Kalighat Temple : कोलकाता का कालीघाट मंदिर दर्शन मात्र से होती है हर मनोकामना पूरी

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Kalighat Temple: Every wish is fulfilled just by visiting the Kalighat temple of Kolkata
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Mar 2023 03:47 PM
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  Kalighat Temple :  कोलकाता  हुगली नदी के किनारे बसा है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी।कोलकाता और मां काली का संबंध बहुत पुराना और अढ़्भुत है ।ये देवी का सबसे शक्तिशाली रुप देवी महाकाली है।कोलकाता के कण कण में मां काली बसती है ।"या देवी सर्व भुतेषू शक्ति रूपेण संस्थिता नमतस्य नमतस्य नमो नमः "। मां ने शुंभ  निशुम्भ नामक दैत्य का  वध करने के लिए यह रूप लिया था । इनका जन्म देवताओं के तेज़ से हुआ था । देश में 51 शक्ति पीठ हैं  उनमे से ये एक सिद्ध पीठ है। जहां  देवी साक्षात मां काली के रूप में विराजमान हैं । कहा जाता है कि माता सती के दायें पैर की कुछ उंगलिया इसी जगह पर गिरी थी । ऐसी मान्यता है की शिव जी के तांडव के समय ये उंगलिया गिरी थी ।

Kalighat Temple :

इस मंदिर मे मां की मूरत का चेहरा श्याम रंग का है और आँखे और सिर सिन्दूरी रंग में है ।सिन्दूरी रंग मे ही मां काली को तिलक लगा हुआ है । माना जाता है कि कालीघाट मंदिर चंद्रगुप्त  द्वितीय के समय से है । शुरुआत में यह एक झोपड़ी के आकार मे था,जिसे 16 वीं  शताब्दी मे राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था । इसका वर्तमान स्वरूप लगभग 200 वर्षों पुराना है । मंदिर के मध्य भाग में मां काली की अद्भुत प्रतिमा विराजमान है । मां काली की वर्तमान मूर्ती दो सन्तो द्वारा बनायी गयी थी । मां की मूर्ति की तीन विशाल आँखे और एक लम्बी जीभ और चार हाथ है । जीभ सोने की बनी हुई है और हाथ और  दांत भी सोने के बने हुए हैं । मन्दिर मे पुष्प और मोर की आकृती के पत्थर लगे हुए हैं  जो उसे विक्टोरियंन  रूप प्रदान करते हैं ।इसके अलावा मन्दिर में एक पवित्र तालाब भी है जो दक्षिण पूर्व कोने मे  स्थित है । इसका पानी गंगा के समान पवित्र माना जाता है , ऐसी मान्यता है की ये तालाब बच्चे के वरदान को पूरा करता है।इसके शीर्ष पर एक गुंबद भी है । यह मन्दिर सुबह के 5 बजे से दोपहर  के 2 बजे  तक और फिर शाम के 5 बजे से रात्रि के 10:30 तक सार्वजनिक रूप से खुला रहता है, हालाँकि पहली आरती सुबह के चार बजे होती है । इसके अलावा भोग प्रसाद का समय दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक है । यह मन्दिर एक छोटी सी नहर के किनारे स्थित है जिसे आदि गंगा कहा जाता है जो की गंगा नदी का पुराना हिस्सा है, जो सीधे हुगली नदी मे जाकर मिलती है। पश्चिम बंगाल प्रसिद्ध  दुर्गा पुजा के उत्सव के लिये जाना जाता है काली घाट मन्दिर मे भी ये उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि मे इस मन्दिर की छटा देखते ही बनती है । देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु घंटो लाईन मे खड़े रहते हैं और अपनी अपनी बारी का इंतजार करते है,ताकी मां काली के दिव्य स्वरुप के दर्शन कर सके ।नवरात्रि के पहले दिन से ही यहां पूजा शुरू हो जाती है ।मन्दिर मे चार पहर की आरती की  जाती है,सुबह,दोपहर, शाम और रात को शयन आरती ।इस दौरान माँ को मछली का भोग भी चढता है ।जिसे सामिष भोग कहा जाता है इसलिए यह भोग महभोग के नाम से भी जाना जाता है ।विसर्जन के दिन माँ को सिन्दूर चढ़ा कर महिलायें एक दूसरे को सिन्दूर लगाती है जिसे सिन्दूर खेला कहते हैं । मंगलवार और शनिवार के साथ अष्टमी को मन्दिर में  विशेष पूजा होती है  । यहाँ  की खास परंपरा है की हर रोज रात 12 बजे के बाद मन्दिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और सुबह ठीक 4 बजे मंगल आरती के वक्त कपाट दोबारा खोल दिये जाते हैं ।धार्मिक मान्यताओ के कारण  देवी को स्नान कराते समय प्रधान पुरोहित की आँखो पर पट्टी बांध दी जाती है ।यह  मन्दिर अघोर तान्त्रिक क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है । मन्दिरपहुँचने के लिए रेल और हवाई  याता यात दोनो का उपयोग कर सकते हैं । मन्दिर के आस-पास काफी होटल हैं , जो आपके  बजट मे भी आते हैं।चूंकि इसे शहर के सबसे पवित्र मन्दिरों मे से एक माना जाता है इसलिए प्रति दिन भारी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं  । ये थी हमारी कोलकाता के कालीघाट मन्दिर की यात्रा इसे ही कहते हैं माँ काली कलकत्ते वाली ।
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Kalighat Temple : कोलकाता का कालीघाट मंदिर दर्शन मात्र से होती है हर मनोकामना पूरी

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  Kalighat Temple :  कोलकाता  हुगली नदी के किनारे बसा है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी।कोलकाता और मां काली का संबंध बहुत पुराना और अढ़्भुत है ।ये देवी का सबसे शक्तिशाली रुप देवी महाकाली है।कोलकाता के कण कण में मां काली बसती है ।"या देवी सर्व भुतेषू शक्ति रूपेण संस्थिता नमतस्य नमतस्य नमो नमः "। मां ने शुंभ  निशुम्भ नामक दैत्य का  वध करने के लिए यह रूप लिया था । इनका जन्म देवताओं के तेज़ से हुआ था । देश में 51 शक्ति पीठ हैं  उनमे से ये एक सिद्ध पीठ है। जहां  देवी साक्षात मां काली के रूप में विराजमान हैं । कहा जाता है कि माता सती के दायें पैर की कुछ उंगलिया इसी जगह पर गिरी थी । ऐसी मान्यता है की शिव जी के तांडव के समय ये उंगलिया गिरी थी ।

Kalighat Temple :

इस मंदिर मे मां की मूरत का चेहरा श्याम रंग का है और आँखे और सिर सिन्दूरी रंग में है ।सिन्दूरी रंग मे ही मां काली को तिलक लगा हुआ है । माना जाता है कि कालीघाट मंदिर चंद्रगुप्त  द्वितीय के समय से है । शुरुआत में यह एक झोपड़ी के आकार मे था,जिसे 16 वीं  शताब्दी मे राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था । इसका वर्तमान स्वरूप लगभग 200 वर्षों पुराना है । मंदिर के मध्य भाग में मां काली की अद्भुत प्रतिमा विराजमान है । मां काली की वर्तमान मूर्ती दो सन्तो द्वारा बनायी गयी थी । मां की मूर्ति की तीन विशाल आँखे और एक लम्बी जीभ और चार हाथ है । जीभ सोने की बनी हुई है और हाथ और  दांत भी सोने के बने हुए हैं । मन्दिर मे पुष्प और मोर की आकृती के पत्थर लगे हुए हैं  जो उसे विक्टोरियंन  रूप प्रदान करते हैं ।इसके अलावा मन्दिर में एक पवित्र तालाब भी है जो दक्षिण पूर्व कोने मे  स्थित है । इसका पानी गंगा के समान पवित्र माना जाता है , ऐसी मान्यता है की ये तालाब बच्चे के वरदान को पूरा करता है।इसके शीर्ष पर एक गुंबद भी है । यह मन्दिर सुबह के 5 बजे से दोपहर  के 2 बजे  तक और फिर शाम के 5 बजे से रात्रि के 10:30 तक सार्वजनिक रूप से खुला रहता है, हालाँकि पहली आरती सुबह के चार बजे होती है । इसके अलावा भोग प्रसाद का समय दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक है । यह मन्दिर एक छोटी सी नहर के किनारे स्थित है जिसे आदि गंगा कहा जाता है जो की गंगा नदी का पुराना हिस्सा है, जो सीधे हुगली नदी मे जाकर मिलती है। पश्चिम बंगाल प्रसिद्ध  दुर्गा पुजा के उत्सव के लिये जाना जाता है काली घाट मन्दिर मे भी ये उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि मे इस मन्दिर की छटा देखते ही बनती है । देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु घंटो लाईन मे खड़े रहते हैं और अपनी अपनी बारी का इंतजार करते है,ताकी मां काली के दिव्य स्वरुप के दर्शन कर सके ।नवरात्रि के पहले दिन से ही यहां पूजा शुरू हो जाती है ।मन्दिर मे चार पहर की आरती की  जाती है,सुबह,दोपहर, शाम और रात को शयन आरती ।इस दौरान माँ को मछली का भोग भी चढता है ।जिसे सामिष भोग कहा जाता है इसलिए यह भोग महभोग के नाम से भी जाना जाता है ।विसर्जन के दिन माँ को सिन्दूर चढ़ा कर महिलायें एक दूसरे को सिन्दूर लगाती है जिसे सिन्दूर खेला कहते हैं । मंगलवार और शनिवार के साथ अष्टमी को मन्दिर में  विशेष पूजा होती है  । यहाँ  की खास परंपरा है की हर रोज रात 12 बजे के बाद मन्दिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और सुबह ठीक 4 बजे मंगल आरती के वक्त कपाट दोबारा खोल दिये जाते हैं ।धार्मिक मान्यताओ के कारण  देवी को स्नान कराते समय प्रधान पुरोहित की आँखो पर पट्टी बांध दी जाती है ।यह  मन्दिर अघोर तान्त्रिक क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है । मन्दिरपहुँचने के लिए रेल और हवाई  याता यात दोनो का उपयोग कर सकते हैं । मन्दिर के आस-पास काफी होटल हैं , जो आपके  बजट मे भी आते हैं।चूंकि इसे शहर के सबसे पवित्र मन्दिरों मे से एक माना जाता है इसलिए प्रति दिन भारी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं  । ये थी हमारी कोलकाता के कालीघाट मन्दिर की यात्रा इसे ही कहते हैं माँ काली कलकत्ते वाली ।
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Holi 2023 : बनारस की मशान की होली

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Holi 2023: Holi of the crematorium of Banaras
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Feb 2023 09:38 PM
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  Holi 2023 : होली को लेकर पूरे देश मे उत्साह का माहोल है जहाँ एक तरफ गुझिया,पापड़ और रंगो की तैयारियाँ चल रही होती है  तो वही दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश की कशी जो शिव की नगरी कही जाती है ,वहा की छटा अलग ही होती है वहा की मस्ती और उमंग देखते ही बनती है ।काशी के लोग होलिका बेसब्री से इंतजार करते है रंगभरी एकादशी से काशी मे रंगोत्सव की तैयारीशूरू हो जाती है । कहा जाता है कि होली के पाँच दिन पहले यानि की रंगभरी एकादशी को भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती देवी के साथ बनारस की गलियों मे घूमते हैं और वहाँ भक्तो के साथ होली खेलते है ।

Holi 2023 :

अगले दिन शिव जी अपने परिवार और अपने गणो के साथ जो श्मशान ग्जत मे रहते है ।उनके साथ होली खेलने घाट जाते है,वहाँ पर वह चिता भस्म से होली खेलते है ।जिसे मशान की होली कहते है ।जो पूरी दुनिया का आकर्षण का केंद्र होती है  ।जिसमे सभी भक्तगण शामिल होना अपना सौभाग्य मानते है । मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली: यह होली मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है ।रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन सभी भक्तगण सुबह से ही घाट पर इकट्ठे हो जाते है ।दुनिया-भर यही एक ऐसा घाट है जहा चिता की भस्म से होली खेलनेकी परंपरा है ।दोपहर मे जब बाबा के स्नान का समय होता है,तब सभी का उत्साह देखते बनता है ।सबसे पहले भक्त श्मशान घाट के भगवान महाश्मशाननाथ के मन्दिर मे पूजा अर्चना करते है,पहले उनको अबीर-गुलाल लगाते है और फिर चिता भस्म लगाने के बाद घाट पर ठंडी हो चुकी चिता भस्म को वक दूसरे पर फ़ेक कर परंपरागत तरीके से होली मनाते है ।वहाँ के लोक गीतों पर नाचते भी है "खेले मसाने मे होली दिगंबर " की धुन पर खूब नाचते है ।

Samadhan Portal : भारत सरकार की ओर से सहयोग की एक ओर पहल   

अपने अराध्य देव शिव के साथ होली खेलते भक्तो का उल्लास देखते बनता है ।पूरी काशी नगरो रंग मे सरोबार हो जाती है ।गुलाल के साथ उड़ रही चिता भस्म राग वैराग और उमंग के रंगो मे सबको रंग रही होती है ।

Senior Citizen : रिटायरमेंट मतलब फ्यूज़ बल्ब, यह आप भी हो सकते हैं ध्यान रखना

लेखिका  बबिता आर्या