जिसे दुनिया कहती है आतंकी पालक, अब वही करेगा आतंक की निगरानी

Pakistan
UNSC
locationभारत
userचेतना मंच
calendar05 Jun 2025 04:42 PM
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UNSC: दुनिया की सबसे बड़ी सुरक्षा संस्था, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), एक अजीब निर्णय को लेकर चर्चा में है। आतंकवाद को संरक्षण देने वाले देशों में गिने जाने वाले पाकिस्तान  को अब उसी आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) का उपाध्यक्ष बना दिया गया है, जिसकी स्थापना का मकसद दुनिया भर में आतंक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना है। भारत के लिए यह फैसला बेहद चिंताजनक है, क्योंकि पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद के समर्थन को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घिरता रहा है।

'चोर के हाथ में तिजोरी': पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल

न्यूयॉर्क में लिए गए इस फैसले के तहत CTC की अध्यक्षता अल्जीरिया को सौंपी गई है, जबकि फ्रांस, रूस और पाकिस्तान को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इन तीनों में से फ्रांस और रूस भारत के पुराने मित्र रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान की नियुक्ति को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने 'चोर के हाथ में तिजोरी' थमा दी है? भारत ने 2022 में इसी समिति की अध्यक्षता की थी, और 2021-22 के दौरान अस्थायी सदस्य के रूप में सक्रिय रहा था। अब जबकि पाकिस्तान 2025-26 के कार्यकाल के लिए अस्थायी सदस्य बन चुका है, वह दो अनौपचारिक कार्य समूहों की सह-अध्यक्षता भी करेगा।

भारत की रणनीति क्या होगी?

चूंकि भारत इस समय UNSC का सदस्य नहीं है, इसलिए वह सीधे इस फैसले को प्रभावित नहीं कर सकता। लेकिन जानकारों का मानना है कि भारत अपने रणनीतिक साझेदारों, विशेष रूप से P5 देशों—अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन—के साथ मिलकर पाकिस्तान के प्रोपेगैंडा को निष्क्रिय करने की दिशा में काम कर सकता है। डेनमार्क जैसे नए अस्थायी सदस्य भी भारत की इस रणनीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। पाकिस्तान इस साल 1988 समिति का अध्यक्ष भी बना है, जिससे उसकी भूमिका और प्रभाव बढ़ सकता है।

UNSC में कौन बने नए सदस्य

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में हुए ताजा चुनावों में पांच नए देश अस्थायी सदस्य बने हैं, जिनका कार्यकाल 1 जनवरी 2026 से शुरू होगा। इनमें बहरीन, कांगो, लाइबेरिया, लातविया और कोलंबिया शामिल हैं। इन नए सदस्यों की नीति और दृष्टिकोण भी आने वाले समय में इस क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं। UNSC:

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भारत को अपनी बात कहने के लिए किसी तीसरे की दरकार नहीं - शशि थरूर

Shashi Tharoor 1
Shashi Tharoor
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 09:46 PM
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Shashi Tharoor :  ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा केंद्र सरकार पर लगाए गए ‘सरेंडर’ वाले बयान के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. शशि थरूर ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की विदेश नीति सदैव स्वतंत्र और स्वाभिमानी रही है, और किसी भी द्विपक्षीय मुद्दे पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की कभी कोई मांग नहीं की गई। अमेरिका में भारत सरकार की रणनीतिक कूटनीति ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नेतृत्व कर रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. शशि थरूर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय मसलों के समाधान के लिए किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है। थरूर का यह बयान उस वक्त आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर इस अभियान को लेकर ‘सरेंडर’ की मानसिकता अपनाने का आरोप लगाया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रति हमारे मन में सम्मान - थरूर

थरूर इस समय वॉशिंगटन डीसी में भारत सरकार के ओर से चलाए जा रहे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के वैश्विक आउटरिच अभियान की अगुवाई कर रहे हैं। इसी दौरान जब उनसे अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा अतीत में की गई मध्यस्थता की पेशकश को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने संयमपूर्वक जवाब देते हुए कहा, "अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रति हमारे मन में सम्मान है, लेकिन हम इतना जरूर कहेंगे कि भारत ने न तो कभी किसी मध्यस्थता की मांग की और न ही इसकी आवश्यकता महसूस की है।

पाकिस्तान को दिया स्पष्ट संदेश

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान थरूर ने यह भी रेखांकित किया कि भारत किसी के हस्तक्षेप के बिना अपने मसलों को सुलझाने में सक्षम है। उन्होंने पाकिस्तान के सन्दर्भ में कहा, "अगर पड़ोसी देश वाकई आतंकवादी ढांचे को समाप्त करने के लिए गंभीर पहल करता है और यह दर्शाता है कि वह भारत से सामान्य और सौहार्दपूर्ण संबंध चाहता है, तो संवाद की संभावना जरूर है। लेकिन उसके लिए किसी मध्यस्थ की कोई आवश्यकता नहीं है।    Shashi Tharoor

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पाकिस्तान पर बरस रहे पैसे, भारत का दोस्त भी कर रहा दगाबाजी; क्या फेल हो गई मोदी की कूटनीति?

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Financial Aid To Pakistan
locationभारत
userचेतना मंच
calendar04 Jun 2025 11:40 PM
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Financial Aid To Pakistan : पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। जिससे पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसके बावजूद, पाकिस्तान कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है, लेकिन फिर भी वह आतंकवाद फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय संसाधन जुटा रहा है। इस रहस्य के पीछे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), एशियाई विकास बैंक (एडीबी) और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाएँ हैं, जो पाकिस्तान को भारी आर्थिक सहायता प्रदान कर रही हैं। भारत सरकार की कूटनीति इस चुनौती के सामने क्यों नहीं हो रही सफल, यह सवाल अब तेजी से उभर रहा है।

तनाव के बीच भी आईएमएफ ने दी अरबों की मदद

भारत-पाक के जारी तनाव के बीच आईएमएफ ने पाकिस्तान को करीब 1 अरब डॉलर की तत्काल वित्तीय सहायता दी। भारत ने इस फैसले का विरोध किया और आईएमएफ की बैठक में मतदान से परहेज किया। सितंबर 2024 में पाकिस्तान को आईएमएफ से 7 बिलियन डॉलर के ऋण की मंजूरी मिली थी। पाकिस्तान अब तक आईएमएफ से 24 बार वित्तीय मदद ले चुका है।

वर्ल्ड बैंक और एडीबी का भी भरपूर सहयोग

वर्ल्ड बैंक और एशियाई विकास बैंक ने भी पाकिस्तान को अरबों डॉलर का आर्थिक सहयोग प्रदान किया है। एडीबी ने राजकोषीय स्थिरता और वित्तीय प्रबंधन के सुधार के लिए पाकिस्तान को 800 मिलियन डॉलर की सहायता दी है, जिसमें नीति-आधारित ऋण और कार्यक्रम-आधारित गारंटी शामिल हैं।

आतंकवाद पर पाकिस्तान का खर्चा और भारत की चुनौती

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान हर साल भारत में आतंक फैलाने के लिए लगभग 42 करोड़ रुपये खर्च करता है, जबकि भारत सरकार इस दिशा में करीब 730 करोड़ रुपये खर्च करती है। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों पर पाकिस्तान का वार्षिक खर्च करीब 683 करोड़ रुपये है।

बड़ी वित्तीय मदद के बावजूद सवाल उठते हैं

पाकिस्तान की ओर से आतंकवादी घटनाओं के बढ़ने के कारण भारत बार-बार यह सवाल उठाता रहा है कि ये वित्तीय संसाधन आतंकवाद के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एशियाई विकास बैंक ने पाकिस्तान को 43.4 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता दी है, जबकि वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान में 365 परियोजनाओं के लिए 49.7 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता जताई है। जनवरी 2025 में 20 बिलियन डॉलर की बड़ी डील भी प्रस्तावित है।

आईएमएफ का खेल और अमेरिका की भूमिका

आईएमएफ के फंड सदस्य देशों के कोटे पर आधारित होते हैं। अमेरिका इस फंड का सबसे बड़ा कोटा धारक है और उसके पास वोटिंग पावर भी सबसे अधिक है। हालांकि, अमेरिका परंपरागत रूप से पाकिस्तान का मित्र रहा है, इसलिए वह पाकिस्तान को सहायता देने में अड़ंगा नहीं लगाता।

कर्ज के जाल में फंसा पाकिस्तान

पिछले 35 वर्षों में पाकिस्तान ने आईएमएफ से 28 बार कर्ज लिया है। इसके अलावा चीन, सऊदी अरब, यूएई, पेरिस क्लब, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक, एशियाई विकास बैंक जैसे कई अन्य संस्थानों से भी भारी कर्ज प्राप्त किया है। पहलगाम हमले जैसे गंभीर घटनाओं के बाद भी पाकिस्तान को वित्तीय मदद की बहार मिल रही है। इस पर भारत की कूटनीति कितना प्रभावी साबित हो रही है, यह अब एक बड़ा सवाल बन चुका है। मोदी सरकार के लिए यह चुनौती है कि वह वैश्विक मंच पर इस वित्तीय मदद को आतंकवाद की पोषण सामग्री बनने से कैसे रोके।

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