Ustad Rashid Khan : सदाबहार संगीत की बात ही अलग होती है जो कानों को बेहद सुकून पहुँचाने के साथ-साथ अपने दर्शकों के दिल में एक अलग छाप छोड़ जाती है। जिस छाप को दिल से मिटा पाना नामुमकिन होता है। भला दिल में कैद हुई तस्वीरों को कभी मिटाया जा सकता है क्या? बात हो अगर सदाबहार सगीत की,और उस्ताद राशिद खान की बात ना की जाए, ऐसा कैसे हो सकता है।
उत्तर प्रदेश के बदायूं में जुलाई 1968 जन्में उस्ताद राशिद खान संगीत जगत के बेहद पसंदीदा गायकों में से एक थे, जिन्होंने अपनी संगीत से श्रोताओं के दिल में एक अलग ही छाप छोड़ी है जिसे चाहकर भी दिल से मिटाया नहीं जा सकता। तो चलिए आज हम उस्ताद राशिद खान की कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं, जिसे सुनकर आपको बेहद हैरानी होगी।
हिंदुस्तानी संगीत के ख्याल गायक उस्ताद राशिद खान जब सुरों को छेड़ते हैं तो हर कोई उनका दीवाना हो जाता है। राशिद संगीत की साधना कुछ यूं करते हैं कि लोग पूरी तरह से अपनी सुध-बुध खोकर सिर्फ उन्हें ही सुनने की गुजारिश करते। ख्याल संगीत के साथ-साथ ठुमरी, भजन और तराना में भी Ustad Rashid Khan काफी दिलचस्प रखते थे और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अब तक उनसे टक्कर लेने वाला कोई नहीं हुआ।
सिंगर नहीं क्रिकेटर बनना चाहते थे Ustad Rashid Khan
क्या आप जानते हैं कि संगीत जगत के जाने-माने गायक उस्ताद राशिद खान को संगीत में कोई दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि उनकी दिलचस्पी क्रिकेट में थी और वो एक क्रिकेटर बनना चाहते थे न कि गायक। लेकिन अपने परिवार की परंपरा से वह ज्यादा दिन तक दूर नहीं रह सकें और धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी संगीत के प्रति लगातार बढ़ने लगी और उन्होने संगीत जगत में ही अपनी किस्मत आजमाई। जिसके बाद संगीत की दुनिया में अपनी अलग ही पहचान बना ली। दरअसल उस्ताद राशिद खान रामपुर-सहसवान घराना से ताल्लुक रखते थे और उस्ताद इनायत हुसैन खान साहब के परपोते और गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे थे।
Ustad Rashid Khan को प्रोगाम के लिए खानी पड़ी थी लात
अपनी आवाज का लोहा मनवा चुके उस्तीद राशिद खान को एक बार प्रोगाम देने से पहले अपने मामा निसार हुसैन खान की लात भी खानी पड़ी थी। जिसके बाद उन्होंने अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दी थी। दरअसल राशिद संगीत को बार-बार कोशिश करने के बाद भी गा नहीं पा रहे थे ऐसे में उन्हें मामा की लात खानी पड़ी थी, जिसके बाद मामला और मूड दोनों सेट हो गए। इसके बाद तो उन्होंने जो गाया, उसके लिए उनके उस्ताद ने भी कहा कि बेहतरी। जब उस्ताद 11 वर्ष के थे तभी इन्होंने दिल्ली में अपनी पहली परफॉर्मेंस दी थी। इनके संगीत में नीना पिया (अमीर खुसरो के गाने) के साथ सूफी फ्यूजन रिकॉर्ड करने से लेकर पश्चिमी वाद्य यंत्र लुई बैंक्स के साथ प्रयोगात्मक संगीत कार्यक्रम आदि शामिल है। इनके अलावा वाजिद सितार वादक शाहिद परवेज और अन्य के साथ भी अपने संगीत की जुगलबंदी को बेहद अच्छे तरह से दिखा चुके हैं।
Ustad Rashid Khan को जान से मारने की दी गई थी धमकी
जान से मारने की धमकी मिलने के बाद भी Ustad Rashid Khan ने हार नहीं मानी और लगातार बॉलीवुड फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरते रहे। जिनमें से श्रोताओं के दिल में हम दिल दे चुके सनम का ‘अलबेलो सजन आयो रे’ और जब वी मेट का ‘आओगे जब तुम हो साजना’ संगीत ने श्रोताओं के दिल में एक अलग ही छाप छोड़ी है। पद्मश्री अवॉर्ड और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके उस्ताद राशिद खान लम्बे समय से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे। संक्रमण पूरी तरह फैलने से इनकी हालत गंभीर होने लगी जिस कारण बीते मंगलवार 2024 को अस्पताल में इन्होंने हमेशा के लिए अपनी आँखें मूंद ली और संगीत की दुनिया के साथ अपने श्रोताओं को भी हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
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