हकलाहट जागरूकता दिवस : हकलाने का बुद्धिमानी से कुछ लेना देना नहीं

विनय संकोची
आज 'इंटरनेशनल स्टटरिंग अवेयरनेस डे' यानी 'अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस है'। हकलाना बोलने से संबंधित विकार है, जिसको लेकर विकार के शिकार को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ जाता है। हकलाने वाले की नकल उतारकर लोग मजाक बनाते देखे जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 1 और भारत में 1.5 प्रतिशत लोग हकलाहट की गिरफ्त में है।
इस दिवस को जागरूकता अभियान के रूप में 1998 से मनाया जा रहा है। हकलाहट के प्रति जागरूक और शिक्षित करने का यह बेहतर अभियान और दिन है। हकलाना मानव वाक शक्ति में एक वाक बाधा है, जिसमें बोलने वाला शब्दों को खींचकर बोलता है या फिर आधे अधूरे शब्द की बोल पाता है। हकलाना कोई आनुवांशिक बीमारी नहीं है, अधिकांश मामलों में यह वातावरण के प्रभाव से होने वाली परेशानी है।
तमाम ऐसे मामले भी सामने आए हैं कि जब छोटा बच्चा किसी हकलाने वाले के संपर्क में आता है तो वे उसकी नकल करने लगता है और आगे चलकर यह उस बच्चे की आदत बन जाती है। जब यह बच्चा हकलाते हुए बड़ा होता है तो वह असहज हो जाता है और हीन भावना से ग्रस्त हो लोगों से मिलने जुलने से कतराने लगता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भावुक लोग ज्यादा हकलाते हैं। इसके अलावा एक साथ बहुत सी चीजें सोचने वाले भी हकलाहट के शिकार हो जाते हैं।
हकलाने से बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी आत्मविश्वास कम होने लगता है और वे अपने मन के भावों को व्यक्त करने से बचने लगते हैं। इस कारण हकलाने वाले बहुत से लोग हीन भावना और कुंठा का शिकार हो जाते हैं, जिसका उनके भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
हकलाने की समस्या देखने में बेशक बहुत गंभीर न लगती हो लेकिन इस समस्या से ग्रस्त लोगों को पढ़ाई और नौकरी पाने में परेशानी का सामना करना ही पड़ता है। हकलाने वाले एकाकी हो जाते हैं और इसी कारण उनके ज्यादा दोस्त नहीं होते हैं। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हकलाने वाले लोग कम बुद्धिमान होते हैं लेकिन यह केवल एक भ्रम है क्योंकि हकलाने का बुद्धिमानी से कुछ भी लेना देना नहीं है।
हकलाना एक बीमारी तो है लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका उपचार संभव है। अपनी प्रबल इच्छा शक्ति और सतत प्रयास से हकलाने पर काबू पाने के अनेक उदाहरण देखने में आते हैं। ब्रिटिश लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन, महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु, पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, आर्टेम ट्राटेस्की, ब्रूस विलिस, मर्लिन मुनरो आदि विभिन्न क्षेत्रों की तमाम चर्चित और विश्व प्रसिद्ध हस्तियों ने हकलाहट पर काबू पाया। जानना रोचक होगा कि हकलाना नेपोलियन को एक महान कमांडर बनने से नहीं रोक पाया। रोमन सम्राट क्लाडियस उपचार के बाद हकलाने से मुक्त हो गए थे। प्रसिद्ध बॉलीवुड स्टार रितिक रोशन भी बचपन में हकलाते थे और स्कूल जाने से कतराते थे, लेकिन स्पीच थेरेपी व अन्य उपचार से उन्होंने सामान्य रूप से बोलना शुरू कर दिया। ऐसे एक नहीं, अनेक नहीं अनेकानेक उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि हकलाहट पर जीत हासिल की जा सकती है।
हकलाने वालों का मजाक उड़ाने के बदले उन्हें स्पष्ट बोलने के लिए प्रेरित उत्साहित करने की आवश्यकता है। हकलाहट से ग्रस्त लोगों को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि यदि उन्होंने उपचार और प्रयास जारी रखा तो एक दिन वे भी स्पष्ट और धाराप्रवाह बोलेंगे, मधुर आवाज में।
अगली खबर पढ़ें
विनय संकोची
आज 'इंटरनेशनल स्टटरिंग अवेयरनेस डे' यानी 'अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस है'। हकलाना बोलने से संबंधित विकार है, जिसको लेकर विकार के शिकार को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ जाता है। हकलाने वाले की नकल उतारकर लोग मजाक बनाते देखे जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 1 और भारत में 1.5 प्रतिशत लोग हकलाहट की गिरफ्त में है।
इस दिवस को जागरूकता अभियान के रूप में 1998 से मनाया जा रहा है। हकलाहट के प्रति जागरूक और शिक्षित करने का यह बेहतर अभियान और दिन है। हकलाना मानव वाक शक्ति में एक वाक बाधा है, जिसमें बोलने वाला शब्दों को खींचकर बोलता है या फिर आधे अधूरे शब्द की बोल पाता है। हकलाना कोई आनुवांशिक बीमारी नहीं है, अधिकांश मामलों में यह वातावरण के प्रभाव से होने वाली परेशानी है।
तमाम ऐसे मामले भी सामने आए हैं कि जब छोटा बच्चा किसी हकलाने वाले के संपर्क में आता है तो वे उसकी नकल करने लगता है और आगे चलकर यह उस बच्चे की आदत बन जाती है। जब यह बच्चा हकलाते हुए बड़ा होता है तो वह असहज हो जाता है और हीन भावना से ग्रस्त हो लोगों से मिलने जुलने से कतराने लगता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भावुक लोग ज्यादा हकलाते हैं। इसके अलावा एक साथ बहुत सी चीजें सोचने वाले भी हकलाहट के शिकार हो जाते हैं।
हकलाने से बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी आत्मविश्वास कम होने लगता है और वे अपने मन के भावों को व्यक्त करने से बचने लगते हैं। इस कारण हकलाने वाले बहुत से लोग हीन भावना और कुंठा का शिकार हो जाते हैं, जिसका उनके भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
हकलाने की समस्या देखने में बेशक बहुत गंभीर न लगती हो लेकिन इस समस्या से ग्रस्त लोगों को पढ़ाई और नौकरी पाने में परेशानी का सामना करना ही पड़ता है। हकलाने वाले एकाकी हो जाते हैं और इसी कारण उनके ज्यादा दोस्त नहीं होते हैं। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि हकलाने वाले लोग कम बुद्धिमान होते हैं लेकिन यह केवल एक भ्रम है क्योंकि हकलाने का बुद्धिमानी से कुछ भी लेना देना नहीं है।
हकलाना एक बीमारी तो है लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका उपचार संभव है। अपनी प्रबल इच्छा शक्ति और सतत प्रयास से हकलाने पर काबू पाने के अनेक उदाहरण देखने में आते हैं। ब्रिटिश लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन, महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु, पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, आर्टेम ट्राटेस्की, ब्रूस विलिस, मर्लिन मुनरो आदि विभिन्न क्षेत्रों की तमाम चर्चित और विश्व प्रसिद्ध हस्तियों ने हकलाहट पर काबू पाया। जानना रोचक होगा कि हकलाना नेपोलियन को एक महान कमांडर बनने से नहीं रोक पाया। रोमन सम्राट क्लाडियस उपचार के बाद हकलाने से मुक्त हो गए थे। प्रसिद्ध बॉलीवुड स्टार रितिक रोशन भी बचपन में हकलाते थे और स्कूल जाने से कतराते थे, लेकिन स्पीच थेरेपी व अन्य उपचार से उन्होंने सामान्य रूप से बोलना शुरू कर दिया। ऐसे एक नहीं, अनेक नहीं अनेकानेक उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि हकलाहट पर जीत हासिल की जा सकती है।
हकलाने वालों का मजाक उड़ाने के बदले उन्हें स्पष्ट बोलने के लिए प्रेरित उत्साहित करने की आवश्यकता है। हकलाहट से ग्रस्त लोगों को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि यदि उन्होंने उपचार और प्रयास जारी रखा तो एक दिन वे भी स्पष्ट और धाराप्रवाह बोलेंगे, मधुर आवाज में।
संबंधित खबरें
अगली खबर पढ़ें






विनय संकोची