Cancer Treatment : इस ट्रायल में हर मरीज के शरीर से गायब हुआ कैंसर

Cancer treatment
Cancer Treatment
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 12:47 PM
bookmark

Cancer Treatment : कैंसर के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी ड्रग ट्रॉयल के दौरान हर मरीज का कैंसर पूरी तरह से खत्म हो गया हो। इसे किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा है। अमरीका स्थित न्यूयॉर्क मेमोरियल सोलन कैटेरिंग कैंसर सेंटर में ये चमत्कार हुआ है, जिस पर मेडिकल समुदाय चकित है।

Cancer Treatment

सेंटर के डॉ. लुइस ए. डियाज जे ने बताया कि 'इतिहास में पहली बार' एक छोटे से क्लीनिकल ट्रायल में ये पाया गया है कि रेक्टल (अमाशय संबंधी) कैंसर के जितने रोगियों का प्रायोगिक उपचार किया जा रहा था, उनके परीक्षण में पाया गया कि उनका कैंसर गायब हो गया था। इस क्लीनिकल परीक्षण में 18 रोगियों ने लगभग छह महीने तक डोस्टारलिमैब नामक दवा ली और अंत में, उनमें से हर एक ने देखा कि उनके ट्यूमर गायब हो गए हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित खबर के अनुसार, क्लीनिकल परीक्षण में शामिल रोगियों ने पहले कीमोथेरेपी, रेडियोथैरेपी और शल्य चिकित्सा जैसे उपचार लिए थे, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें आंत्र , मूत्र, और यहां तक कि यौन निष्क्रियता का सामना करना पड़ सकता था। खबर के अनुसार ये सभी 18 रोगी इलाज के अगले चरण के रूप में इन प्रक्रियाओं से गुजरने की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि, उनके लिए ये आश्चर्यजनक रहा कि उन्हें , आगे किसी इलाज की आवश्यकता ही नहीं थी।

https://twitter.com/ani_digital/status/1534373873361506310?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1534373873361506310%7Ctwgr%5E%7Ctwcon%5Es1_c10&ref_url=https%3A%2F%2Fwww.patrika.com%2Fhealth-news%2Fmiracle-in-cancer-treatment-cancer-cure-for-the-first-time-in-world-7580620%2F

विशेषज्ञों के अनुसार, डोस्टारलिमैब एक प्रयोगशाला-निर्मित मोलिक्यूल्स आधारित दवा है और यह मानव शरीर में एंटीबॉडी के स्थानापन्न के रूप में कार्य करती है। गौर करने के बात ये है कि इस ट्रायल में ये देखा गया है कि इस दवा को लेने के बाद किसी भी प्रकार के शारीरिक परीक्षण जैसे एंडोस्कोपी; पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी या पीईटी स्कैन या एमआरआई स्कैन आदि से कैंसर का पता नहीं चल पाता है।

अगली खबर पढ़ें

Health : 'राजमा' के सेवन से काया बने निरोगी!

Rajma recipe 001
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:30 AM
bookmark
विनय संकोची Health : 'राजमा'(Kidney Beans) का उत्पत्ति स्थल तो अमेरिका है लेकिन जिन तमाम देशों में इसे बड़े शौक से खाया जाता है, उसमें अपना देश भारत भी है। राजमा का वैज्ञानिक नाम है, फैजियोलस बल्गेरिस है और इसका बीज अधिकतर गुर्दे के आकार का होता है। भारत में राजमा उत्तराखंड के पर्वतीय स्थल, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। भारतीयों को राजमा चावल बहुत पसंद होते हैं, संभवत इसका कारण यह है कि यह स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है। कोलस्ट्रोल रहित राजमा में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, शर्करा, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, जिंक, विटामिन सी, थायमिन, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी6, फोलेट, विटामिन के, विटामिन ई, फैटी एसिड टोटल मोनोसैचुरेटेड, फैटी एसिड पॉलीअनसैचुरेटेड, फैटी एसिड टोटल ट्रांस जैसे पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं, जो राजमा को सेहत का रखवाला बनाते हैं। राजमा काला, गहरा लाल, हल्का लाल, गुलाबी और सफेद रंगों में मिलता है। सफेद राजमा जिसे नॉर्दर्न बीन्स के नाम से जाना जाता है, इसका उपयोग सर्वाधिक फ्रांस में होता है। यह तो हुआ राजमा का संक्षिप्त परिचय, अब जानते हैं इसके गुण व उपयोग के बारे में - • आजकल युवाओं में शरीर सौष्ठव के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है। आकर्षक मजबूत शरीर बनाने में राजमा मददगार हो सकता है। बॉडी बिल्डिंग के लिए प्रोटीन की शरीर को बहुत आवश्यकता होती है। इस जरूरत को राजमा पूरी कर सकता है। राजमा में तो प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के साथ फाइबर और आयरन भी अच्छी मात्रा में होते हैं, जो सुडौल शरीर बनाने में सहायक होते हैं। • कब्ज़ अनेक बीमारियों की जड़ है। राजमा में फाइबर अच्छी मात्रा में होता है, जो भोजन को पचाने में सहायक है और भोजन का ठीक से पच जाना मतलब कब्ज़ से छुटकारा। • राजमा दिल का भी दोस्त है। राजमा के सेवन से दो बड़े लाभ हैं। पहला यह कि राजमा एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और दूसरा इसमें मौजूद मैग्नीशियम ब्लड प्रेशर को कम करता है। यह दोनों ही स्थितियां हृदय को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हैं। • कैंसर एक बेहद गंभीर रोग है। राजमा कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है। राजमा के सेवन से शरीर में बायोएक्टिव यौगिक की भरपाई होती है, जो कैंसर से बचाने में सहायता करती है। • मधुमेह एक ऐसी खतरनाक समस्या है, जो शरीर में अन्य अनेक जानलेवा बीमारियों को जन्म देती है। राजमा के सेवन से मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। राजमा में मौजूद कार्बोहाइड्रेट्स मधुमेह को कंट्रोल करता है। • राजमा में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है, जिसके कारण शरीर में मौजूद गुड कोलस्ट्रोल तो प्रभावित नहीं होता है, परंतु बैड कोलेस्ट्रॉल घटता है। राजमा में मौजूद फाइबर कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। • राजमा मस्तिष्क के प्रारंभिक विकास में सहायक है और नर्वस सिस्टम को भी नियंत्रित करता है। राजमा में पाया जाने वाला कोलीन नामक तत्व मस्तिष्क के स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने में सहायता करता है। • राजमा में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का गुण भी होता है। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए शरीर को विटामिन बी6, जिंक, आयरन, फोलिक और एंटीऑक्सीडेंट जैसे तत्वों की जरूरत होती है,ये सभी राजमा से मिल सकते हैं। • राजमा को अपनी खुराक में शामिल कर रक्तचाप को भी नियंत्रित रखा जा सकता है। • राजमा के सेवन से हड्डियों को भी मजबूती मिलती है। हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक कैल्शियम और मैग्नीशियम जरूरी तत्व को राजमा को आहार में शामिल कर प्राप्त किए जा सकते हैं।  जरूरी बात : राजमा के जरूरत से ज्यादा सेवन से मांसपेशियों से जुड़ी समस्या, पेट में गैस और सूजन हो सकती है। ज्यादा राजमा खाने से इसमें मौजूद फोलिक एसिड की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। ज्यादा मात्रा में राजमा खाना उल्टी, पेट दर्द और कब्ज़ का कारण बन सकता है। विशेष : यहां राजमा के गुण और उपयोग के बारे में विशुद्ध सामान्य जानकारी दी गई है। यह सामान्य जानकारी चिकित्सकीय परामर्श का विकल्प नहीं है। इसलिए हम किसी उपाय अथवा जानकारी की सफलता का दावा नहीं करते हैं। रोग विशेष के उपचार में राजमा को औषधि रूप में अपनाने से पूर्व योग्य आयुर्वेदाचार्य/चिकित्सक/आहार विशेषज्ञ से परामर्श जरूरी है।
अगली खबर पढ़ें

Ayurveda: औषधीय गुणों का खजाना भी है पवित्र 'रुद्राक्ष'

Rudraksha Tree
locationभारत
userचेतना मंच
calendar07 Jun 2022 03:24 PM
bookmark
विनय संकोची  सृष्टि ( Universe) के आरंभ से प्राणी जगत और वनस्पति का अटूट संबंध रहा है। वृक्षों को पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मनुष्य का गुरु, जीवनदाता और संरक्षक कहा है। मनुष्य तो जीवित ही इसलिए है कि परमात्मा ने उसे उपहार में वृक्ष दिए हैं। एक समय था जब वृक्षारोपण को धर्म की संज्ञा दी जाती थी। इसे धर्म का अभिन्न अंग माना जाता था। वृक्षारोपण के संबंध में महाभारत में उल्लेख मिलता है कि वृक्ष फूलों से देवताओं का, फलों से पितरों का, व छाया से अतिथि का सत्कार करते हैं, इसलिए वृक्ष पूजनीय हैं। इन्हीं पूजनीय वृक्षों में एक अलौकिक वृक्ष है - रुद्राक्ष, जिसका संबंध भगवान शिव से है जिन्हें वेद ने रुद्र कहा है और यह रुद्र का सर्वाधिक प्रिय वृक्ष है। भगवान रुद्र(Lord Rudra) को शास्त्रों ने चिकित्सा का संरक्षक संरक्षक भी कहा है। इन्हीं स्वास्थ्य संरक्षक रुद्र ने एक बार 1000 दिव्य वर्षों तक समाधि में रहने के बाद जब दीनहीनों की करुण पुकार सुनकर नेत्र खोले, तो उनके नेत्रों से करुणा जल बिंदु छलक उठे। यह दिव्य जल बिंदु लुढ़क कर पृथ्वी पर जहां-जहां गिरे वहां अलौकिक वृक्ष प्रकट हुआ, जिसे शास्त्रों में नाम दिया 'रुद्राक्ष'। प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथों और शास्त्रों जैसे शिव पुराण श्रीमद् देवीभागवत पुराण, लिंग पुराण, निर्णय सिंधु, मंत्र महोनिधि, रुद्र संहिता आदि रुद्राक्ष का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार रुद्राक्ष वृक्ष गोड भूमि में विकसित होता है। वर्तमान में यह क्षेत्र एशिया के दक्षिणी भाग, गंगा के तराई क्षेत्र से लेकर हिमालय की पहाड़ियों और नेपाल के मध्य क्षेत्र तक माना जाता है। मनीला से प्रारंभ होकर मयन्मार के समतल भाग और नीची पहाड़ियों से होता हुआ, रुद्राक्ष वृक्ष बंगाल, असम, उत्तर पूर्वी राज्यों, बांग्लादेश, भूटान तक यह क्षेत्र विस्तारित है। यह दिव्य वृक्ष उत्तर पूर्व एशिया के जावा, कोरिया, मलेशिया, ताइवान, चीन आदि देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया, फिलिपिंस, पापुआ न्यूगिनी में भी पल्लवित पुष्पित होता है। आज भारत का यह वृक्ष भारत में ही दिखाई नहीं पड़ता है। जबकि एक समय में मथुरा, अयोध्या, हरिद्वार, काशी आदि में यह बहुतायत में पाया जाता था। इन धर्म नगरियों में रुद्राक्ष वृक्ष की उपस्थिति की गवाही शिव महापुराण भी देता है। इन क्षेत्रों में रुद्राक्ष वृक्ष स्वतः समाप्त नहीं हुआ बल्कि उसे समाप्त करने के लिए धार्मिक, सामाजिक षड्यंत्र भी संभवत: रचा गया। रुद्राक्ष के लुप्त होने के कारणों पर शोध की आवश्यकता है। वैसे इन धर्म क्षेत्रों में रुद्राक्ष वृक्ष की उपस्थिति के साक्ष्य संबंधी प्रमाण से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि यह अलौकिक वृक्ष पहाड़ों की शीतलता में ही नहीं बल्कि किसी भी जलवायु में पाला जा सकता है। रुद्राक्ष वृक्ष आध्यात्मिकता का प्राकृतिक स्वरूप है। रुद्राक्ष को आदिकाल से आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण, आत्मविश्वास में अप्रत्याशित वृद्धि और नकारात्मकता ह्रास के गुणों के व्यक्तिगत अनुभव के उपरांत स्वीकारा गया है। रुद्राक्ष आत्मविश्वास व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है, यह शास्त्रों की घोषणा है। प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि वृक्ष की पत्तियों, फल, बीज, छाल सभी में औषधीय गुण पाए जाते हैं। वर्तमान विज्ञान मानता है कि रुद्राक्ष वृक्ष अनेक बीमारियों का सफल उपचार करने में सक्षम है, जिसमें उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, मानसिक तनाव, हृदय उत्तेजना आदि सामान्य व गंभीर रोग शामिल हैं। फिलीपींस में एक शोध हुआ है जिसके अनुसार रुद्राक्ष वृक्ष की छाल बढ़ी हुई तिल्ली के उपचार का अचूक उपाय है। रुद्राक्ष की पत्तियां एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती है, जिसके कारण इनके माध्यम से किसी भी घाव को आसानी से ठीक किया जा सकता है। माइग्रेन का उपचार भी पत्तियों से संभव है। शिलांग में हुए वैज्ञानिक शोध में यह सिद्ध हुआ कि रुद्राक्ष की पत्तियां एंटी ऑक्सीडेंट है, अर्थात अधिक प्राणवायु का उत्सर्जन करती हैं। आयुर्वेद के अनुसार रुद्राक्ष वृक्ष का सर्वांग आयुवर्धक है। इससे रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। रुद्राक्ष का फल रक्त की कमी, बुखार, पीलिया, गठिया, ब्रोंकाइटिस, सर्दी जुकाम आदि में रुद्राक्ष चिकित्सक की भूमिका निभाता है। रुद्राक्ष तनाव विरोधी हैं, जो आज की सबसे बड़ी समस्या है। साथ ही पवित्रता के कारण यह पूजन अर्चन वंदन और साधना में तो काम आते ही हैं।