Viral Video- शादी में पटाखा फोड़ते ही दूल्हे को लेकर भागी घोड़ी, सामने आया वीडियो

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दूल्हे को लेकर फरार हुई घोड़ी (PC-Instagram)
locationभारत
userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar30 Nov 2025 08:30 PM
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Viral Video- इस समय शादियों का सीजन चल रहा है। हर तरफ शादियां ही शादियां हो रही है। शादियों के इस सीजन में कई मजेदार वा के सामने आए। इसी बीच सोशल मीडिया पर शादी से ही जुड़ा एक बहुत ही मजेदार वीडियो वायरल हो रहा है। यह वीडियो दूल्हे का है। इस वीडियो को किसी ने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है जो देखते ही देखते काफी वायरल हो गया है। शादी के इस वीडियो में आप देखेंगे कि शादी की रस्में धूमधाम से हो रही है इसी बीच कुछ ऐसा वाकया हो जाता जो काफी फनी है। इस वीडियो में दूल्हा घोड़ी पर सवार है, और आसपास बहुत सारे लोग जमा है। इसी बीच आतिशबाजी वाले पटाखा फोड़ दिया। पटाखे की आवाज सुनते ही दूल्हे की घोड़ी बुरी तरह से भड़क जाती है, और तेज रफ्तार से भागने लगती है जबकि दूल्हा अभी भी घोड़ी पर बैठा हुआ है। आप ही देखें यह वीडियो -  
 
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इंस्टाग्राम पर शेयर किया गया यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है।

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Dharm darshan : क्या आपको पता है राजा दशरथ की पांचवीं संतान के बारे में ?

Shanta devi mandir
shanta devi mandir
locationभारत
userचेतना मंच
calendar09 Dec 2021 05:30 PM
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Dharm darshan : आज तक हम सब यही सुनते आ रहे हैं कि राजा दशरथ की 4 संतानें थीं, जिनमें से श्रीराम (Bhagwan Ram) सबसे बड़े थे। लेकिन वास्तव में राजा दशरथ (Raja Dashrath) 4 नहीं, 5 संतानों के पिता थे। उनकी पांचवी संतान का जिक्र न तो वा​ल्मीकि रामायण (Ramayan)  में है और न ही रामचरितमानस (Ramcharitmanas) में। लेकिन दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा में राजा दशरथ की पांचवीं संतान का जिक्र किया गया है।

दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के मुताबिक राजा दशरथ की सबसे बड़ी संतान एक पुत्री थीं, जो भगवान राम से भी बड़ी थीं. इनका नाम शांता देवी था और ये राजा दशरथ और माता कौशल्या की पुत्री थीं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर उनका आज भी एक मंदिर बना हुआ है, जहां उनकी पूजा उनके पति के साथ की जाती है। यहां जानिए राजा दशरथ की पुत्री से जुड़ी ये कथा।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा दशरथ की पुत्री शांता देवी ने जन्म लिया तो अयोध्या में अकाल पड़ गया था। 12 वर्षों तक अकाल की स्थिति बनी रही। इसकी वजह से प्रजा को भी काफी कष्ट सहने पड़े। तब चिंतित राजा दशरथ को सलाह दी गई कि यदि वे शांता को दान कर दें तो अकाल की स्थिति टल सकती है। प्रजा के कल्याण के लिए राजा दशरथ और कौशल्या ने अपनी प्रिय और गुणवान पुत्री को अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्षिणी को दान कर दिया क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी।

वर्षिणी माता कौशल्या की बहन थीं। राजा रोमपाद और वर्षिणी ने शांता का पालन पोषण बहुत प्रेमपूर्वक किया और इसके बाद शांता को अयोध्या की नहीं बल्कि अंगदेश की राजकुमारी कहा जाने लगा। बड़े होने पर उनका विवाह शृंगी ऋषि के साथ कराया गया। कहा जाता है कि अयोध्या से जाने के बाद शांता कभी वापस वहां नहीं आयीं। उन्हें रोमपाद और वर्षिणी की पुत्री के रूप में जाना गया। इस कारण आज भी राजा दशरथ की संतानों में सिर्फ 4 पुत्रों की गिनती की जाती है, जिनमें श्रीराम सबसे बड़े कहलाए।

यहां बना है मंदिर

कुल्लू से 50 किलोमीटर की दूरी पर आज भी शांता देवी का मंदिर बना हुआ है। वहां देवी की प्रतिमा उनके पति शृंगी ऋषि के साथ स्थापित है। दूर दूर से भक्त यहां आकर माता शांता देवी और शृंगी ऋषि की पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है कि यहां शांता देवी की पूजा करने से प्रभु श्रीराम की भी कृपा प्राप्त होती है और सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

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उत्तराखंड में स्थित इन देवी मंदिरों का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप

Chandrabadini devi 1
chandrabadini-devi
locationभारत
userचेतना मंच
calendar07 Dec 2021 08:25 PM
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Secrets of Devi Temples in Uttrakhand : देवभूमि उत्तराखंड (Uttrakhand) को कई शक्तिपीठों (Shaktipeeth) का उद्गम स्थल माना जाता है। उत्तराखंड के हरिद्वार (haridwar) में ही देवी सती यानि माता पार्वती (maa parvati) ने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी आहूति दी थी। उत्तराखंड (Uttrakhand) के टिहरी (Tehri) जिले में एक साथ तीन शक्तिपीठ हैं। इन शक्तिपीठों के जीर्णोद्धार का कार्य आदि जगतगुरु शंकराचार्य (Jgadguru Shankrachary) ने अपनी हिमालय यात्रा के दौरान कराया था। उत्तराखंड में टिहरी जनपद ऐसा और एक मात्र स्थान है जहां पर तीन शक्तिपीठ स्थापित हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तीर्थनगरी हरिद्वार के कनखल में राजा दक्ष द्वारा कराए गए यज्ञ में शिव की पत्नी और राजा दक्ष की बेटी ने अपने पति का अपमान होने के बाद यज्ञ कुंड में आत्मदाह किया था। यज्ञ विध्वंस के बाद सती की पार्थिव देह लेकर भगवान शिव बेसुध स्थिति में जब विश्व भ्रमण को निकले तो भगवान विष्णु ने उन्हें इस अवस्था से मुक्ति दिलाने के लिए पार्थिव शरीर के टुकड़े अपने सुदर्शन चक्र से किए। जहां-जहां सती के देह के टुकड़े गिरे, वहां वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

कुंजापुरी शक्तिपीठ टिहरी जिले के नरेंद्र नगर के पास स्थित पर्वतमाला में सती के कुंज यानी सिर के बाल गिरे थे तो यह स्थल पवित्रता में बदल गया और सिद्धपीठ मां कुंजापुरी तीर्थस्थल कहलाया जो 52 शक्तिपीठों में से एक सिद्धपीठ माना जाता है। यहां पर आज सिद्धपीठ मां कुंजापुरी का विशाल का मंदिर है, यहां हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर राज्य सरकार द्वारा कुंजापुरी पर्यटन विकास मेले के नाम से मेला होता है।

सिद्धपीठ कुंजापुरी मंदिर में 1974 से मेला शुरू हुआ था जो आज भी जारी है। पर्यटन और प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से यह क्षेत्र तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र तो है ही साथ में सिद्धपीठ साधकों के लिए भी मुख्य आकर्षण का केंद्र है। कई सिद्ध साधक यहां पर अपनी साधना को सफल बनाने के लिए कठोर तपस्या करते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से बंदर पूंछ, चौखंबा, नीलकंठ, सुंरकंडा के विहंगम दृश्य यहां से देखने को मिलते हैं व धार्मिक स्थलों के दर्शन होते हैं। इससे सिद्ध पीठ कुंजापुरी मंदिर में सुबह शाम विधिवत पूजा की जाती है।

रोजाना प्रात:काल देवी को स्नान करवाने के बाद पूजा-अर्चना की जाती है। सिद्धपीठ मां कुंजापुरी प्रसिद्ध सिद्धपीठों में एक है। माता के प्रति लोगों को की इतनी अटूट श्रद्धा है कि दूरदराज क्षेत्रों से माता के दर्शन करने के लिए लोग यहां आते हैं। जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माता के पास आता है उसकी सभी मनाकामनाएं पूर्ण होती है।

माता के कपाट वर्षभर श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। यहां पर हर वर्ष नवरात्रि में नौ दिन का सिद्धपीठ कुंजापुरी पर्यटन व विकास मेले का आयोजन होता है। यह शिवालिक रेंज में 13 शक्तिपीठों में से एक है और जगदगुरु शंकराचार्य द्वारा टिहरी जिले में स्थापित तीन शक्तिपीठों में से एक है। जिले के अन्य दो शक्तिपीठों में एक सुरकंडा देवी का मंदिर और चन्द्रबदनी देवी का मंदिर है। कुंजापुरी, इन दोनों पीठों के साथ एक पवित्र त्रिकोण बनाता हैं। जो तंत्र साधना के उपासको के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

सुरकंडा मंदिर शक्तिपीठ सुरकंडा मंदिर शक्तिपीठ टिहरी जिले के सुरकंडा पर्वत माला पर है। मान्यता है कि यहां पर जिस स्थान पर माता सती का सिर गिरा वह सिरकंडा कहलाया जो कालान्तर में सुरकंडा नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह देवी के 52 शक्तिपीठों में एक पीठ मानी जाती है जो देवी की पूजा करने वालों के लिए श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र है। नवरात्र में विशेष पूजा होती है।

चंद्रबदनी देवी मंदिर शक्तिपीठ टिहरी जिले में देवी मां का चंद्रबदनी मंदिर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर सती के पार्थिव शरीर का धड़ का हिस्सा गिरा था, इसलिए इस मंदिर में सती के धड़ की पूजा की जाती है, लेकिन श्रद्वालुओं को धड़ के दर्शन नहीं कराए जाते हैं। चंद्रबनी मंदिर देवप्रयाग से हिंडोलाखाल और नरेंद्रनगर मार्ग पर स्थित है। तंत्र साधकों के लिए यह विशेष स्थान रखता है।