हमाम में सब नगें हैं ! जाति व धर्म की राजनीति का सच
Sonia Khanna
विनय संकोची
जाति, धर्म, संप्रदाय, पंथ, समुदाय और उनसे जुड़े लोग राजनीतिज्ञों की दृष्टि में वोट के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। नेताओं का प्यार व्यक्ति और जाति के लिए नहीं वोटों के लिए उमड़ता है। आज तो सुविधाएं और सेवाएं भी जाति धर्म देखकर बांटी जाती हैं। धर्म निरपेक्षता का चोला पहनने वाली पार्टियां भी और धर्मनिरपेक्षता को न मानने वाले दल भी सब के सब जातिवादी, धर्म-पंथवादी राजनीति करने में व्यस्त हैं। मजे की बात तो यह है कि हमाम में खड़े नंगे एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। एक दूसरे के नंगेपन का उपहास कर रहे हैं।
जब कांग्रेस ने पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाया तो भाजपा के प्रवक्ताओं ने चैनलों पर बैठकर छींटाकशी की। कांग्रेस ने पूरे देश में पहला दलित मुख्यमंत्री बनाकर कथित रूप से मास्टर स्ट्रोक खेला है, जिससे भाजपा के माथे पर बल पड़ गए हैं और उसे लगता है कि वह एक बार फिर पंजाब की सत्ता से दूर रह जाएगी। लेकिन हाल फिलहाल में भाजपा का एकमात्र लक्ष्य उत्तर प्रदेश का किला जीतना है।
भाजपा उत्तर प्रदेश में मजबूत तो है लेकिन 2022 में बड़ी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है और आश्वस्त इसलिए नहीं है क्योंकि किसान आंदोलन के पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव का उसे अनुमान है। एक बेहद सफल किसान महापंचायत के आयोजन से भाजपा असहज हो गई है। भाजपा की बेचैनी का एक बड़ा कारण यह भी है कि महापंचायत में किसान नेताओं ने खुलकर भाजपा की आलोचना की थी। भाजपा समझ चुकी है कि जाट बहुल इलाकों में उसे बड़ा नुकसान आने वाले चुनाव में हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narender Modi ) ने अलीगढ़ में जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के शिलान्यास के बहाने पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय को साधने की कोशिश की। वास्तव में यह शिलान्यास किसान आंदोलन से उपजे गुस्से को कम करने का भाजपा का एक दांव है। मोदी ने बड़ी-बड़ी बातें अपने भाषण में कहीं लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव UP Loksabha Election ) से मात्र 6 महीने पहले जाट राजा की याद कैसे आ गई। पूर्ववर्ती सरकारों पर जाट राजा की उपेक्षा करने का आरोप लगाकर मोदी वोट बटोरने की कोशिश ही तो कर रहे थे। भाजपा को जाट हितैषी साबित करने का प्रयास ही तो कर रहे थे। लेकिन यह दांव कितना कारगर होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। सवाल यह है कि क्या लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे जाट किसान मोदी सरकार द्वारा एक भी मांग न माने जाने के बावजूद केवल इस बात पर उसे वोट दे देंगे कि जाट राजा के नाम पर विश्वविद्यालय का शिलान्यास हो गया है।
दूसरे किसान पंचायत में “अल्लाह हू अकबर – हर हर महादेव” के नारे लगने के बाद जाट- मुस्लिम एकता की संभावना से भाजपा कुछ ज्यादा ही बेचैन हो उठी है। यही कारण है कि उसे जाट-गुर्जर एकता में अपनी जीत का मंत्र दिखाई दे रहा है।
गुर्जरों को साधने के लिए योगी आदित्यनाथ ने दादरी में गुर्जर सम्राट चक्रवर्ती राजा मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया है। गुर्जर जाति को प्रदेश के 32 जिलों की 60 विधानसभा सीटों पर प्रभावी माना जाता है इसलिए “प्रतिमा पॉलिटिक्स” के जरिए भाजपा इस वोट बैंक को साधना चाहती है। वैसे तो भाजपा का दावा है कि 2017 विधानसभा चुनाव में गुर्जर पार्टी के साथ थे। लेकिन विचारणीय यह भी है कि गुर्जर जाति का एक बड़ा वर्ग किसान भी है और किसान परेशान है। क्या परेशान जाट और गुर्जर किसान मूर्तियों के नाम पर भाजपा के पक्ष में वोट देंगे? भाजपा जातिवादी राजनीति कर रही है और दूसरे दलों पर जातिवादी होने का आरोप भी लगा रही है, यह भी एक तरीके की राजनीति ही है।
बहरहाल इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि जाट (Jaat) समुदाय की भाजपा के प्रति नाराजगी और बेरुखी से पार्टी परेशान है। परेशानी का कारण यह है कि भाजपा ने 2017 के चुनाव में जाट बहुल क्षेत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और इस बार उसे ऐसा होता हुआ नहीं लग रहा है। यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ गुर्जर बहुल क्षेत्रों के लगातार दौरे कर रहे हैं ताकि जाट वोटों के नुकसान की भरपाई गुर्जर वोटों से की जा सके।