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Home Remedies : बवासीर के दर्द से राहत दिलायेंगे कुछ घरेलू नुस्खे

Home Remedies: Some home remedies will give relief from the pain of piles

Home Remedies: Some home remedies will give relief from the pain of piles

Home Remedies :  बवासीर या पाइल्स अपने आप में एक भयंकर बीमारी है। इसकी वजह से व्यक्ति को अपने नित्यकर्म में कई बार भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। खराब जीवन शैली, खान-पान या किसी पुरानी कब्ज के कारण बवासीर की समस्या बन जाती है। मलाशय और मलमार्ग में फोड़ों को बवासीर के रूप में जाना जाता है। बवासीर होने पर मल त्याग में बड़ समस्या होती है, लेकिन इसका इलाज है आधुनिक चिकित्सा में ऑपरेशन के जरिए भी इससे छुटकारा मिल सकता है। लेकिन आयुर्वेद और घरेलू नुस्खे भी बवासर के ईलाज में काफी मददगार साबित हो सकते हैं जिन्हें अपनाकर बवासीर से निजात मिल सकती है।

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डा. अजीत मेहता के मुताबिक दो सूखे अंजीर शाम को पानी में भिगो दें। सवेरे खाली पेट उनको खाएँ, इसी प्रकार सवेरे के भिगोये दो अंजीर शाम चार-पाँच बजे खाएँ। एक घंटा आगे पीछे कुछ न लें। आठ-दस दिन के सेवन से बादी और खूनी हर प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।

बवासीर को जड़ से दूर करने के लिए और पुन: न होने देने के लिए छाछ सर्वोत्तम है। दोपहर के भोजन के बाद छाछ में डेढ़ ग्राम (चौथाई चम्मच) पीसी हुई अजवायन और एक ग्राम सैंधा नमक मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ होता है और नष्ट हुए बवासीर के मस्से पुन: उत्पन्न नहीं होते।

बवासीर के मस्सों पर लगाने के लिए : कपूर को आठ गुना थोड़ा गर्म एरण्डी के तेल में (आग से नीचे उतारकर) मिला व घोलकर रख लें। पाखाना करने के बाद मस्सों को धोकर और पौंछकर इस तेल को दिन में दो बार नर्मीं से मस्सों पर इतना मलें कि मस्सों में शोषित हो जाये। इस तेल की नर्मी से मालिश से मस्सों की तीव्र शोथ, दर्द, जलन, सुईयाँ चुभने को आराम आ जाता है और निरन्तर प्रयोग से मस्से खुश्क हो जाते हैं। बवासीर के मस्से सूजकर अंगूर की भाँति मोटे हो जाते हैं और कभी-कभी गुदा से बाहर निकल आते हैं। ऐसी अवस्था में यदि उन पर इस तेल को लगाकर अन्दर किया जाये तो दर्द नहीं होता और मस्से नर्म होकर आसानी से गुदा के अन्दर प्रवेश किए जा सकते हैं।
सहायक उपचार : बवासीर की उग्र अवस्था में भोजन में केवल दही और चावल, मूँग की खिचड़ी लें। देसी घी प्रयोग में लाएँ। मल को सख्त और कब्ज न होने दें। अधिक तेज मिर्च-मसालेदार, उत्तेजक और गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से बचें। खूनी बवासीर में छाछ या दही के साथ कच्चा प्याज (या पिसी हुई प्याज की चटनी) खाना चाहिए। रक्तस्रावी बवासीर में दोपहर के भोजन के एक घंटे बाद आधा किलो अच्छा पपीता खाना हितकर है। बवासीर चाहे कैसी भी हो—बादी हो अथवा खूनी-मूली भी अक्सीर है। कच्ची मूली (पत्तों सहित) खाना या इसके रस का पच्चीस से पचास ग्राम की मात्रा से कुछ दिन सेवन बवासीर के अतिरिक्त रक्त के दोषों को निकालकर रक्त को शुद्ध करता है।
विशेष : बवासीर से बचने के लिए गुदा को गर्म पानी से न धोएँ। खासकर जब तेज गर्मियों के मौसम में छत की टंकियों व नलों से बहुत गर्म पानी आता है तब गुदा को उस गर्म पानी से धोने से बचना चाहिए। एक बार बवासीर ठीक हो जाने के बाद बदपरहेजी (जैसे अत्यधिक मिर्च-मसालेदार, गरिष्ठ और उत्तेजक पदार्थों का सेवन) के कारण उसके दुबारा होने की संभावना रहती है। अत: बवासीर के रोगी के लिए बदपरहेजी से बचना परम आवश्यक है।

खूनी और बादी बवासीर
डा. अजीत मेहता ने बताया कि सूखे नारियल की जटा (नारियल की दाढ़ी या भूरे रेशे) को जलाकर राख बना लें और छानकर रख लें। इस नारियल-जटा भस्म (छनी हुई) को 3-3 ग्रामकी मात्रा में, दिन में तीन बार, खाली पेट, कप-डेढ़ कप छाछ या दही (परन्तु खट्टा न हो) के साथ केवल एक ही दिन लें। खूनी और बादी (खुश्क) दोनों प्रकार की बवासीर दूर होगी। पुन: शायद ही लेनी पड़े। वैसे, आवश्यक हो तो और मात्रा भी ली जा सकती है।

विशेष : उपरोक्त शतश: अनुभूत योग ‘योगश्रम’ बरोशी (महाराष्ट्र) के 78 वर्षीय विरक्त सेवाभावी डॉ. ओमानन्दजी ने नि:स्वार्थ भाव से जनकल्याणार्थ भेजा है। किसी भी व्यक्ति का बादी बवासीर या रक्तार्श (खूनी बवासीर)- दोनों ही चाहे कितने ही पुराने या भयंकर क्यों न हो, एक ही दिन की दवा के सेवन से साफ हो जाते हैं। आहार-विहार शुद्ध, सात्विक और अनुत्तेजक रहे तो आयुपर्यन्त पुन: रोग न हो। बवासीर के अलावा महिलाओं का रंगीन व श्वेत प्रदर कैसा भी क्यों न हो, में यह योग समान रूप से लाभकारी है। यदि प्रदर रोग की रोगिणी कुछ दिन सामर्थ्य से बाहर कोई कष्टकर काम, जैसे भार उठाना, दौडऩा, तेज चाल, लम्बी पद-यात्रा न करें और खट्टे, चटपटे और तेज मिर्च-मसालेदार उत्तेजक आहार से बचे। इन रोगों के अतिरिक्त हैजा, वमन और हिचकी रोग में भी रामबाण है। इन रोगों में उपरोक्त औषधि एक ग्राम की मात्रा से एक घूंट ताजे जल के साथ लें। इस प्रकार शरीर के किसी बाहर-भीतर के अंग से कैसा भी रक्तस्राव हो अथवा रक्तप्रमेह, खूनी दस्त, खून थूकना आदि हों, इन रोगों में भी यह औषधि बड़ी प्रभावकारी है। यदि कोई यह पूछे कि बवासीर की क्या कोई औषधि है, जो शीघ्र प्रभावकर, हानिरहित, सर्वत्र सुलभ, निर्माण सुगम होने के साथ-साथ सस्ती भी हो तो कहा जा सकता है कि यह औषधि तो इन सभी को लांघकर एक डग आगे निकल जाती है अर्थात् द्रुत प्रभावकर तो ऐसी कि इसे लेते ही रोग गायब, मानों रोग हुआ ही नहीं। बस, एक ही दिन लेनी होती है, न सेवन-कष्ट न विशेष पथ्य। हानि रहित ऐसी कि इससे न कोई साइड इफेक्ट न बैड इफेक्ट और न अन्य कोई डिफेक्ट। सुलभ ऐसी की भारत के कोने-कोने (मन्दिरों) में सहज उपलब्ध। साथ ही अनेकानेक औषधियों को इकट्ठे करने की जरूरत नहीं है, केवल अकेली ही समर्थ है। निर्माण-कार्य तो है ही नहीं समझें-माचिश-काडी दिखाई कि औषधि तैयार हुई। घोंट-पीसने तक का झंझट भी नहीं। अन्तिम परन्तु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात – ‘सस्तापन’ ऐसा कि-‘हल्दी लगे न फिटकडी, रंग चोखा आए’ अर्थात् बिल्कुल मुफ्त (सभी देवालयों से पवित्र कूडा-कचरा रूप शुद्ध-स्वच्छ और नि:शुल्क उपलब्ध)।

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