Battle Storm

Battle Storm : जहां एक ओर दुनिया अब भी ईरान और इजरायल के बीच छिड़े संघर्ष की गूंज से उबर नहीं पाई है, वहीं एशिया के एक और संवेदनशील इलाके ताइवान के आसमान और समुद्र में युद्ध के बादलों की गड़गड़ाहट तेज हो गई है। चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने बीते दिनों ताइवान के नजदीकी समुद्री क्षेत्र में अपने सबसे बड़े जंगी बेड़े की मौजूदगी दर्ज कराई है, जिसकी पुष्टि स्वयं ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने की है।

ताइवान की चेतावनी : सीमा के पार आ गया ड्रैगन

ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने जानकारी दी है कि हाल ही में चीन के 6 युद्धपोत और 6 लड़ाकू विमान ताइवान की पहचान क्षेत्र में सक्रिय पाए गए। इनमें से तीन विमान ताइवान के एयर डिफेंस जोन की मध्य रेखा को भी पार कर गए, जिसे वर्षों से एक अनौपचारिक ‘नो क्रॉस’ लाइन माना जाता रहा है। यह कोई पहला अवसर नहीं है, पिछले एक साल में चीन द्वारा बार-बार सैन्य अभ्यास, समुद्री गश्त और साइबर हमलों के जरिए ताइवान पर दबाव बनाने की नीति साफ तौर पर देखी जा सकती है।

शेडोंग और लियाओनिंग की बढ़ती गतिविधि

ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने हाल ही में सैन्य अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। उन्होंने बताया कि चीन की नौसेना के दो प्रमुख एयरक्राफ्ट करियर, ‘शेडोंग’ और ‘लियाओनिंग’, ताइवान के पास के जल क्षेत्रों में लगातार सक्रिय हैं। यह संकेत है कि बीजिंग धीरे-धीरे ‘फर्स्ट और सेकंड आइलैंड चेन’ के आसपास अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत कर रहा है।

अमेरिकी कमांड भी अलर्ट

इस घटनाक्रम के बीच अमेरिका की इंडो-पैसिफिक कमांड ने अपनी तैनाती के स्तर को ‘फोर्स प्रोटेक्शन कंडीशन’ की ऊंची स्थिति में ले जाने का निर्णय लिया है। इसका तात्पर्य है कि अमेरिका भी इस स्थिति को एक संभावित सैन्य संकट के रूप में देख रहा है। चीन के इस कदम को न केवल ताइवान पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश माना जा रहा है, बल्कि यह वाशिंगटन के साथ बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव का भी हिस्सा है।

क्या ताइवान बना सकता है ‘नई युद्धभूमि’?

विशेषज्ञ मानते हैं कि बीजिंग का यह रवैया ताइवान के साथ साथ पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरे की घंटी है। चीन की “वन चाइना” नीति के तहत ताइवान को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी जाती। दूसरी ओर, ताइवान 1949 से वास्तविक स्वतंत्रता के साथ लोकतांत्रिक सरकार चलाता है और वह किसी भी तरह के सैन्य समर्पण से इंकार करता है।

महाशक्तियों की रेखाएं और ‘आइलैंड वार’ की आहट

ताइवान पर मंडराते बादल केवल द्वीप की सुरक्षा का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि यह पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन को चुनौती देने वाली स्थिति है। अमेरिका, जापान, आॅस्ट्रेलिया और फिलीपींस जैसे देश ताइवान की सुरक्षा को लेकर पहले ही सतर्क हो चुके हैं। अगर चीन की यह रणनीति किसी बड़े टकराव की ओर बढ़ती है, तो यह न केवल एशिया, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था और शांति के लिए एक ‘महा-संकट’ का रूप ले सकती है।

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