Dharam Karma : वेद वाणी

Rigveda 1
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 04:33 PM
bookmark

Sanskrit : युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः। वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः॥ ऋग्वेद ५-८१-१॥

Hindi : बुद्धिमान योगी जन अपने मन और बुद्धि को एकाग्र करके उस परमेश्वर में लगाते हैं। जो सर्वव्यापक और सर्वज्ञ है। जो इस जगत का निर्माता है। परमेश्वर ही ज्ञान की वाणीयों को उनके अंत:करण में स्थापित करते हैं। (ऋग्वेद ५-८१-१) #vedgsawana

English : Wise sages concentrate their mind and intellect in that Supreme Lord. One who is omnipresent and omniscient. Who is the creator of this world. It is God who establishes the words of knowledge in their conscience. (Rig Veda 5-81-1) #vedgsawana

अगली खबर पढ़ें

Festival: आज ही के दिन किया था श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध

WhatsApp Image 2021 11 03 at 10.23.04 AM
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:31 AM
bookmark

आज रूप चतुर्दशी है, जिसे छोटी दीपावली, नरका चौदस, नर्क चतुर्दशी और रूप चौदस भी कहा जाता है। दीपावली से जुड़े पंच महापर्व के दूसरे दिन सौंदर्य को निखारने का महापर्व है - रूप चतुर्दशी। तन और मन की सुंदरता का वरदान दिलाने वाले इस पर्व का संबंध स्वच्छता से है।

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरका चौदस के दिन यम देवता की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि आज के दिन यमुना नदी में स्नान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है।

इस दिन सांयकाल दीपक जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई कथाएं और मान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार प्रागज्योतिषपुर का नरकासुर नामक राजा, एक राक्षस था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र और अन्य सभी देवताओं को परेशान कर दिया था। वह जनता के साथ ही संतों पर भी अत्याचार करता था। उसने अपने पास प्रजा और संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था।

उसके अत्याचारों से परेशान देवता और संत मदद मांगने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नराकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और फिर उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसी की खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा।

दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।

यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।

यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।

तब ऋषि ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया।

इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

अगली खबर पढ़ें

धर्म - अध्यात्म : आना जाना लगा रहेगा!

WhatsApp Image 2021 09 25 at 10.11.00 AM
locationभारत
userचेतना मंच
calendar03 Nov 2021 04:35 AM
bookmark

 विनय संकोची आवागमन संस्कृत का शब्द है और इसका शाब्दिक अर्थ है - आना जाना, बार-बार जन्म लेना और मरना। जन्म मरण का चिरआवर्तन। जो संसार में आता है, वह जाता अवश्य है - यह शाश्वत नियम है और इसे केवल परमात्मा ही बदल सकता है। इसे बदलने का अर्थ होगा तमाम तरह की विसंगतियों विकृतियों का सिर उठाना। संसार नश्वर है और यहां कुछ भी स्थाई नहीं है, जीवन तो बिल्कुल भी नहीं। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो इस सत्य से परिचित न हो कि वह संसार में हमेशा के लिए नहीं रह सकता है। सब जानते हैं कि उसे परमात्मा ने एक निश्चित अवधि के लिए गिनती की सांसों के साथ संसार में भेजा है, जिनके पूरी होते ही उसे इस संसार को छोड़कर जाना है, जिसे संभवत वह स्वयं से ज्यादा चाहता है, प्यार करता है। जिससे संयोग होता है उसे भी वियोग होना निश्चित है, यही तो आवागमन का भी नियम है।

आवागमन को इस तरह भी समझा जा सकता है, जैसे उदय होने के बाद सूर्य निरंतर अस्त की ओर ही जाता है और एक निश्चित अवधि के उपरांत वह पुनः प्रकट हो जाता है। यही जीव के साथ होता है। जीव संसार में आते ही अपने अस्त की ओर चलना प्रारंभ कर देता है और एक काल सीमा पर जाकर अस्त हो जाता है, उसका अस्तित्व भौतिक रूप से समाप्त हो जाता है। जीव नाशवान है और उसके अंतर घट में विराजित आत्मा अविनाशी है। भौतिक रूप से अस्त जीव की अविनाशी आत्मा पुनः संसार में प्रकट होती है। अंतर केवल इतना है कि सूर्य का रूप परिवर्तित नहीं होता है और आत्मा रूप बदलकर संसार में आती है। परंतु आती जरूर है और आने के बाद फिर जाती अवश्य है।

यह नाशवान संसार किसी जीव का स्थाई डेरा नहीं हो सकता। आवागमन का चक्कर में यही तो संदेश देता है लेकिन हम संसार में आने के बाद सोच बैठते हैं कि हम जाएंगे कि नहीं, अब तो हमें जाना ही नहीं है और यही सोच हमें परमात्मा से दूर करती चली जाती है। संसार हमें जकड़ लेता है और हम परमात्मा को बिसार देते हैं। याद करते हैं तो केवल अपने स्वार्थ के लिए। इस सत्य को भुलाया नहीं जा सकता है कि कलयुग में विरले ही सत्पुरुष हैं जो निस्वार्थ भाव से भगवान को सुमरते हैं, उसे याद करते हैं।

आवागमन से ही स्वर्ग नरक की अवधारणा भी संबद्ध है। व्यक्ति जो कुछ करता है वह या तो अच्छा होता है अथवा बुरा कहलाता है। इस बात को सब जानते हैं, अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का नतीजा बुरा होता है। सुफल स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करता है और बुरा फल नर्क का द्वार खोलता है। ज्ञानियों का मानना है कि स्वर्ग नरक सब इसी संसार में है, आपको अपने गलत कामों के फल स्वरूप कष्ट मिलते हैं, दु:ख भोगने पड़ते हैं और अच्छे कार्य आपकी सुख, समृद्धि, संपन्नता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दु:ख कष्ट नरक और सुख शांति स्वर्ग का पर्याय हैं।

आने वाला जाने वाला होता है। आने वाले को जाना ही जाना है। काल रूप अग्नि में सब कुछ लगातार जलता रहता है और इस कालाग्नि से बचकर संसार के किसी भी कोने में छिपा नहीं जा सकता है। जिस क्षण काल रूपी अग्नि की लपट छू लेती है, उसी समय आवागमन का एक अध्याय पूरा हो जाता है।