हकलाहट जागरूकता दिवस : हकलाने का बुद्धिमानी से कुछ लेना देना नहीं

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:19 AM
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 विनय संकोची

आज 'इंटरनेशनल स्टटरिंग अवेयरनेस डे' यानी 'अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस है'। हकलाना बोलने से संबंधित विकार है, जिसको लेकर विकार के शिकार को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ जाता है। हकलाने वाले की नकल उतारकर लोग मजाक बनाते देखे जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 1 और भारत में 1.5 प्रतिशत लोग हकलाहट की गिरफ्त में है।

इस दिवस को जागरूकता अभियान के रूप में 1998 से मनाया जा रहा है। हकलाहट के प्रति जागरूक और शिक्षित करने का यह बेहतर अभियान और दिन है। हकलाना मानव वाक शक्ति में एक वाक बाधा है, जिसमें बोलने वाला शब्दों को खींचकर बोलता है या फिर आधे अधूरे शब्द की बोल पाता है। हकलाना कोई आनुवांशिक बीमारी नहीं है, अधिकांश मामलों में यह वातावरण के प्रभाव से होने वाली परेशानी है।

तमाम ऐसे मामले भी सामने आए हैं कि जब छोटा बच्चा किसी हकलाने वाले के संपर्क में आता है तो वे उसकी नकल करने लगता है और आगे चलकर यह उस बच्चे की आदत बन जाती है। जब यह बच्चा हकलाते हुए बड़ा होता है तो वह असहज हो जाता है और हीन भावना से ग्रस्त हो लोगों से मिलने जुलने से कतराने लगता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भावुक लोग ज्यादा हकलाते हैं। इसके अलावा एक साथ बहुत सी चीजें सोचने वाले भी हकलाहट के शिकार हो जाते हैं।

हकलाने से बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी आत्मविश्वास कम होने लगता है और वे अपने मन के भावों को व्यक्त करने से बचने लगते हैं। इस कारण हकलाने वाले बहुत से लोग हीन भावना और कुंठा का शिकार हो जाते हैं, जिसका उनके भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

हकलाने की समस्या देखने में बेशक बहुत गंभीर न लगती हो लेकिन इस समस्या से ग्रस्त लोगों को पढ़ाई और नौकरी पाने में परेशानी का सामना करना ही पड़ता है। हकलाने वाले एकाकी हो जाते हैं और इसी कारण उनके ज्यादा दोस्त नहीं होते हैं। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हकलाने वाले लोग कम बुद्धिमान होते हैं लेकिन यह केवल एक भ्रम है क्योंकि हकलाने का बुद्धिमानी से कुछ भी लेना देना नहीं है।

हकलाना एक बीमारी तो है लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका उपचार संभव है। अपनी प्रबल इच्छा शक्ति और सतत प्रयास से हकलाने पर काबू पाने के अनेक उदाहरण देखने में आते हैं। ब्रिटिश लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन, महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु, पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, आर्टेम ट्राटेस्की, ब्रूस विलिस, मर्लिन मुनरो आदि विभिन्न क्षेत्रों की तमाम चर्चित और विश्व प्रसिद्ध हस्तियों ने हकलाहट पर काबू पाया। जानना रोचक होगा कि हकलाना नेपोलियन को एक महान कमांडर बनने से नहीं रोक पाया। रोमन सम्राट क्लाडियस उपचार के बाद हकलाने से मुक्त हो गए थे। प्रसिद्ध बॉलीवुड स्टार रितिक रोशन भी बचपन में हकलाते थे और स्कूल जाने से कतराते थे, लेकिन स्पीच थेरेपी व अन्य उपचार से उन्होंने सामान्य रूप से बोलना शुरू कर दिया। ऐसे एक नहीं, अनेक नहीं अनेकानेक उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि हकलाहट पर जीत हासिल की जा सकती है।

हकलाने वालों का मजाक उड़ाने के बदले उन्हें स्पष्ट बोलने के लिए प्रेरित उत्साहित करने की आवश्यकता है। हकलाहट से ग्रस्त लोगों को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि यदि उन्होंने उपचार और प्रयास जारी रखा तो एक दिन वे भी स्पष्ट और धाराप्रवाह बोलेंगे, मधुर आवाज में।

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हमाम में सब नगें हैं ! जाति व धर्म की राजनीति का सच

हमाम में सब नगें हैं ! जाति व धर्म की राजनीति का सच
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 07:36 PM
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विनय संकोची

जाति, धर्म, संप्रदाय, पंथ, समुदाय और उनसे जुड़े लोग राजनीतिज्ञों की दृष्टि में वोट के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। नेताओं का प्यार व्यक्ति और जाति के लिए नहीं वोटों के लिए उमड़ता है। आज तो सुविधाएं और सेवाएं भी जाति धर्म देखकर बांटी जाती हैं। धर्म निरपेक्षता का चोला पहनने वाली पार्टियां भी और धर्मनिरपेक्षता को न मानने वाले दल भी सब के सब जातिवादी, धर्म-पंथवादी राजनीति करने में व्यस्त हैं। मजे की बात तो यह है कि हमाम में खड़े नंगे एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। एक दूसरे के नंगेपन का उपहास कर रहे हैं।

जब कांग्रेस ने पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाया तो भाजपा के प्रवक्ताओं ने चैनलों पर बैठकर छींटाकशी की। कांग्रेस ने पूरे देश में पहला दलित मुख्यमंत्री बनाकर कथित रूप से मास्टर स्ट्रोक खेला है, जिससे भाजपा के माथे पर बल पड़ गए हैं और उसे लगता है कि वह एक बार फिर पंजाब की सत्ता से दूर रह जाएगी। लेकिन हाल फिलहाल में भाजपा का एकमात्र लक्ष्य उत्तर प्रदेश का किला जीतना है।

भाजपा उत्तर प्रदेश में मजबूत तो है लेकिन 2022 में बड़ी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है और आश्वस्त इसलिए नहीं है क्योंकि किसान आंदोलन के पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव का उसे अनुमान है। एक बेहद सफल किसान महापंचायत के आयोजन से भाजपा असहज हो गई है। भाजपा की बेचैनी का एक बड़ा कारण यह भी है कि महापंचायत में किसान नेताओं ने खुलकर भाजपा की आलोचना की थी। भाजपा समझ चुकी है कि जाट बहुल इलाकों में उसे बड़ा नुकसान आने वाले चुनाव में हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ( PM Narender Modi ) ने अलीगढ़ में जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के शिलान्यास के बहाने पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय को साधने की कोशिश की। वास्तव में यह शिलान्यास किसान आंदोलन से उपजे गुस्से को कम करने का भाजपा का एक दांव है। मोदी ने बड़ी-बड़ी बातें अपने भाषण में कहीं लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव  UP Loksabha Election ) से मात्र 6 महीने पहले जाट राजा की याद कैसे आ गई। पूर्ववर्ती सरकारों पर जाट राजा की उपेक्षा करने का आरोप लगाकर मोदी वोट बटोरने की कोशिश ही तो कर रहे थे। भाजपा को जाट हितैषी साबित करने का प्रयास ही तो कर रहे थे। लेकिन यह दांव कितना कारगर होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। सवाल यह है कि क्या लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे जाट किसान मोदी सरकार द्वारा एक भी मांग न माने जाने के बावजूद केवल इस बात पर उसे वोट दे देंगे कि जाट राजा के नाम पर विश्वविद्यालय का शिलान्यास हो गया है।

दूसरे किसान पंचायत  में "अल्लाह हू अकबर - हर हर महादेव" के नारे लगने के बाद जाट- मुस्लिम एकता की संभावना से भाजपा कुछ ज्यादा ही बेचैन हो उठी है। यही कारण है कि उसे जाट-गुर्जर एकता में अपनी जीत का मंत्र दिखाई दे रहा है।

गुर्जरों को साधने के लिए योगी आदित्यनाथ ने दादरी में गुर्जर सम्राट चक्रवर्ती राजा मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया है। गुर्जर जाति को प्रदेश के 32 जिलों की 60 विधानसभा सीटों पर प्रभावी माना जाता है इसलिए "प्रतिमा पॉलिटिक्स" के जरिए भाजपा इस वोट बैंक को साधना चाहती है। वैसे तो भाजपा का दावा है कि 2017 विधानसभा चुनाव में गुर्जर पार्टी के साथ थे। लेकिन विचारणीय यह भी है कि गुर्जर जाति का एक बड़ा वर्ग किसान भी है और किसान परेशान है। क्या परेशान जाट और गुर्जर किसान मूर्तियों के नाम पर भाजपा के पक्ष में वोट देंगे? भाजपा जातिवादी राजनीति कर रही है और दूसरे दलों पर जातिवादी होने का आरोप भी लगा रही है, यह भी एक तरीके की राजनीति ही है।

बहरहाल इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि जाट (Jaat) समुदाय की भाजपा के प्रति नाराजगी और बेरुखी से पार्टी परेशान है। परेशानी का कारण यह है कि भाजपा ने 2017 के चुनाव में जाट बहुल क्षेत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और इस बार उसे ऐसा होता हुआ नहीं लग रहा है। यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ गुर्जर बहुल क्षेत्रों के लगातार दौरे कर रहे हैं ताकि जाट वोटों के नुकसान की भरपाई गुर्जर वोटों से की जा सके।

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सम्पादकीय

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar21 Sep 2021 06:10 PM
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आर पी राघुवंशी ‘चेतना मंच’ के संपादक प्रतिष्ठित पत्रकार रामपाल रघुवंशी हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में तीन दशकों से सक्रिय श्री रघुवंशी का जन्म 26 जुलाई 1967 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव गढ़ी नौआबाद में साधारण किसान परिवार में हुआ। गांव में आरंभिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह डीएवी कॉलेज, मुजफ्फरनगर में दाखिल हुए। पिता सोहनबीर सिंह चाहते थे कि बेटा सरकारी नौकरी में जाए लेकिन रामपाल का मन तो कविताएं लिखने, नाटकों और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने में ज्यादा लगता था। वह किसान नेता चौधरी चरण सिंह के ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ से अति प्रभावित थे। इसी के चलते छात्र राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे। इस दरम्यान वह पत्रकारिता के निकट संपर्क में आए। उन्होंने महसूस किया कि पत्रकारिता के जरिए वह समाज और देश की बेहतर सेवा कर सकेंगे और अंततोगत्वा उन्होंने सामाजिक मुददों को लेकर संघर्ष और लोगों को न्याय दिलाने के लिए पत्रकारिता पेशे को अपना लिया। दैनिक सम्राट, दैनिक देहात, दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हिन्ट सरीखे अखबारों के संवाददाता, उपसंपादक, समाचार संपादक, संपादक का दायित्व निर्वहन किया। इन अखबारों में काम करते-करते उन्हें समझ आया कि निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा मालिकान के आर्थिक हित हैं। इस दबाव से पार पाए बिना निष्ठा से सच्ची पत्रकारिता नहीं की जा सकती। यही सोच अपना अखबार शुरू करने का कारण बनी। 21 दिसंबर 1998 को सपना साकार हुआ और ‘चेतना मंच’ की शुरूआत हुई। तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा0 मुरली मनोहर जोशी ने अखबार के प्रथम संस्करण का लोकार्पण किया। तमाम उद्यमी, व्यवसायी, राजनीतिक नेता, अधिकारी, प्रतिष्ठित नागरिक, पत्रकार साक्षी रहे। इस मौके पर संपादक श्री रघुवंशी ने कहा कि जब लाखों पाठक गर्व से बोलेंगे – हां चेतना मंच हमारा अपना अखबार है, उस दिन हमारी टीम का सपना सही मायने में पूरा होगा। मार्के की बात यह है कि सामान्य पत्रकारों की टीम इस अखबार को 18 वर्षों से न केवल सफलता पूर्वक चला रही है, बल्कि इसकी सामग्री, स्तर, साज-सज्जा और समाचारों की विश्वसनीयता में लगातार सुधार कर रही है। इसी का परिणाम है आज चेतना मंच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक वितरित और पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र बन गया है। श्री रघुवंशी इसका श्रेय चेतना मंच की टीम के साथ बजरंगबली के आशीर्वाद को देते हैं। उन्होंने स्पष्ट कर रखा है कि टीम के निष्ठावान सदस्य ही भविष्य में अखबार के खुलने वाले संस्करणों के स्वामी और नियंता होंगे। लक्ष्य चेतना मंच को पश्चिमी भारत का प्रमुख हिन्दी दैनिक बनाना है और इसे हम टीम के परिश्रम और समर्पण भावना से हासिल करके रहेंगे।