छः हजार किताबें पढ़ने और उनका विश्लेषण करने वाले प्रबुद्ध लेखक व उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने महात्मा गांधी की तुलना प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में फिल्म अभिनेत्री राखी सावंत से कर दी। उन्होंने
कहा – “गांधीजी कम कपड़े पहनते थे लेकिन ऐसा नहीं है कि कम कपड़े पहनने से कोई बौद्धिक हो जाता है। कम कपड़े पहनने या उतारने से कोई बड़ा बनता तो आज राखी सावंत महात्मा गांधी से भी बड़ी होती।”
जब दीक्षित के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई तो उन्होंने कहा – “मेरे कहने का यह मतलब नहीं था।” ऐसा हमेशा होता है जब कोई नेता किसी के विरुद्ध कोई अटपटा अनर्गल बयान देता है, तो उस बयान पर विवाद के बाद उसका रटा रटाया जवाब होता है – “मेरे बयान को गलत अर्थ में लिया गया, तोड़मरोड़ कर पेश किया गया।”
दीक्षित को इस तरह की तुलना से बचना चाहिए था, लेकिन अगर बच जाते तो इतना हंगामा ही क्यों होता? जो हृदय नारायण दीक्षित के नाम से परिचित नहीं थे वे भी राखी सावंत के चक्कर में उनका नाम और पद सब कुछ जान गए। विवादित बयान भी बहुत कुछ दे जाता है और कुछ नहीं तो पहचान को विस्तार ही।
कांग्रेस को हृदय नारायण दीक्षित के विवादित बयान पर थोड़ा ही सही लेकिन राजनीति करने का मौका तो मिला है। कांग्रेस ने दीक्षित के बयान को महिलाओं और राष्ट्रपिता का अपमान बताते हुए माफी मांगने की मांग की है। अब माफी से क्या होगा, जो होना था वो तो हो गया, नहीं क्या?
अब से पहले भारतीय जनता पार्टी के कितने ही नेताओं ने गांधी जी के बारे में कितना कुछ बुरा भला कह डाला। उनमें से किसी ने माफी मांगी क्या?
तत्कालीन भाजपाध्यक्ष और वर्तमान में देश के गृहमंत्री अमित शाह ने एक समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को “चालाक बनिया” कहा था। लोगों में तीखी प्रतिक्रिया हुई, मगर शाह ने कोई माफी नहीं मांगी।
हरियाणा सरकार के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने बयान दिया था – “नरेंद्र मोदी खादी के लिए महात्मा गांधी से बड़े ब्रांड हैं।” मोदी तक ने विज को सार्वजनिक रूप से फटकार नहीं लगाई। साक्षी महाराज ने तो फारूक अब्दुल्ला और महात्मा गांधी को एक ही बाप की औलाद कह दिया था। भाजपा के किसी नेता ने साक्षी महाराज से जबान संभाल कर बात करने को नहीं कहा।
भाजपा के ही कैलाश विजयवर्गीय ने तो कह डाला था कि आजादी दिलाने में महात्मा गांधी का कोई योगदान ही नहीं है। क्या बता सकते हैं भाजपा के किसी शीर्ष नेता ने विजयवर्गीय को गांधी का अपमान न करने की हिदायत दी हो।
साध्वी प्राची ने तो महात्मा गांधी को अंग्रेजों का एजेंट ही बता दिया था। किसी ने साध्वी को बापू का अपमान नहीं करने की सलाह दी क्या?
महात्मा गांधी को बुरा भला कहने का सिलसिला पिछले कुछ वर्षों से अपेक्षाकृत ज्यादा ही शुरू हो गया है। इस तरह के बयान देने वाले, उस पार्टी से जुड़े हैं जिनके लिए महात्मा गांधी जरूरी नहीं मजबूरी हैं। बेचारे बापू!