लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पूर्व भारतीय जनता पार्टी व एनडीए के लिए एक बड़ी खुशखबरी आ सकती है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो यूपी में भाजपा के सबसे बड़े सहयोगी दल या यूं कहें कि एकमात्र सहयोगी पार्टी अपना दल का टूटा हुआ कुनबा एकजुट हो सकता है। यह एकजुटता होते ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुर्मी समाज में भाजपा को बड़ा लाभ मिल सकता है।
आपको बताते चलें कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में सोनेलाल पटेल एक बड़े नेता थे। लम्बे अर्से तक उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक स्व0 काशीराम के साथ मिलकर राजनीति की। वर्ष-1995 में काशीराम के साथ उनके मतभेद हो गए तब 9 नवंबर 1995 को उन्होंने ‘अपना दल’ के नाम से नई पार्टी का गठन किया। इस पार्टी को पूर्वी उप्र के कुर्मी बाहुल्य क्षेत्रों में व्यापक जनसमर्थन भी मिला। दुर्भाग्य से 17 अक्टूबर 2009 को एक सडक़ दुर्घटना में सोनलाल पटेल का निधन हो गया। उनके निधन के बाद अपना दल के मुखिया पद को लेकर उनकी पत्नी श्रीमती कृष्णा पटेल एवं उनकी पुत्री अनुप्रिया पटेल में भारी विवाद हो गया। इस विवाद का नतीजा यह निकला कि अपना दल दो भागों में बंट गया। एक गुट का नेतृत्व पत्नी तो दूसरे गुट का नेतृत्व बेटी के हाथों में चला गया। पत्नी कृष्णा पटेल ने अपने गुट का नाम अपना दल (के) तो बेटी अनुप्रिया पटेल ने अपना दल (एस) रखा। लम्बी जददोजहद के बावजूद अपना दल (के) को राजनीति में कोई खास सफलता नहीं मिली, जबकि प्रगति करते हुए अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल आज केन्द्र सरकार में मंत्री। इन दोनों ही दलों का उत्तर प्रदेश की कुर्मी बाहुल्य दो दर्जन सीटों पर व्यापक प्रभाव बताया जाता है।
हाल ही अनुप्रिया पटेल ने अपनी मां कृष्णा पटेल के साथ तालमेल बढ़ाने व दोनों दलों को एक करने के संकेत दिए हैं। बताया जा रहा है कि मां ने भी बेटी के प्रस्ताव को गंभीरता से लिया है। विश्लेषकों का मत है कि दोनों गुटों में शीघ्र ही समझौता हो जाएगा। ऐसा होना उप्र के चुनाव में भाजपा के लिए एक बड़ी खुशखबरी साबित होगी। भाजपा के नेता भी इस गठजोड़ को बनवाने के पूरे प्रयास कर रहे हैं। भाजपा का मत है कि उप्र विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन के चलते कुछ नुकसान हो सकता है। इस नुकसान की भरपाई कुर्मी बाहुल्य क्षेत्रों से की जा सकती है।