Supreme Court: यूपी में चलता रहेगा बाबा का बुलडोजर, 10 को होगी सुनवाई




Death Anniversary : आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Former Prime Minister Chandrashekhar)की पुण्यतिथि है। 15 साल पहले 2007 में आज ही के दिन दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। 10 नवंबर 1990 को वह देश के 9वें प्रधानमंत्री बने तब उनके सामने अयोध्या विवाद सबसे बड़ी चुनौती थी। वह सुलझाने की दिशा में बढ़ रहे थे तभी 6 मार्च 1991 की तारीख आ गई। उनकी सरकार पर राजीव गांधी की जासूसी का आरोप लगा और इस्तीफा देना पड़ा।
चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर आज अयोध्या विवाद को सुलझाने को लेकर किए गए उनके प्रयासों को जानेंगे। उसके पहले तब के हालात को जानते हैं।
कारसेवकों पर गोली चली तो भीड़ उग्र हुई, दोबारा गोली चल गई अयोध्या में 30 नवंबर 1990 को कारसेवा के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। वह बाबरी मस्जिद ढांचे की तरफ बढ़ रहे थे। उस वक्त यूपी के सीएम रहे मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। 5 लोग मारे गए। इससे बीजेपी नेताओं में और गुस्सा भर गया। उमा भारती, अशोक सिंघल, स्वामी वामदेवी ने 2 दिसंबर को अयोध्या में विशाल प्रदर्शन का ऐलान किया।विश्व हिन्दू परिषद् और बीजेपी के बड़े नेता तीन अलग-अलग हिस्सों से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। प्रशासन इन्हें वापस लौट जाने के लिए माइक से ऐलान करता रहा। वे पीछे हटने को तैयार नहीं थे। हनुमान गढ़ी के सामने वाली लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक जैसे ही बढ़े, पुलिस ने फायरिंग झोंक दी। मौके पर 18 कारसेवकों की मौत हो गई।
पुलिस की गोली से मारे गए इन कारसेवकों को लेकर पूरे देश में हंगामा हो गया। अयोध्या में लाशों को रखकर प्रदर्शन किया गया। 4 नवंबर को अंतिम संस्कार हो सका। इसके बाद उनकी राख पूरे देश में घुमाई गई। इस घटना से पूरे देश में तनाव था। जनता दल की सरकार 15 दिन पहले ही गिर चुकी थी। नई सरकार चंद्रशेखर की बनी तो उनके ऊपर इसे संभालने की जिम्मेदारी थी।
सरकार ने समस्या को समझने की कोशिश नहीं की कारसेवकों पर गोली चलने के 20 दिन पहले ही चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'जीवन जैसा जिया' में लिखा, "1989 में जनता दल की सरकार बनने के बाद से ही मैं कहता रहा हूं कि नेतृत्व इस सवाल पर ईमानदार नहीं है। समस्या के मूल में जाने की कोशिश ही नहीं की गई। मेरा यह मानना था कि भारत की जनता पढ़े-लिखे लोगों की कसौटी पर अनपढ़ भले ही मानी जाए, लेकिन उससे अगर खुलकर बात की जाए तो वह हमेशा सहयोग करती है।"
विश्व हिन्दू परिषद आंदोलन करने पर अड़ी थी कारसेवकों पर गोली चलने की घटना के बाद विश्व हिन्दू परिषद बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में था। चंद्रशेखर ने उनकी एक मीटिंग में जाने का फैसला किया। सुरक्षा अधिकारियों ने सुरक्षा के लिहाज से आपत्ति जताई। चंद्रशेखर ने कहा था, "सब परिचित हैं, मेरे मित्र हैं, मेरे प्रति हिंसा की बात तो छोड़ दीजिए, कोई कठोर बात भी नहीं करेंगे।"
चंद्रशेखर वहां पहुंचे तो विहिप के नेताओं ने उग्र होकर बात की। प्रधानमंत्री ने कहा, "अगर आपने आंदोलन का रुख अपनाया तो मेरे लिए कोई विकल्प नहीं बचेगा सिवाय कठोर कदम उठाने के। यह सरकार का कर्तव्य हो जाएगा। मस्जिद बचाने के लिए अगर गोली चलानी पड़े तो मुझे कोई हिचक नहीं होगी। आप लोग बातचीत का रास्ता अपनाएं।"
चंद्रशेखर के इन जवाबों से विहिप का रुख नर्म हो गया। उन्होंने कहा, हम तो बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन दूसरा पक्ष इसके लिए राजी नहीं है। चंद्रशेखर ने कहा, "यह आप मुझ पर छोड़िए।"
चंद्रशेखर ने कहा, 7 लाख गांव में हम फौज नहीं लगा सकते चंद्रशेखर ने विहिप के बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं से बात की। प्रधानमंत्री ने कहा, "देश के साढ़े सात लाख गांव में हिन्दू-मुस्लिम साथ रहते हैं। सरकार हर गांव में सुरक्षा के लिहाज से फौज नहीं लगा सकती। जो लोग सांप्रदायिकता को बढ़ाएंगे वह गांव-गांव दंगे करवाएंगे। वही बेगुनाहों की मौत के जिम्मेदार होंगे। तय आपको करना है कि हजारों लोगों की जान जाए या फिर बातचीत से रास्ता निकाला जाए।"
मस्जिद एक्शन कमेटी ने भी कहा, "विहिप बातचीत के लिए तैयार नहीं होगी। चंद्रशेखर ने यहां भी आश्वासन दिया कि आप चिंता न करे हम प्रबंध करते हैं।"
दोनों पक्ष साथ बैठे तो गुस्सा कम हुआ चंद्रशेखर ने शरद पवार और भैरो सिंह शेखावत से कहा, आप लोग यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव से सलाह लीजिये और दोनों पक्षों की बैठक करवाई। चंद्रशेखर बताते हैं, एक ऐसी स्थिति आ गई कि दोनों पक्ष सहमत हो गए। समाधान सामने था। हाईकोर्ट के निर्णय को मानने के लिए दोनों पक्ष के लोग तैयार थे।
बाबरी मस्जिद से जुड़े लोगों ने कहा, अगर यह साबित हो जाता है कि वहां कोई मंदिर रहा है तो वे मस्जिद बनाए रखने का आग्रह छोड़ देंगे। चंद्रशेखर आत्मकथा में लिखते हैं, "मैने उस वक्त सोचा क्यों न पुरातत्व विभाग से कहें कि वह खुदाई कराकर इसका पता लगाएं। विहिप और बाबरी मस्जिद के लोग खुद कुछ कहना नहीं चाहते थे लेकिन इतना तय था कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला देगा वह मान लेंगे।"
सुप्रीम कोर्ट फैसला देने वाला था तभी सरकार गिर गई चंद्रशेखर लिखते हैं, सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए नहीं, निर्णय देने के लिए तैयार था। संविधान की धारा 138 बी के तहत ऐसे मसलों पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह की व्यवस्था है जो हर पक्ष पर लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट तीन महीने में फैसला देने के लिए तैयार था। दोनों धर्म के नेताओं का सहयोग निश्चित था। चारों तरफ यह चर्चा शुरू हो गई कि अब निर्णय हो जाएगा। तभी जासूसी का बहाना बनाकर कांग्रेस ने संकट पैदा किया और सरकार ने त्यागपत्र दे दिया।
आखिर चंद्रशेखर चाहते क्या थे चंद्रशेखर बताते हैं कि कुछ लोग सुझाव देते हैं कि मंदिर और मस्जिद दोनों एक जगह बना दिया जाना चाहिए। जब तक यह बात चलती रहेगी, इसका समाधान नहीं हो सकता। मेरी दृष्टि में एक ही जगह पर मंदिर और मस्जिद बनाना सही नहीं है। इससे झगड़े का अंत नहीं होगा। इस समस्या का समाधान आपसी समझदारी और लेन-देन की भावना से ही किया जा सकता है। उस वक्त दोनों पक्ष इसके लिए तैयार भी थे।
Death Anniversary : आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Former Prime Minister Chandrashekhar)की पुण्यतिथि है। 15 साल पहले 2007 में आज ही के दिन दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। 10 नवंबर 1990 को वह देश के 9वें प्रधानमंत्री बने तब उनके सामने अयोध्या विवाद सबसे बड़ी चुनौती थी। वह सुलझाने की दिशा में बढ़ रहे थे तभी 6 मार्च 1991 की तारीख आ गई। उनकी सरकार पर राजीव गांधी की जासूसी का आरोप लगा और इस्तीफा देना पड़ा।
चंद्रशेखर की पुण्यतिथि पर आज अयोध्या विवाद को सुलझाने को लेकर किए गए उनके प्रयासों को जानेंगे। उसके पहले तब के हालात को जानते हैं।
कारसेवकों पर गोली चली तो भीड़ उग्र हुई, दोबारा गोली चल गई अयोध्या में 30 नवंबर 1990 को कारसेवा के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। वह बाबरी मस्जिद ढांचे की तरफ बढ़ रहे थे। उस वक्त यूपी के सीएम रहे मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। 5 लोग मारे गए। इससे बीजेपी नेताओं में और गुस्सा भर गया। उमा भारती, अशोक सिंघल, स्वामी वामदेवी ने 2 दिसंबर को अयोध्या में विशाल प्रदर्शन का ऐलान किया।विश्व हिन्दू परिषद् और बीजेपी के बड़े नेता तीन अलग-अलग हिस्सों से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। प्रशासन इन्हें वापस लौट जाने के लिए माइक से ऐलान करता रहा। वे पीछे हटने को तैयार नहीं थे। हनुमान गढ़ी के सामने वाली लाल कोठी के सकरी गली में कारसेवक जैसे ही बढ़े, पुलिस ने फायरिंग झोंक दी। मौके पर 18 कारसेवकों की मौत हो गई।
पुलिस की गोली से मारे गए इन कारसेवकों को लेकर पूरे देश में हंगामा हो गया। अयोध्या में लाशों को रखकर प्रदर्शन किया गया। 4 नवंबर को अंतिम संस्कार हो सका। इसके बाद उनकी राख पूरे देश में घुमाई गई। इस घटना से पूरे देश में तनाव था। जनता दल की सरकार 15 दिन पहले ही गिर चुकी थी। नई सरकार चंद्रशेखर की बनी तो उनके ऊपर इसे संभालने की जिम्मेदारी थी।
सरकार ने समस्या को समझने की कोशिश नहीं की कारसेवकों पर गोली चलने के 20 दिन पहले ही चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'जीवन जैसा जिया' में लिखा, "1989 में जनता दल की सरकार बनने के बाद से ही मैं कहता रहा हूं कि नेतृत्व इस सवाल पर ईमानदार नहीं है। समस्या के मूल में जाने की कोशिश ही नहीं की गई। मेरा यह मानना था कि भारत की जनता पढ़े-लिखे लोगों की कसौटी पर अनपढ़ भले ही मानी जाए, लेकिन उससे अगर खुलकर बात की जाए तो वह हमेशा सहयोग करती है।"
विश्व हिन्दू परिषद आंदोलन करने पर अड़ी थी कारसेवकों पर गोली चलने की घटना के बाद विश्व हिन्दू परिषद बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में था। चंद्रशेखर ने उनकी एक मीटिंग में जाने का फैसला किया। सुरक्षा अधिकारियों ने सुरक्षा के लिहाज से आपत्ति जताई। चंद्रशेखर ने कहा था, "सब परिचित हैं, मेरे मित्र हैं, मेरे प्रति हिंसा की बात तो छोड़ दीजिए, कोई कठोर बात भी नहीं करेंगे।"
चंद्रशेखर वहां पहुंचे तो विहिप के नेताओं ने उग्र होकर बात की। प्रधानमंत्री ने कहा, "अगर आपने आंदोलन का रुख अपनाया तो मेरे लिए कोई विकल्प नहीं बचेगा सिवाय कठोर कदम उठाने के। यह सरकार का कर्तव्य हो जाएगा। मस्जिद बचाने के लिए अगर गोली चलानी पड़े तो मुझे कोई हिचक नहीं होगी। आप लोग बातचीत का रास्ता अपनाएं।"
चंद्रशेखर के इन जवाबों से विहिप का रुख नर्म हो गया। उन्होंने कहा, हम तो बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन दूसरा पक्ष इसके लिए राजी नहीं है। चंद्रशेखर ने कहा, "यह आप मुझ पर छोड़िए।"
चंद्रशेखर ने कहा, 7 लाख गांव में हम फौज नहीं लगा सकते चंद्रशेखर ने विहिप के बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेताओं से बात की। प्रधानमंत्री ने कहा, "देश के साढ़े सात लाख गांव में हिन्दू-मुस्लिम साथ रहते हैं। सरकार हर गांव में सुरक्षा के लिहाज से फौज नहीं लगा सकती। जो लोग सांप्रदायिकता को बढ़ाएंगे वह गांव-गांव दंगे करवाएंगे। वही बेगुनाहों की मौत के जिम्मेदार होंगे। तय आपको करना है कि हजारों लोगों की जान जाए या फिर बातचीत से रास्ता निकाला जाए।"
मस्जिद एक्शन कमेटी ने भी कहा, "विहिप बातचीत के लिए तैयार नहीं होगी। चंद्रशेखर ने यहां भी आश्वासन दिया कि आप चिंता न करे हम प्रबंध करते हैं।"
दोनों पक्ष साथ बैठे तो गुस्सा कम हुआ चंद्रशेखर ने शरद पवार और भैरो सिंह शेखावत से कहा, आप लोग यूपी के सीएम मुलायम सिंह यादव से सलाह लीजिये और दोनों पक्षों की बैठक करवाई। चंद्रशेखर बताते हैं, एक ऐसी स्थिति आ गई कि दोनों पक्ष सहमत हो गए। समाधान सामने था। हाईकोर्ट के निर्णय को मानने के लिए दोनों पक्ष के लोग तैयार थे।
बाबरी मस्जिद से जुड़े लोगों ने कहा, अगर यह साबित हो जाता है कि वहां कोई मंदिर रहा है तो वे मस्जिद बनाए रखने का आग्रह छोड़ देंगे। चंद्रशेखर आत्मकथा में लिखते हैं, "मैने उस वक्त सोचा क्यों न पुरातत्व विभाग से कहें कि वह खुदाई कराकर इसका पता लगाएं। विहिप और बाबरी मस्जिद के लोग खुद कुछ कहना नहीं चाहते थे लेकिन इतना तय था कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला देगा वह मान लेंगे।"
सुप्रीम कोर्ट फैसला देने वाला था तभी सरकार गिर गई चंद्रशेखर लिखते हैं, सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए नहीं, निर्णय देने के लिए तैयार था। संविधान की धारा 138 बी के तहत ऐसे मसलों पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह की व्यवस्था है जो हर पक्ष पर लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट तीन महीने में फैसला देने के लिए तैयार था। दोनों धर्म के नेताओं का सहयोग निश्चित था। चारों तरफ यह चर्चा शुरू हो गई कि अब निर्णय हो जाएगा। तभी जासूसी का बहाना बनाकर कांग्रेस ने संकट पैदा किया और सरकार ने त्यागपत्र दे दिया।
आखिर चंद्रशेखर चाहते क्या थे चंद्रशेखर बताते हैं कि कुछ लोग सुझाव देते हैं कि मंदिर और मस्जिद दोनों एक जगह बना दिया जाना चाहिए। जब तक यह बात चलती रहेगी, इसका समाधान नहीं हो सकता। मेरी दृष्टि में एक ही जगह पर मंदिर और मस्जिद बनाना सही नहीं है। इससे झगड़े का अंत नहीं होगा। इस समस्या का समाधान आपसी समझदारी और लेन-देन की भावना से ही किया जा सकता है। उस वक्त दोनों पक्ष इसके लिए तैयार भी थे।

Assam News : एक ओर जहां नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद देशभर में हिंसा हुई थी, वहीं अब असम के एक मुस्लिम लीडर ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसके बाद सभी लोग हैरान है। असम के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रमुख और असम के धुबरी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल ने दावा किया कि उनके पूर्वज हिंदू थे। उन्होंने कहा कि मेरे पूर्वज हिंदू थे। हिंदुओं के एक छोटे समूह के अत्याचारों के कारण, मेरे पूर्वजों को खुद को इस्लाम धर्म अपनाना पड़ा। उन्होंने कहा हालांकि उन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर नहीं किया गया था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और पर भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए मुस्लिम नेता अजमल ने कहा कि हिंदू राष्ट्र का एजेंडा एक राजनीतिक नौटंकी है, जिसे ये 5 प्रतिशत हिंदू वोट हासिल करने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यह हमेशा के लिए एक सपना रहेगा।
आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले अजमल ने असम में मुसलमानों से आगामी ईद समारोह के दौरान गायों की बलि नहीं देने की अपील की थी और उनसे धार्मिक दायित्व को पूरा करने के लिए अन्य जानवरों का उपयोग करके कुबार्नी देने का अनुरोध किया। इस अपील ने असम में हंगामा खड़ा कर दिया, जिसने राज्य के कई मुस्लिम नेताओं को भी परेशान कर दिया जिन्होंने उनका विरोध किया। इस पर अजमल ने कहा कि मैंने अपने हिंदू भाइयों की भावनाओं का सम्मान करने की अपील की है। यहां तक कि कई मुस्लिम धार्मिक संस्थान भी गाय की बलि का समर्थन नहीं करते हैं। उनके मुताबिक, देश के सबसे बड़े इस्लामिक शैक्षणिक संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने भी कुछ साल पहले इसी तरह की अपील जारी की थी।
बदरुद्दीन अजमल भले ही भाजपा पर निशाना साध रहे हैं कि लेकिन राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनाव में वह भाजपा का साथ दे सकते हैं। उन्होंने एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का संकेत दिया है।
आपको बता दें कि बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाला ऑल इंडियन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट दूसरा प्रमुख विपक्षी दल है जिसके पास 15 विधायक और एक लोकसभा सांसद है। कांग्रेस ने पिछले साल का विधानसभा चुनाव एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन करके लड़ा था, लेकिन चुनावी हार के तुरंत बाद कांग्रेस ने एआईयूडीएफ से नाता तोड़ लिया।
Assam News : एक ओर जहां नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद देशभर में हिंसा हुई थी, वहीं अब असम के एक मुस्लिम लीडर ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसके बाद सभी लोग हैरान है। असम के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रमुख और असम के धुबरी निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल ने दावा किया कि उनके पूर्वज हिंदू थे। उन्होंने कहा कि मेरे पूर्वज हिंदू थे। हिंदुओं के एक छोटे समूह के अत्याचारों के कारण, मेरे पूर्वजों को खुद को इस्लाम धर्म अपनाना पड़ा। उन्होंने कहा हालांकि उन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर नहीं किया गया था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और पर भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए मुस्लिम नेता अजमल ने कहा कि हिंदू राष्ट्र का एजेंडा एक राजनीतिक नौटंकी है, जिसे ये 5 प्रतिशत हिंदू वोट हासिल करने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यह हमेशा के लिए एक सपना रहेगा।
आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले अजमल ने असम में मुसलमानों से आगामी ईद समारोह के दौरान गायों की बलि नहीं देने की अपील की थी और उनसे धार्मिक दायित्व को पूरा करने के लिए अन्य जानवरों का उपयोग करके कुबार्नी देने का अनुरोध किया। इस अपील ने असम में हंगामा खड़ा कर दिया, जिसने राज्य के कई मुस्लिम नेताओं को भी परेशान कर दिया जिन्होंने उनका विरोध किया। इस पर अजमल ने कहा कि मैंने अपने हिंदू भाइयों की भावनाओं का सम्मान करने की अपील की है। यहां तक कि कई मुस्लिम धार्मिक संस्थान भी गाय की बलि का समर्थन नहीं करते हैं। उनके मुताबिक, देश के सबसे बड़े इस्लामिक शैक्षणिक संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने भी कुछ साल पहले इसी तरह की अपील जारी की थी।
बदरुद्दीन अजमल भले ही भाजपा पर निशाना साध रहे हैं कि लेकिन राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनाव में वह भाजपा का साथ दे सकते हैं। उन्होंने एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का संकेत दिया है।
आपको बता दें कि बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाला ऑल इंडियन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट दूसरा प्रमुख विपक्षी दल है जिसके पास 15 विधायक और एक लोकसभा सांसद है। कांग्रेस ने पिछले साल का विधानसभा चुनाव एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन करके लड़ा था, लेकिन चुनावी हार के तुरंत बाद कांग्रेस ने एआईयूडीएफ से नाता तोड़ लिया।