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Hotter Lovers साइकोज आर बेटर एंड होटर लवर्स

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नोएडा। प्यार या प्रेम एक एहसास है। जो दिमाग से नहीं दिल से होता है और इसमें अनेक भावनाओं व अलग विचारों का समावेश होता है। प्यार शब्द ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर ही हमें अच्छा महसूस होने लगता है। इस एहसास को हम कभी खोना नहीं चाहते। प्यार में ऐसी पॉजिटिव एनर्जी है जो हमें मानसिक और आंतरिक ख़ुशी प्रदान करती है। कभी—कभी प्यार कष्ट भी देता है। प्यार के इस एहसास की आज लीव इन, लव जिहाद, या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ने परिभाषा ही बदल कर रख दी है
लेखिका अंजना भागी ने अपने लेख में कुछ अनपहचानी सच्चाई भी उजागर करने की कोशिश की है। आगे कहती हैं, मैं ऑफिस को लेट हो रही थी। बस आई नहीं। सोचा और लेट होने से तो बेहतर है कि मैं शेयरिंग टेम्पो में ही बैठ जाऊं। मेरे बैठते ही सामने की सीट पर 16—17 साल की एक लड़की कूद कर बैठी। साथ में उससे थोड़ी ज्यादा उम्र का अच्छी सेहत का लड़का भी था। लड़की ने चहरे पर ऐसा मास्क बाँध रखा था कि सिर्फ उसकी आँखे ही नजर आ रही थी। बैठते ही लड़की ने अपना फ़ोन लड़के के हाथ में थमा दिया। लड़के ने किसी सी बी आई अधिकारी की तरह लड़की के फ़ोन में व्हाट्स अप्प चैट्स, वीडियो गंभीरता से चेक करना शुरू किया। लड़की की चिंतित सी आँखें कनखियों से झांक लेती। टेम्पो को हचका लगा लड़की के मुहं से निकला ओह माय गॉड ! लड़के ने झट से पीछे से अपनी बाजू निकाल लड़की को सपोर्ट किया। क्या यही प्यार है।
अंजना ने अपनी लेख में लिखा है, जहां मैं रहती हूँ अधिकांशत: काम काजी पति-पत्नी ही रहते हैं।  बच्चों को बहुत ही अच्छा मैनेज करते हैं। जैसे कि स्कूल बस से दोपहर आया बच्चों को उतारती है। बच्चे जल्दी—जल्दी खाना खाते हैं फिर एक वैन उन्हें लेने आती है जिसमें बैठ बच्चे ड्राइंग क्लास में जाते हैं। वहां से सीधे डांस क्लास फिर सात बजे इधर पापा—मम्मी की कार ब्रेक लगाती है सामने से बच्चों की वैन उनको उतारती है। सब आपस में हग करते  है। फिर शोर मचाते घर में घुसते हैं। फिर वे क़्वालिटी समय बिताते हैं। बच्चे कार्टून फिल्म देखते हैं साथ ही खिलौनों से खेलते हैं। मम्मी पापा थकावट उतारते हैं। तब तक आया डिनर लगा देती है। सब एक साथ खाना खाते है। बच्चे सोने को बेताब होते हैं और सो जाते हैं। माता-पिता भी खुश।
आया की इतनी चापलूसी। क्या ये ही संस्कार है। ये आया के सर पर पलने वाले बच्चे कैसे जानेंगे धर्म। धर्म की शिक्षा नहीं होती है। परिवार का आचरण ही धर्म से जोड़ता है। सुबह उठ माता-पिता कपड़ों के सिलेक्शन, मैचिंग लेट न हो जाएँ में व्यस्त कब सिखाएंगे बच्चों को संस्कृति, आचार, विचार, व्यवहार, रीति रिवाज, शिष्टाचार। क्या सुख भोगना ही जीवन है? माता-पिता को अपनी प्राइवेसी माता-पिता के माता-पिता आ जाएँ तो बच्चे खुश उनमें जीवन लौट आता है। घर में दादा—दादी आए या नाना-नानी आए बच्चों में जीवन लौट आता है लेकिन यदि घर में दादा—दादी आए तो मां की ऊंची आवाज में कलह के मुद्दों से घर ही दंगे का मैदान बन जाता ह।
भागी कहती हैं, बच्चे जब बड़े हो जाते हैं ताला चाबी खुद लगाने लगते हैं। तब आया की भी जरूरत नहीं रह जाती न हीं ड्रॉइंग क्लास न हीं डांस की क्लास। ऐसे में बच्चे फिल्म देखकर ही समय बिताते हैं और यदि एक बार उनको अंजाम, बाजीगर जैसी फिल्मों को देखने का शौक लग जाए जिसमें एक हकला पागल अपने आप बड़ बड़ाने वाला प्रेमी,प्रेमिका को पाने के लिए चाहे उसके पति की हत्या करें, उसके भाई—बहनों की हत्या करें किसी भी अंजाम तक पहुंच यदि वह प्रेमिका को पा जाता है तो अंत में हीरो की अपेक्षा यह नेगेटिव साइको किरदार इन युवाओं को हीरो लगने लग जाता है।  माता-पिता को अपने व्यस्त जीवन में पता ही नहीं चलता कि बच्चों के मस्तिष्क किस तरह से परिपक्व हो रहे हैं। हमने आये दिन युवा बच्चों को खासकर आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चों को यह कहते सुना है कि इश्क और जंग में सब जायज है।
लेखिका अंजना ने सवाल दागे कि क्या कभी किसी माता-पिता ने इन बच्चों से इस बारे में चर्चा की कि बेटा इश्क और जंग यानी कि इश्क में यदि कहा सुनी या नाराजगी हो जाए तो 35 टुकड़े कर देना भी जायज है क्या? बड़े-बड़े स्कूलों में आठवीं से दसवीं कक्षा तक पढ़ने वाली बच्चियों को आपने आपसी बातचीत में क्या कभी इन हकले नेगेटिव हीरो को ये कहते सुना है कि ही इज द किलर मैन। आई लाइक हिज वाइल्डसाइड सो मच।
पागल लोगों की फिल्मों के नेगेटिव रोल या वाक्यों की कभी तो चर्चा करें अपने बच्चों में बैठकर। आज के समय में कमाते खाते घरों में एक या दो बच्चे क्या आपने कभी उनको समझाया या उनसे बातचीत की कि किसी से जबरन बातचीत करने की कोशिश करना, धमकाना, मारपीट करना यह साइको स्टेट्स के लोगों का काम है। प्रेम करने वालों का काम नहीं है। इनसे कैसे बचना है। मैंने तो अधिकांत: यही देखा है कि बच्चा बोलने के लिए मुंह खोलता है कि हम उसकी बात पकड़ उसको आगे से आगे समझाना या कहानियां सुनाना शुरू कर देते है। बच्चे की बात कम से कम सुनते हैं। समय बचाने के लिए या यूं कहिए की जल्दी बता पीछा छुड़ाने के लिए अपने अनुभव अधिक से अधिक सुना उसका ज्ञान वर्धन करने लगते हैं। कहा, आखिर क्यों आवश्यकता पड़ती है यदि लड़की पर गुस्सा आ जाए तो उसके टुकड़े व काटने की ऐसी क्या विशेष निकालना होता है।

कहा, आज जब मेरे घर के सामने वाला एक घर बिका। तब मैं हैरान रह गई। चार भाइयों ने मिलकर एक तीन मंजिला मकान खरीदा यानी एक मकान भाई चार वे सब कब आ गए और अपने बच्चों समेत तीन मंजिलें घर में सभी समा गये। किसी को पता तक नहीं चला। क्योंकि वो घर मेरे घर के सामने है। मैं अपनी बालकनी से सब देख पा रही हूं। कैसे परिवार के बड़े बच्चों को आयते समझाते हैं। अल्लाह की करामत समझाते हैं। बड़ी मम्मी सब बच्चों को कुरान सिखाती है। सभी मिलजुल कर खाते हैं। एक—दूसरे पर जान देने को तैयार रहते हैं। यहां तो माता-पिता द्वारा बनाए घर में दो भाई साथ नहीं रहने को तैयार फिर किस मुंह से कहते हैं कि ऐसी बेटी के दो या चालीस नहीं बल्कि टुकड़े करो हजार। घर में कोई अपना हो तो बच्चे कुछ संस्कार सीखें, कहीं जुड़े, अपने तो घर में होते ही नही। तो अपने दिल की बात करने को कहीं तो जुड़ेंगे। यह बहुत ही गंभीर विषय है। बड़ा परिवार दिखाई देगा तो कोई धर्म कोई संस्कार कोई मान्यताएं कोई कुछ तो सिखाएगा और इन भोली बेटियों को शिकार करने वाले शिकारियों से भी बचाएगा।

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