खाटू श्याम का वह इतिहास जिसे उनके भक्त नहीं जानते हैं

इसी महासमर की पृष्ठभूमि में एक ऐसा नाम उभरता है, जिसने बिना युद्ध लड़े इतिहास में अमरता पा ली उस योद्धा का नाम था बरबरीक। बरबरीक, घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र थे जिनके पास वह शक्ति थी जो युद्ध का परिणाम पलट सकती थी। उनके पास तीन बाणों की सिद्धि थी।

खाटू श्याम
खाटू श्याम
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar29 Dec 2025 03:01 PM
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Khatu Shyam : खाटू श्याम की कीर्ति और प्रसिद्धी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में खाटू श्याम की प्रसिद्धी का आलम यह है कि भारत के कोने-कोने से ही नहीं विदेशों से भी खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए भक्तगण राजस्थान में स्थापित भगवान खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए हर रोज बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। खाटू श्याम की इतनी प्रसिद्धी के बावजूद खाटू श्याम का पूरा इतिहास उनके भक्तगण नहीं जानते हैं। हम यहां भगवान खाटू श्याम का पूरा इतिहास आपको बता रहे हैं।

हारे का सहारा बनने के संकल्प ने बनाया उन्हें भगवान

दरअसल खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल के महान योद्धा तथा पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़े दानवीर बर्बरीक का इतिहास है। जो हारे का सहारा बनने के संकल्प के कारण अमर हो गए हैं। बर्बरीक का इतिहास महाभारत से शुरू होता है। महाभारत का युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्रों की टकराहट नहीं था, वह चेतना, अहंकार और समर्पण की भी परीक्षा थी। इसी महासमर की पृष्ठभूमि में एक ऐसा नाम उभरता है, जिसने बिना युद्ध लड़े इतिहास में अमरता पा ली उस योद्धा का नाम था बरबरीक। बरबरीक, घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र थे जिनके पास वह शक्ति थी जो युद्ध का परिणाम पलट सकती थी। उनके पास तीन बाणों की सिद्धि थी। एक बाण से शत्रु की पहचान, दूसरे से संहार और तीसरे से बाणों की वापसी। ऐसी शक्ति जिसके सामने बड़े-बड़े महारथी भी ठहर न पाते थे। लेकिन प्रश्न यह नहीं था कि बरबरीक कितने शक्तिशाली थे, प्रश्न यह था कि वे उस शक्ति के साथ क्या करते हैं। जब महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था, तब बरबरीक केवल दर्शक बनकर कुरुक्षेत्र पहुँचे। उनका संकल्प था - जो पक्ष कमजोर होगा, वे उसी का साथ देंगे। यही संकल्प धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता था। श्रीकृष्ण यह भली-भांति समझ चुके थे।

जब भगवान कृष्ण ने ली बर्बरीक की परीक्षा

एक साधारण ब्राह्मण के वेश में श्रीकृष्ण बरबरीक के पास पहुँचे और पूछा— "यदि तुम सबसे बड़ा दान दे सको, तो क्या दोगे?" यह कोई साधारण प्रश्न नहीं था। यह वीरता की नहीं, चेतना की परीक्षा थी। बरबरीक ने न कोई शर्त रखी, न कोई मोह दिखाया। शांत स्वर में बोले— "मेरा सिर।" यही वह क्षण था जब योद्धा से अधिक, एक साधक का जन्म हुआ। "वस्तुओं का त्याग आसान है, पर स्वयं का त्याग सबसे कठिन।" बरबरीक ने केवल अपना सिर नहीं दिया, उन्होंने —अपनी पहचान छोड़ी, अपनी शक्ति छोड़ी, अपने ‘मैं’ को त्याग दिया। यही कारण है कि बर्बरीक का सिर दान इतिहास का सबसे बड़ा दान माना जाता है।

भगवान ने दिया खाटू श्याम यानि बर्बरीक को साक्षी बनने का वरदान

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का सिर काटा नहीं, बल्कि उन्हें अमर बना दिया। र्बबरीक को वरदान मिला कि वे पूरे युद्ध को ऊपर से देखेंगे — न किसी पक्ष के, न किसी विजय के, बल्कि सत्य के साक्षी बनकर। बर्बरीक ने साक्षी बनकर अपने सिर के द्वारा महाभारत का पूरा युद्ध देखा और वें हमेशा के लिए अमर हो गए। बर्बरीक के त्याग, बलिदान, भक्ति और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलियुग में वे "श्याम" नाम से पूजे जाएंगे और हर दुखी, निराश और पीडि़त व्यक्ति के सहारा बनेंगे। तभी से उन्हें "हारे का सहारा श्याम" कहा जाता है। वहीं बर्बरीक राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में स्थापित मंदिर में खाटू श्याम के रूप में पूजे जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि खाटू श्याम जी के दरबार में जो भी सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। भक्त मानते हैं कि श्याम बाबा केवल सुखी लोगों की नहीं, बल्कि उन लोगों की सुनते हैं जो कठिनाइयों और दुखों में होते हैं। वे हमेशा हार मानने वालों को नई उम्मीद और शक्ति देते हैं। इसलिए उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है।

खाटू श्याम के मंदिर के आस-पास सब कुछ मौजूद है

खाटू श्याम जी जाने वाले भक्तों के लिए सस्ते और आरामदायक ठहरने के कई विकल्प उपलब्ध हैं। मंदिर के आसपास कई धर्मशालाएं और आश्रम हैं जहां बहुत ही कम दामों में रुकने की सुविधा मिल जाती है। खाटू श्याम मंदिर धर्मशाला, श्री श्याम सेवा समिति धर्मशाला और अग्रवाल धर्मशाला जैसी जगहें साफ-सुथरी और सुविधाजनक हैं। इसके अलावा, खाटू बाजार और मंदिर रोड के पास छोटे होटल और लॉज भी मिल जाते हैं, जहां बजट यात्रियों के लिए बढिय़ा व्यवस्था मौजूद है। खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन है, जो लगभग 17 किलोमीटर दूर है। रींगस से आप टैक्सी, जीप या बस से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा यहां से करीब 80 किलोमीटर दूर है, जहां से सीकर या रींगस तक बस या टैक्सी उपलब्ध रहती है। सडक़ मार्ग से भी खाटू श्याम आसानी से पहुंचा जा सकता है क्योंकि यह जयपुर, दिल्ली और सीकर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। Khatu Shyam

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ओशो को Sex गुरू कहने वाले ओशो को नहीं जानते

ओशो तो वास्तव में जीवन के उस सच्चे रहस्य को उद्घाटित करते हैं जिस रहस्य को दुनिया के तमाम महापुरूष पूरी तरह से उद्घाटित नहीं कर पाए थे। ओशो ने आसान भाषा तथा अपने तर्कों के द्वारा जीवन के परम सत्य को प्राप्त करने का मार्ग बताने का बड़ा काम किया है।

ओशो
ओशो दर्शन
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar29 Dec 2025 02:15 PM
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Osho : ओशो (Osho) एक Sex गुरू थे। ओशो Sex की बात करके धर्म भ्रष्ट करने का काम करते रहे। ओशो धर्म तथा अध्यात्म में Sex को लाने वाले धर्म गुरू रहे हैं। ऐसे अनेक सवाल ओशो के ऊपर उठाए जाते हैं। क्या वास्तव में ओशो Sex गुरू थे? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने ओशो के अनेक अनुयायियों के साथ लम्बी बातचीत की है। इस बातचीत तथा रिसर्च के दौरान हमें ओशो के जीवन पर आधारित एक प्रमाणिक वीडियो मिला है। इस वीडियो को सुनकर यह स्पष्ट होता है कि वास्तव में ओशो को Sex गुरू कहने वाले लोग दरअसल ओशो को जानते ही नहीं हैं।

क्या वास्तव में ओशो Sex गुरू थे

हाल ही में Deepcast-5 नामक यूट्यूब चैनल ने ओशो के प्रसिद्ध शिष्य समर्थ गुरू उर्फ सिद्धार्थ औलिया का एक लम्बा इंटरव्यू प्रसारित किया है। ओशो के शिष्य समर्थ गरू उर्फ सिद्धार्थ ओलिया ‘‘समर्थ गुरूधारा’’ (Samarthgurudhara) के नाम से ओशो के द्वारा दिए गए ज्ञान को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। यूट्यूब पर प्रसारित इस वीडियो में पूरे प्रमाण तथा तथ्यों के साथ यह साबित किया गया है कि ओशो के साथ Sex गुरू का टैग जोडऩा सरासर गलत है। ओशो तो वास्तव में जीवन के उस सच्चे रहस्य को उद्घाटित करते हैं जिस रहस्य को दुनिया के तमाम महापुरूष पूरी तरह से उद्घाटित नहीं कर पाए थे। ओशो ने आसान भाषा तथा अपने तर्कों के द्वारा जीवन के परम सत्य को प्राप्त करने का मार्ग बताने का बड़ा काम किया है।

ओशो का असली नाम चंद्र मोहन जैन था

आपको बता दें कि भगवान रजनीश के नाम से चर्चित रहे ओशो का असली नाम चंद्र मोहन जैन था, ओशो 20वीं सदी के सबसे चर्चित आध्यात्मिक गुरुओं में से एक रहे हैं। उनके बारे में आज भी यह धारणा फैली हुई है कि वह “Sex Guru” थे — यानी ऐसा गुरु जिन्होंने Sex को ही आध्यात्मिकता का केंद्र माना। Samarthgurudhara ने इंटरव्यू में स्पष्ट किया कि यह धारणा गलतफहमी और घटित मिथकों पर आधारित है, न कि उनके वास्तविक विचारों पर वीडियो के अनुसार, Osho ने सेक्स को कभी सतही इच्छाओं के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। बल्कि उन्होंने इसे मानव ऊर्जा का एक रूप बताया — जिसे समझकर और उसे नियंत्रित करके व्यक्ति गहरे ध्यान और समाधि की ओर बढ़ सकता है। उनके अनुसार, “संभोग से समाधि की ओर” (Sexual Energy से Spiritual Awareness तक) का मार्ग है, न कि केवल यौन सुख का प्रचार। उनकी यह सोच पारंपरिक धार्मिक दृष्टिकोणों से बिलकुल अलग थी, क्योंकि उन्होंने सेक्स के विषय को एक ऊर्जा रूप में देखा, न कि केवल सामाजिक या नैतिक सीमा में बांधा गए व्यवहार के रूप में। 

Osho की आध्यात्मिक शिक्षाएँ और जीवन दर्शन

Osho वास्तविकता में ध्यान (Meditation), जागरूकता (Awareness) और व्यक्ति की आंतरिक स्वतंत्रता पर जोर देते थे। वे मानते थे कि व्यक्ति की इच्छाओं को दबाने से हम वास्तविकता से पीछे हटते हैं; बल्कि उन्हें समझकर उनसे ऊपर उठना चाहिए। उनकी शिक्षाओं में ध्यान के विभिन्न रूप थे, जिनका उद्देश्य था व्यक्ति की मानसिक सीमाओं को तोड़ना और उसे असली आत्म-अनुभूति तक पहुंचाना। ओशो की मीडिया में प्रस्तुत की गई छवियाँ — खासकर उनकी बोल्ड टिप्पणियाँ और शारीरिक मानव स्वाभाव पर खुले विचारों ने वर्षों तक लोगों में यह भ्रम फैलाया कि वे व्यक्ति को मात्र यौन क्रिया तक सीमित मानते थे। इस इंटरव्यू ने इस झूठे आरोप को तोड़ते हुए बताया कि यह उनके सिखाए आध्यात्मिक संदेश का विकृत रूप है।

Osho की सच्ची पहचान को जानना जरूरी है

यूटयूब पर प्रसारित इंटरव्यू से यह स्पष्ट होता है कि: ओशो कभी केवल ‘Sex Guru’ नहीं थे; वे एक विचारक, आध्यात्मिक चिंतक और ध्यान के प्रसिद्ध गुरु थे। उनका लक्ष्य लोगों को मन की सीमाओं से परे ले जाना था न कि सिर्फ यौन विचारधारा पर ध्यान केंद्रित करना। जो लोग आज “Sex Guru” का लेबल लगाते हैं, वे ओशो के पूरे दर्शन को नहीं समझ पाए हैं। इस रिसर्च के आधार पर स्पष्ट कहा जा सकता है कि Osho जैसे व्यक्तित्व और उनकी शिक्षाएँ आज भी विवादों और विमर्शों का केंद्र बनी हुई हैं। इस इंटरव्यू ने उन मिथकों और गलत धारणाओं को चुनौती दी है, जिन पर सालों से आधारित सोच कायम थी। चेतना मंच के पाठकों के लिए यह कहानी यह याद दिलाती है कि किसी भी महान व्यक्तित्व को केवल एक पहलू से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए — बल्कि उनके जीवन के व्यापक संदर्भ, दर्शन और सूक्ष्म विचारों को समझना महत्वपूर्ण है।

संभोग से समाधि की ओर तो बस ओशो का एक इशारा है

यूटयूब पर प्रसारित ओशो के शिष्य समर्थ गुरू उर्फ सिद्धार्थ ओलिया के इंटरव्यू में बताया गया है कि ओशो के प्रवचनों का संकलन करके 600 से भी अधिक पुस्तकें प्रका​शित की गई हैं। उन्होंने बताया कि ओशो ने 9 हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं। संभोग से समाधि की ओर तो ओशो की छोटी सी प्रवचन माला का हिस्सा है। इंटरव्यू में समर्थ गुरू ने बताया कि काम यानि Sex की उर्जा ही जीवन का आधार है। Sex की उर्जा को अधोगामी बनाने की बजाय उधो गामी बनाकर मानव जीवन का सम्पूर्ण रूपांतरण करके परम सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि ओशो की संभोग से समाधि की ओर पुस्तक में इसी विषय पर पूरी बातचीत की गई है। Osho

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जिनके लिए बने कानून वें ही बता रहे हैं धोखा

ये चारों श्रम संहिताएं इन सभी पर लागू होंगी। सरकार को नए कानून में अस्थायी कामगार को स्थायी कामगार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन उसने किया यह है कि उन्हें स्थायी तौर पर अस्थायी कामगार ही बने रहने का प्रावधान कर दिया है।

नए श्रम कानूनों के खिलाफ आवाज उठाते श्रमिक, सवाल एक ही– फायदे किसके लिए?
नए श्रम कानूनों के खिलाफ आवाज उठाते श्रमिक, सवाल एक ही– फायदे किसके लिए?
locationभारत
userआरपी रघुवंशी
calendar25 Nov 2025 11:59 AM
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भारत सरकार ने देश के 50 करोड़ श्रमिकों के लिए नए श्रम कानून लागू किए हैं। यह विडम्बना है कि जिन लोगों के लिए नए श्रम कानून बनाए गए हैं वें श्रमिक ही श्रमिक कानूनों को अपने साथ धोखा बता रहे हैं। ऐसे में देश में बने नए श्रम कानूनों का पूरी ईमानदारी के साथ विश्लेषण होना जरूरी है। सरकार को भी चाहिए कि सरकार अपने स्तर से इन कानूनों के विषय में ज्यादातर श्रमिकों की राय को जानकर उसी के हिसाब से श्रम कानूनों में बदलाव करे। यहां हम नए श्रम कानूनों का विश्लेषण अपने पाठकों के लिए कर रहे हैं।

श्रमिक संगठनों ने एक सुर में खारिज कर दिए नए श्रम कानून

हाल ही में केंद्र सरकार ने पुराने श्रम कानूनों की जगह चार नई श्रम संहिताएं लागू करने की घोषणा की है, जिनमें वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व कार्य शर्त संहिता, 2020 शामिल हैं। सरकार इसे आजादी के बाद मजदूरों के लिए सबसे बड़े और प्रगतिशील सुधारों में से एक मान रही है। सरकार का दावा है कि इससे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी मिलेगी और हर पांच साल में इसकी समीक्षा की जाएगी। यही नहीं, श्रमिकों को समय पर वेतन की गारंटी दी जाएगी तथा महिला व पुरुषों को समान वेतन मिलेगा। लेकिन अधिकतर मजदूर संगठनों का मानना है कि नई श्रम संहिता श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। वास्तव में सरकार ने सुधार के नाम पर जो किया है, वह सुधार नहीं है, बल्कि कमजोर श्रमिकों को एक तरह से मालिकों (नियोक्ताओं) की दया पर छोड़ दिया है। हमारे देश में संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों को मिलाकर 50 करोड़ से अधिक कामगार काम करते हैं। इनमें से लगभग 90 फीसदी असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। ये चारों श्रम संहिताएं इन सभी पर लागू होंगी। सरकार को नए कानून में अस्थायी कामगार को स्थायी कामगार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन उसने किया यह है कि उन्हें स्थायी तौर पर अस्थायी कामगार ही बने रहने का प्रावधान कर दिया है।

इस उदाहरण से समझ सकते हैं पूरा माजरा

श्रम कानूनों का पूरा माजरा इस एक उदाहरण से समझिए कि सरकार रेलवे में स्थायी व अस्थायी तौर पर कामगारों को नियुक्त करती है। रेलवे में कुछ वर्षों तक अस्थायी तौर पर काम करने के बाद उन्हें स्थायी करने का प्रावधान था, लेकिन नए कानून में उन कामगारों को स्थायी करने का प्रावधान ही खत्म कर दिया सरकार का यह भी दावा है कि इसमें पहली बार सीमित समय के लिए ठेके पर काम करने वाले गिग वर्कर्स को भी शामिल किया गया है और उनके हित में कई प्रावधान लाए गए हैं। यह अच्छी बात है कि सरकार ने गिग वर्कर्स की सुविधा का प्रावधान किया है, लेकिन उन्हें वे सुविधाएं तो उपभोक्ता देंगे। उसमें सरकार की भूमिका क्या है? यह ठीक है कि महिला कामगारों को भी अब समान काम के लिए समान वेतन देने का प्रावधान किया गया है, लेकिन नए कानून के तहत अब रात में भी महिलाओं से काम कराया जा सकेगा, जो कि पहले संभव नहीं था। हालांकि, इसके लिए नियोक्ताओं को महिलाओं से सहमति लेनी होगी। इसके अलावा, सरकार ने फैक्टरी एक्ट कानून में भी बदलाव किया है। जैसे-पहले किसी फैक्टरी में 15-20 कर्मचारी काम करते थे, तो उस पर फैक्टरी एक्ट लागू होता था, लेकिन अब उसकी संख्या बढ़ाकर सी कर दी गई है। ऐसे में, बहुत-सी छोटी फैक्टरियां उसके दायरे से बाहर हो जाएंगी, ऐसे में 'श्रमिकों का अधिकार कहां रहेगा? मौजूदा कानून के तहत, 'यदि किसी फैक्टरी में 100 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं, तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी होती थी, जबकि नए कोड में यह संख्या 300 कर दी गई है, यानी यदि किसी फैक्टरी में 300 से कम कामगार काम कर रहे हों, तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसलिए भले ही इसें सरकार श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर लागू कर रही है, लेकिन नए कानून मजदूरों के दूरगामी हित में नहीं हैं। यदि सरकार का ऐसा दावा है, तो उसे मजदूर संगठनों से बात करनी चाहिए और पूछना चाहिए कि आपकी आपत्ति कहां पर है। इसके अलावा, देश में जितने भी मजदूर संगठन हैं, वे संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का तो कोई संगठन है ही नहीं। ऐसे में, सरकार को संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों के श्रमिक प्रतिनिधियों के साथ बात करनी चाहिए। सर्वाधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और सबसे ज्यादा कठिनाई भी इन्हें ही होती है।

उद्योग जगत के फायदे के लिए बनाए गए हैं नए श्रम कानून

ज्यादातर श्रमिक नेताओं का स्पष्ट मत है कि नए श्रम कानून असल में उद्योग जगत को फायदा पहुंचाने के लिए है, श्रमिक वर्ग को इससे बहुत फायदा नहीं होने वाला है। आउटसोर्सिंग किए जाने वाले श्रमिकों के लिए कोई ज्यादा सुविधाजनक प्रावधान नहीं किया गया है।. मसलन, विभिन्न दफ्तरों, कोठियों, अपार्टमेंटों में ठेकेदारों के माध्यम से ठेके पर सिक्योरिटी गार्ड रखे जाते हैं। उनसे जितने वेतन पर हस्ताक्षर करवाया जाता है, उतना वेतन वास्तव में उन्हें नहीं मिलता है। ऐसे श्रमिकों के हित के लिए नए कानून में क्या प्रावधान हैं। असल में नए श्रम, कानून से नियोक्ताओं के लिए श्रमिकों को नौकरी से निकालना तो आसान हो ही जाएगा, मालिकों के लिए फैक्टरी को बंद करना भी काफी आंसान हो जाएगा। इससे श्रमिकों के लिए मजदूर संगठन बनाना व हड़ताल करना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए सरकार को पहले देश, के संगठित एवं असंगठित मजदूर प्रतिनिधियों से चर्चा करके राष्ट्रीय विमर्श चलाना चाहिए, ताकि देश की भावनाओं का समावेश हो सके। 


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