Education In USA : अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी हार्वर्ड और तत्कालीन ट्रंप प्रशासन के बीच बढ़ती खींचतान अब शिक्षा की सीमाओं से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुकी है। ट्रंप सरकार द्वारा हार्वर्ड का SEVP (स्टूडेंट एण्ड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम) सर्टिफिकेशन रद करने से न सिर्फ संस्थान की छवि को चोट पहुँची है, बल्कि हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है।
अमेरिकी प्रशासन के कदम की पृष्ठभूमि
ट्रंप प्रशासन लंबे समय से यूनिवर्सिटी कैंपसों में प्रगतिशील विचारों और DEI नीतियों (डाईवर्सिटी, इक्विटी,इनक्लूशन) को लेकर नाराजगी जाहिर करता रहा है। प्रशासन का आरोप है कि हार्वर्ड जैसे संस्थान हमास समर्थक विचारों को बढ़ावा देते हैं और यहूदी छात्रों के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं। हार्वर्ड का स्पष्ट इनकार है कि वह अपनी हायरिंग, पाठ्यक्रम या एडमिशन प्रक्रिया में किसी भी राजनीतिक दबाव के तहत बदलाव नहीं करेगा, यही टकराव की मुख्य वजह बनी है।
एईवीपी सर्टिफिकेशन क्यों जरूरी है?
SEVP सर्टिफिकेशन अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा किसी भी यूनिवर्सिटी को इंटरनेशनल छात्रों को नामांकित करने की अनुमति देता है। बिना इसके यूनिवर्सिटी आई-20 फॉर्म जारी नहीं कर सकती, जो इंटरनेशनल एडमिशन का आधार होता है। बिना इसके विदेशी छात्रों को F-1, J-1 या M-1 वीजा नहीं मिल सकता। यूनिवर्सिटी की ग्लोबल रैंकिंग और विविधता मॉडल पर भी असर पड़ता है।
हार्वर्ड में पढ़ने वाले छात्रों पर प्रत्यक्ष प्रभाव :
कुल विदेशी छात्र : 7,793
भारतीय छात्र (प्रति वर्ष औसतन) : 500-800
डिग्री पूरी करने वाले छात्र : उन्हें डिग्री मिल जाएगी।
60 दिन (एफ-1) और 30 दिन (जे-1) का समय है अमेरिका छोड़ने का।
OPT (आॅप्सनल प्रैक्टिकल टेÑनिंग) जैसे अवसर भी संकट में आ सकते हैं अगर वीजा स्टेटस बदल गया।
अधूरी डिग्री वाले छात्र : या तो उन्हें अन्य मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर लेना होगा। या फिर देश छोड़ना होगा, यदि उनका वीजा स्टेटस वैध नहीं रहा तो वो कैसे अमेरिका में रह सकेंगे।नए छात्र (फाल- 2025 बैच):
किसी भी नए इंटरनेशनल छात्र का अभी एडमिशन संभव नहीं है। भारत सहित कई देशों के छात्र अब हार्वर्ड की बजाय एमआईटी, स्टेन फोर्ड, येल, आक्सफोर्ड या अन्य विकल्पों की ओर देख रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय असर :
भारत पर प्रभाव :
अमेरिका उच्च शिक्षा के लिए सबसे पसंदीदा देश है और हार्वर्ड शीर्ष विकल्पों में से एक। हर साल हजारों छात्र सेट, ग्रे और टाफेल जैसे टेस्ट देकर हार्वर्ड जैसे संस्थानों में दाखिला पाने की कोशिश करते हैं। इस घटना ने भारतीय अभिभावकों और छात्रों में भारी असमंजस और चिंता पैदा कर दी है।
दूसरे देशों पर प्रभाव :
चीन, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय देश और मिडल ईस्ट के छात्र भी बड़े स्तर पर प्रभावित होंगे। कई छात्र जो हार्वर्ड में दाखिला पक्का कर चुके थे, अब अपनी फीस और वीजा स्टेटस को लेकर असमंजस में हैं।
कानूनी और संस्थागत प्रतिक्रिया :
कोर्ट ने फिलहाल सरकार के फैसले पर अस्थायी रोक लगाई है। लेकिन अंतिम निर्णय लंबित है और इससे पहले 2025-26 का शैक्षणिक सत्र नजदीक आ जाएगा। हार्वर्ड का कहना है कि यह कार्रवाई शिक्षा की स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
विश्वविद्यालय इसके खिलाफ संवैधानिक चुनौती दे रहा है और उम्मीद है कि न्यायपालिका उनके पक्ष में फैसला देगी।
विद्यार्थियों के लिए संभावित समाधान :
छात्र दूसरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर येल, पिंसटन, एमआईटी जैसे विकल्प, में एडमिशन ले सकते हैं। पढ़ाई आॅनलाइन मोड में जारी रखें, अगर एसईवीपी बहाल न हो तो सीमित विकल्प बचते हैं। लीगल एडवाइज लें, इमिग्रेशन लॉयर की मदद से वीजा स्टेटस बचाएं। गैप ईयर लें। जब तक स्थिति साफ नहीं होती, एक साल का ब्रेक लें।
निष्कर्ष : शिक्षा को राजनीति से अलग रखना जरूरी
इस पूरे मामले ने एक बात को उजागर किया है कि राजनीतिक निर्णय जब शिक्षा और छात्रों पर प्रभाव डालते हैं, तो उसका असर केवल एक यूनिवर्सिटी या एक देश तक सीमित नहीं रहता। इस समय हार्वर्ड यूनिवर्सिटी न सिर्फ अपनी साख बचाने के लिए, बल्कि विश्वभर के छात्रों के भविष्य के लिए भी लड़ाई लड़ रही है।
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