, “पिताजी, माफ़ कीजियेग, एक बात मैं आपको अब तक बता नहीं पाया था। कुछ दिनों पहले मुझे इस घर के लिए एक बहुत बढ़िया खरीददार मिला था। उसने मेरे सामने मकान की कीमत की तीन गुना रकम का प्रस्ताव रखा। सौदा इतना अच्छा था कि मैं इंकार नहीं कर पाया और मैंने आपको बिना बताये सौदा तय कर लिया।”

ये सुनकर पिता की जान में जान आई। उसने राहत की सांस ली और आराम से यूं खड़ा हो गया, जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो। अब वह भी अन्य लोगों की तरह तमाशबीन बनकर उस घर को जलते हुए देखने लगा।

तभी उसका दूसरा बेटा आया और बोला, “पिताजी हमारा घर जल रहा है और आप हैं कि बड़े आराम से यहाँ खड़े होकर इसे जलता हुआ देख रहे हैं। आप कुछ करते क्यों नहीं?”

“बेटा चिंता की बात नहीं है। तुम्हारे बड़े भाई ने ये घर बहुत अच्छे दाम पर बेच दिया है। अब ये हमारा नहीं रहा। इसलिए अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता” पिता बोला।

“पिताजी भैया ने सौदा तो कर दिया था, लेकिन अब तक सौदा पक्का नहीं हुआ है। अभी हमें पैसे भी नहीं मिले हैं। अब बताइए, इस जलते हुए घर के लिए कौन पैसे देगा?”

यह सुनकर पिता फिर से चिंतित हो गया और सोचने लगा कि कैसे आग की लपटों पर काबू पाया जाए। वह फिर से पास खड़े लोगों से मदद की गुहार लगाने लगा।। तभी उसका तीसरा बेटा आया और बोला, “पिता जी घबराने की सच में कोई बात नहीं है। मैं अभी उस आदमी से मिलकर आ रहा हूँ, जिससे बड़े भाई ने मकान का सौदा किया था। उसने कहा है कि मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ। मेरे आदर्श कहते हैं कि चाहे जो भी हो जाये, अपनी जुबान पर कायम रहना चाहिए। इसलिए अब जो हो जाये, जबान दी है, तो घर ज़रूर लूँगा और उसके पैसे भी दूंगा।”

पिता फिर से चिंतामुक्त हो गया और घर को जलते हुए देखने लगा।।

Hindi Kahani - सीख : मित्रों, एक ही परिस्थिति में व्यक्ति का व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है और यह व्यवहार उसकी सोच के कारण होता है। उदाहारण के लिए जलते हुए घर के मालिक को ही लीजिये। घर तो वही था, जो जल रहा था। लेकिन उसके मालिक की सोच में कई बार परिवर्तन आया और उस सोच के साथ उसका व्यवहार भी बदलता गया। असल में, जब हम किसी चीज़ से जुड़ जाते हैं, तो उसके छिन जाने पर या दूर जाने पर हमें दुःख होता है। लेकिन यदि हम किसी चीज़ को ख़ुद से अलग कर देखते हैं, तो एक अलग सी आज़ादी महसूस करते हैं और दु:ख हमें छूता तक नहीं है। इसलिए दु:खी होना और ना होना पूर्णतः हमारी सोच और मानसिकता (mindset) पर निर्भर करता है। सोच पर नियंत्रण रखकर या उसे सही दिशा देकर हम बहुत से दु:खों और परेशानियों से न सिर्फ बच सकते हैं, बल्कि जीवन में नई ऊँचाइयाँ भी प्राप्त कर सकते हैं। Hindi Kahani

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Hindi Kavita – मरुस्थल सरीखी आँखों में

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 02:02 PM
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Hindi Kavita – उसने कहा- मरुस्थल सरीखी आँखों में मृगमरीचिका-सा भ्रमजाल होता है, क्योंकि बहुत पहले मरुस्थल, मरुस्थल नहीं थे, वहाँ भी पानी के दरिया, जंगल हुआ करते थे गिलहरियाँ ही नहीं उसमें गौरैया के भी नीड़ हुआ करते थे हवा के रुख़ ने मरुस्थल बना दिया अब कुछ पल टहलने आए बादल कुलाँचें भरते हैं अबोध छौने की तरह पढ़ते हैं मरुस्थल को बादलों को पढ़ना आता है जैसे विरहिणी पढ़ती है उम्रभर एक ही प्रेम-पत्र बार-बार वैसे ही पढ़ा जाता है मरुस्थल को मरुस्थल होना नदी होने जितना सरल नहीं होता सहज नहीं होता इंतज़ार में आँखें टाँकना इच्छाओं के एक-एक पत्ते को झरते देखना; बंजरपन किसी को नहीं सुहाता मरुस्थल को भी नहीं वहाँ दरारें होती हैं एक नदी के विलुप्त होने की।

अनीता सैनी

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Hindi Kavita – तलाशी

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Hindi Kavita
locationभारत
userचेतना मंच
calendar18 Sep 2023 11:59 AM
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Hindi Kavita – उन्होंने कहा- "हैण्ड्स अप!" एक-एक अंग फोड़ कर मेरा उन्होंने तलाशी ली! मेरी तलाशी में मिला क्या उन्हें? थोड़े से सपने मिले और चांद मिला सिगरेट की पन्नी-भर, माचिस-भर उम्मीद, एक अधूरी चिट्ठी जो वे डीकोड नहीं कर पाये क्योंकि वह सिन्धुघाटी सभ्यता के समय मैंने लिखी थी- एक अभेद्य लिपि में- अपनी धरती को- "हलो धरती, कहीं चलो धरती, कोल्हू का बैल बने गोल-गोल घूमें हम कब तक? आओ, कहीं आज घूरते हैं तिरछा एक अगिनबान बन कर इस ग्रह-पथ से दूर! उन्होंने चिट्ठी मरोड़ी और मुझे कोंच दिया काल-कोठरी में! अपनी क़लम से मैं लगातार खोद रही हूँ तब से काल-कोठरी में सुरंग! कान लगा कर सुनो- धरती की छाती में क्या बज रहा है! क्या कोई छुपा हुआ सोता है? और दूर उधर- पार सुरंग के- वहाँ दिख रही है कि नहीं दिखती एक पतली रोशनी और खुला-खिला घास का मैदान! कैसी ख़ुशनुमा कनकनी है! हो सकता है - एक लोकगीत गुज़रा हो कल रात इस राह से! नन्हें-नन्हें पाँव उड़ते हुए से गए हैं ओस नहाई घास पर! फिलहाल, बस एक परछाईं ओस के होंठों पर थरथराती सी बची है पहला एहसास किसी सृष्टि का देखो तो- टप-टप टपकता है कैसे!

अनामिका

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