पहलगाम के जख्मों ने तोड़ी आस्था तो छोड़ दिया इस्लाम, छलका मुस्लिम शिक्षक का दर्द, बोले- "बहुत शर्मिंदा हूं"

साबिर हुसैन ने छोड़ा इस्लाम:
साबिर हुसैन एक विज्ञान शिक्षक हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक भावुक वीडियो साझा करते हुए बताया कि उन्होंने इस्लाम धर्म छोड़ने का फैसला किया है। उनकी आवाज़ में दर्द साफ़ झलक रहा था। उन्होंने कहा, "पहलगाम में जो हुआ, उसने मेरी आत्मा को झकझोर दिया। मजहब के नाम पर जिस तरह से मासूमों की जान ली गई, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। मैं अब और इस पहचान के साथ नहीं जी सकता।"धर्म से डगमगाया विश्वास
साबिर ने बताया कि वो हमेशा अपने छात्रों को इंसानियत, प्रेम और एकता का पाठ पढ़ाते आए हैं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि कुछ लोग धर्म की आड़ में हिंसा और हत्या को सही ठहराते हैं, तो उनका विश्वास पूरी तरह डगमगा गया। साबिर हुसैन ने नम आंखों से कहा। "मैं एक शिक्षक हूं, मेरा धर्म पहले इंसानियत है। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि किसी को सिर्फ उनके धर्म की वजह से मार दिया जाएगा। इस्लाम मेरे लिए शांति और करुणा का प्रतीक था, लेकिन आज मैं खुद को उससे जोड़ नहीं पा रहा।"मजहब अगर इंसानियत से ऊपर हो जाए, तो वह मजहब नहीं
साबिर हुसैन का यह फैसला भले ही व्यक्तिगत हो, लेकिन यह उन लाखों लोगों की भावना को आवाज़ देता है जो धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा से आहत हैं। उनका संदेश साफ है — "मजहब अगर इंसानियत से ऊपर हो जाए, तो वह मजहब नहीं, एक जंजीर बन जाता है।" पहलगाम हमले ने न सिर्फ जानें लीं, बल्कि भरोसे भी तोड़े हैं। लेकिन साबिर जैसे लोगों की आवाज़ बताती है कि अभी भी समाज में संवेदनशीलता और सच्ची इंसानियत जिंदा है। National News : सीमा हैदर के वापसी को लेकर उठे सवाल ? वकील ने दी सफाईअगली खबर पढ़ें
साबिर हुसैन ने छोड़ा इस्लाम:
साबिर हुसैन एक विज्ञान शिक्षक हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक भावुक वीडियो साझा करते हुए बताया कि उन्होंने इस्लाम धर्म छोड़ने का फैसला किया है। उनकी आवाज़ में दर्द साफ़ झलक रहा था। उन्होंने कहा, "पहलगाम में जो हुआ, उसने मेरी आत्मा को झकझोर दिया। मजहब के नाम पर जिस तरह से मासूमों की जान ली गई, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। मैं अब और इस पहचान के साथ नहीं जी सकता।"धर्म से डगमगाया विश्वास
साबिर ने बताया कि वो हमेशा अपने छात्रों को इंसानियत, प्रेम और एकता का पाठ पढ़ाते आए हैं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि कुछ लोग धर्म की आड़ में हिंसा और हत्या को सही ठहराते हैं, तो उनका विश्वास पूरी तरह डगमगा गया। साबिर हुसैन ने नम आंखों से कहा। "मैं एक शिक्षक हूं, मेरा धर्म पहले इंसानियत है। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि किसी को सिर्फ उनके धर्म की वजह से मार दिया जाएगा। इस्लाम मेरे लिए शांति और करुणा का प्रतीक था, लेकिन आज मैं खुद को उससे जोड़ नहीं पा रहा।"मजहब अगर इंसानियत से ऊपर हो जाए, तो वह मजहब नहीं
साबिर हुसैन का यह फैसला भले ही व्यक्तिगत हो, लेकिन यह उन लाखों लोगों की भावना को आवाज़ देता है जो धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा से आहत हैं। उनका संदेश साफ है — "मजहब अगर इंसानियत से ऊपर हो जाए, तो वह मजहब नहीं, एक जंजीर बन जाता है।" पहलगाम हमले ने न सिर्फ जानें लीं, बल्कि भरोसे भी तोड़े हैं। लेकिन साबिर जैसे लोगों की आवाज़ बताती है कि अभी भी समाज में संवेदनशीलता और सच्ची इंसानियत जिंदा है। National News : सीमा हैदर के वापसी को लेकर उठे सवाल ? वकील ने दी सफाईसंबंधित खबरें
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