Home Remedies : यूं तो शरीर का हर अंग जरूरी होता है। लेकिन जिस्म में दिल व जिगर (लीवर) का सर्वाधिक महत्व होता है। इनमें से किसी भी अंग में परेशानी हो तो जीवन संकट में पड़ जाता है। यदि आपको स्वस्थ्य रहना है तो जिगर को संभाल कर रखें। अपने जिगर की देखरेख कैसे करें तथा उससे संबंधित आयुर्वेद में क्या रामबाण उपाय हैं। आज हम आपको प्रसिद्ध चिकित्सक डा. अजीत मेहता के बताये देशी नुस्खे बता रहे हैं जिसका उपयोग करें तो जीवन निरोग रहेगा।
Home Remedies :
एक कागजी नींबू (अच्छा पका हुआ) लेकर उसके दो टुकड़े कर लें। फिर बीज निकालकर आधे नींबू के बिना काटे चार भाग करें पर टुकड़े अलग-अलग न हों। तत्पश्चात एक भाग में काली मिर्च का चूर्ण, दूसरे में काला नमक (अथवा सैंधा नमक), तीसरे में सौंठ का चूर्ण और चौथे में मिश्री का चूर्ण (या शक्कर या चीनी) भर दें। रात को प्लेट में रखकर ढंक दें। प्रात: भोजन करने से एक घंटे पहले इस नींबू की फाँक को मन्दी आंच या तवे पर गर्म करके चूस लें।
विशेष : आवश्यकतानुसार सात दिन से इक्कीस दिन लेने से लीवर सही होगा। इससे यकृत विकार ठीक होने के साथ पेट दर्द और मुँह का जायका ठीक होगा। भूख बढ़ेगी। सिरदर्द और पुरानी से पुरानी कब्ज दूर होगी। यकृत के कठोर और छोटा होने के रोग (Cirrhosis of liver) में अचूक है। पुराना मलेरिया, ज्वर, कुनैन या पारा के दुर्व्यवहार, अधिक मद्यपान, अधिक मिठाई खाना, अमेबिक पेचिश के रोगाणु का यकृत में प्रवेश आदि कारणों से यकृत रोगों की उत्पत्ति होती है। बुखार ठीक हो जाने के बाद भी यकृत की बीमारी बनी रहती है और यकृत कठोर एवं पहले से बड़ा हो जाता है। रोग के घातक रूप लेने पर यकृत का संकोचन (Cirrhosis of liver) होता है। यकृत रोगों में आँखें व चेहरा रक्तहीन, जीभ सफेद, रक्ताल्पता, नीली नसें, कमजोरी, कब्ज, गैस और बिगड़ा स्वाद, दाहिने कंधे के पीछे दर्द, शौच आँवयुक्त कीचड़ जैसा होना, आदि लक्षण प्रतीत होते हैं।
सहायक उपचार : दो सप्ताह तक चीनी अथवा मीठा का इस्तेमाल न करें। चीनी के बजाय दूध में चार-पाँच मुनक्का डाल कर मीठा कर लें। रोटी भी कम खायें। अच्छा तो यह है कि जब उपचार चलता रहे रोटी बिल्कुल न खाकर सब्जियाँ और फल से ही गुजारा कर लें। सब्जी में मसाला न डालें। टमाटर, पालक, गाजर, बथुआ, करेला, लौकी आदि शाक-सब्जियाँ और पपीता, आँवला, जामुन, सेव, आलूबुखारा, लीची आदि फल तथा छाछ आदि का अधिक प्रयोग करें। घी और तली वस्तुओं का प्रयोग कम से कम करें। पन्द्रह दिन में जिगर ठीक हो जाएगा। जिगर का संकोचन में दिन में दो बार प्याज खाते रहने से भी लाभ होता है। जिगर रोगों में छाछ (हींग का बगार देकर, जीरा काली मिर्च और नमक मिलाकर) दोपहर के भोजन के बाद सेवन करना बहुत लाभप्रद है।
विकल्प : आँवलों का रस 25 ग्राम या सूखे आँवलों का चूर्ण चार ग्राम पानी के साथ, दिन में तीन बार सेवन करने से 15-20 दिन में यकृत के सारे दोष दूर हो जाते हैं। एक सौ ग्राम पानी में आधा नींबू निचोडक़र नमक (चीनी की बजाय) डालें और इसे दिन में तीन बार पीने से जिगर की खराबी ठीक होगी। सात से इक्कीस दिन लें। जामुन के मौसम में 200-300 ग्राम बढिय़ा और पके हुए जामुन प्रतिदिन खाली पेट खाने से जिगर की खराबी दूर हो जाती है।
तिल्ली अथवा जिगर (यकृत) व तिल्ली (प्लीहा) दोनों के बढऩे पर
पुराना गुड़ डेढ़ ग्राम और बड़ी (पीली) हरड़ के छिलके का चूर्ण बराबर वजन मिलाकर एक गोली बनायें और ऐसी गोली दिन में दो बार प्रात: सायं हल्के गर्म पानी के साथ एक महीने तक लें। इससे यकृत (Liver) और प्लीहा (Spleen) यदि दोनों ही बढ़े हुए हों, तो भी ठीक हो जाते हैं।
विशेष : इसके तीन दिन के प्रयोग से अम्लपित्त का भी नाश होता है।
तिल्ली की खराबी
अजवायन का चूर्ण दो ग्राम, सैंधा नमक आधा ग्राम मिलाकर (अथवा अजवायन का चूर्ण अकेला ही) दोनों समय भोजन के पश्चात् गर्म पानी के साथ लेने से प्लीहा की विकृति दूर होती है।
इससे उदर-शूल बन्द होता है। पाचन क्रिया ठीक होती है। कृमिजन्य सभी विकार तथा अजीर्णादि रोग दो-तीन दिन में ही दूर हो जाते हैं। पतले दस्त होते हैं। तो वे भी बन्द जाते हैं। जुकाम में भी लाभ होता है।