Dharam Karma : वेद वाणी

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locationभारत
userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar05 Nov 2021 05:51 AM
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Sanskrit: विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न आ सुव॥ ऋग्वेद ५-८२-५॥

Hindi: हे समस्त जगत को उत्पन्न और प्रकाशित करने वाले प्रभु! हमसे समस्त दुर्गुणों को दूर कीजिए और जो कल्याण करने वाले गुण हैं, उन्हें हमें प्रदान कीजिए। (ऋग्वेद ५-८२-५) #vedgsawana

English: O creator and illuminator of the universe! Remove all the evils from us and bestow those qualities which are beneficial to us. (Rig Veda 5-82-5) #vedgsawana

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Dharam Karma : वेद वाणी

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locationभारत
userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar05 Nov 2021 05:51 AM
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Sanskrit: विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न आ सुव॥ ऋग्वेद ५-८२-५॥

Hindi: हे समस्त जगत को उत्पन्न और प्रकाशित करने वाले प्रभु! हमसे समस्त दुर्गुणों को दूर कीजिए और जो कल्याण करने वाले गुण हैं, उन्हें हमें प्रदान कीजिए। (ऋग्वेद ५-८२-५) #vedgsawana

English: O creator and illuminator of the universe! Remove all the evils from us and bestow those qualities which are beneficial to us. (Rig Veda 5-82-5) #vedgsawana

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क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर्व, यहां जानिए पूरी कथा

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Govardhan Puja 
locationभारत
userचेतना मंच
calendar05 Nov 2021 05:20 AM
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दीपावली पर्व संपन्न हो चुका है और आज देशभर में अन्नकूट या गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) पर्व मनाया जा रहा है। इस पर्व पर विशेषकर मथुरा क्षेत्र के मंदिर और घरो में धूम मची है। यह पर्व दीपावली पर्व के अगले दिन मनाया जाता है। इस दिन गोधन यानि गाय की पूजा की जाती है। इसलिए गौशालाओं में भी इस पर्व को मनाया जाता है।

आपको बता दें कि गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है| यह पर्व उत्तर भारत, विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बहुत ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। ये भगवान कृष्ण के लिए मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा 2021 मुहूर्त 

गोवर्धन पूजा प्रातः काल मुहूर्त – 06:36 AM से 08:47 AM अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त – 03:22 PM से 05:33 PM अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट

क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा संबंध भगवान कृष्ण से जुड़ी है। इसकी शुरुआत भी द्वापर युग में हुई थी, लेकिन इससे पहले ब्रजवासी इंद्र की पूजा करते थे। तभी भगवान ने ये बताया कि आप लोग इंद्र की पूजा करते है इससे कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए आपको गौ धन को समर्पित गोवर्धन पर्वत पर जाकर गोवर्धन पूजा करनी चाहिए। भगवान कृष्ण की बात मानकर लोगों ने इंद्र की पूजा करनी बंद कर दी और गोवर्धन पूजा करने लगे। तभी इस बात से क्रोधित होकर इंद्र ने भारी बारिस की और लोगों को डराने का प्रयास करने लगे। इंद्र ने भारी बारिस करके पूरे गोवर्धन पर्वत को जलमग्न कर दिया और लोग प्राण बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगे। कृष्ण ने देखा तो वो इंद्र की मूर्खता पर मुस्कुराए और ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया। भारी बारिस का प्रकोप लगातार 7 दिन तक चलता रहा और भगवान कृष्ण ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे छाता बनाकर बचाते रहे। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नहीं पड़ी। ब्रह्मा जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर भगवना विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया है, तुम उनसे लड़ रहे हो। इस बात को जानकर इंद्रदेव को बहुत पछतावा हुआ और भगवान से क्षमा मांगी। इस बात के खत्म होने के बाद भगवान कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा का महत्व ऐसा माना जाता है कि ये उत्सव खुशी का उत्सव है और इस दिन जो दुखी रहेगा तो वो वर्षभर दुखी ही रहेगा। इस दिन खुश रहने वाला व्यक्ति वर्ष भर खुश रहेगा। इसलिए इस गोवर्धन पूजा करना बहुत ही जरूरी है।

गोवर्धन पूजन कैसे करें

घर में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसे फूलों से सजाते हैं। गोवर्धन पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति भी मनाई जाती है। इसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है। इसके बाद षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। गोवर्धन पूजा सुबह या फिर शाम के समय की जाती है। पूजन के समय गोवर्धन पर धूप, दीप, जल, फल, नैवेद्य चढ़ाएं जाते हैं। तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है। इसके बाद गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुनी जाती है और प्रसाद सभी में वितरित करना होता है। इस दिन गाय-बैल और खेती के काम में आने वाले पशुओं की पूजा होती है। पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनकी जय बोली जाती है। परिक्रमा हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए की जाती है।