Saturday, 15 March 2025

हिज्बुल्लाह अब खुद अस्तित्व बचाने की लड़ाई में, ईरान ने भी हाथ खींचा

Financial Crisis : हिज्बुल्लाह, जिसने दशकों तक इजराइल के खिलाफ संघर्ष किया और खुद को एक मजबूत प्रतिरोधी ताकत के…

हिज्बुल्लाह अब खुद अस्तित्व बचाने की लड़ाई में, ईरान ने भी हाथ खींचा

Financial Crisis : हिज्बुल्लाह, जिसने दशकों तक इजराइल के खिलाफ संघर्ष किया और खुद को एक मजबूत प्रतिरोधी ताकत के रूप में स्थापित किया, अब गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। हाल के वर्षों में, यह संगठन लेबनान में एक अजेय शक्ति माना जाता था, लेकिन बदलते भू-राजनीतिक हालातों ने इसकी ताकत को कमजोर कर दिया है।

ईरान की आर्थिक स्थिति और हिज्बुल्लाह पर प्रभाव

हिज्बुल्लाह को सबसे ज्यादा आर्थिक और सैन्य सहायता ईरान से मिलती रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का दबाव बढ़ा है। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने तेहरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे वह अपने सहयोगी गुटों को पहले जैसी सहायता देने में असमर्थ हो गया है। ईरान खुद भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है, और यही कारण है कि उसने हिज्बुल्लाह की फंडिंग में भारी कटौती कर दी है। ईरान की इस नीति का असर सीधे हिज्बुल्लाह की सैन्य और राजनीतिक ताकत पर पड़ा है। पहले जहां यह संगठन दक्षिणी लेबनान में अजेय माना जाता था, वहीं अब इस इलाके में उसकी पकड़ ढीली पड़ रही है।

इजराइल के साथ संघर्ष ने बढ़ाई परेशानी

बीते 14 महीनों में इजराइल और हिज्बुल्लाह के बीच जारी टकराव ने संगठन की स्थिति को और कमजोर कर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस संघर्ष में हिज्बुल्लाह के हजारों लड़ाके मारे गए हैं और उसके वित्तीय संसाधनों पर भी भारी असर पड़ा है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, हिज्बुल्लाह का वित्तीय संस्थान अल-कर्द अल-हसन अपने फंड्स रोकने पर मजबूर हो गया है। पहले हिज्बुल्लाह अपने मारे गए लड़ाकों के परिवारों को मुआवजा देता था, लेकिन अब ऐसा कर पाना मुश्किल हो गया है। यह स्थिति संगठन के लिए न केवल एक बड़ा झटका है, बल्कि इससे उसके समर्थकों में भी निराशा फैल रही है।

सीरिया में असद सरकार के पतन से बढ़ी मुश्किलें

हिज्बुल्लाह की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब दिसंबर 2024 में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार गिर गई। असद शासन हिज्बुल्लाह और अन्य ईरान-समर्थित गुटों के लिए हथियारों और धन का प्रमुख स्रोत था। लेकिन उनके सत्ता से बाहर होने के बाद हिज्बुल्लाह को सैन्य और आर्थिक मोर्चे पर भारी नुकसान उठाना पड़ा है। असद सरकार के पतन के बाद सीरिया में हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर भी हमले बढ़ गए हैं, जिससे संगठन के लिए हालात और मुश्किल हो गए हैं।

लेबनान सरकार की नई नीति

लेबनान की नई सरकार अब हिज्बुल्लाह पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री नवाफ सलाम ने संसद में साफ कर दिया कि लेबनान की सेना ही देश में हथियारों पर नियंत्रण रखेगी और संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 1701 को लागू किया जाएगा। इस प्रस्ताव के तहत हिज्बुल्लाह को लिटानी नदी के दक्षिण में अपने हथियार छोड़ने होंगे। हालांकि, हिज्बुल्लाह ने अभी तक इस फैसले पर कोई सीधा बयान नहीं दिया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह संगठन सरकार के खिलाफ विद्रोह कर सकता है।

क्या हिज्बुल्लाह की वापसी संभव है?

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या हिज्बुल्लाह अपनी पुरानी स्थिति में लौट पाएगा? विश्लेषकों का मानना है कि ईरान की आर्थिक बदहाली, इजराइल का बढ़ता दबाव और लेबनान सरकार की नई नीतियों के कारण हिज्बुल्लाह के लिए अपनी पुरानी ताकत वापस पाना बेहद मुश्किल होगा। हालांकि, हिज्बुल्लाह के नेता मोहम्मद राद ने सरकार को समर्थन देने की बात कही है, लेकिन संगठन के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए इस पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल है।

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