मुनीर आर्मी के खिलाफ 'यलगार': बलूचों के बाद अब पठानों की बगावत से पाकिस्तान में उठी गृहयुद्ध की आहट

इमरान खान का आरोप : अगर मुझे कुछ हुआ, तो असीम मुनीर जिम्मेदार
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल ही में जेल से एक पत्र जारी कर साफ तौर पर कहा है कि अगर उनकी मौत होती है, तो इसके लिए सीधे तौर पर सेना प्रमुख असीम मुनीर को जिम्मेदार ठहराया जाए। उन्हें रावलपिंडी की आदियाला जेल के डेथ सेल में रखा गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके सेल की बिजली काट दी गई है, और उन्हें बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया गया है। इमरान की पत्नी बुशरा बीबी को भी उसी जेल में मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दिए जाने के आरोप लगे हैं। यह मुद्दा अब पाकिस्तान के लोकतांत्रिक विमर्श और मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।पठानों की बगावत : खैबर में गूंजा विद्रोह का स्वर
खैबर पख्तूनख्वा, जिसे इमरान खान की पार्टी पीटीआई का गढ़ माना जाता है, अब मुनीर आर्मी के विरुद्ध विद्रोह की धरती बन चुकी है। वजीरिस्तान जैसे सीमावर्ती इलाकों में सेना द्वारा पठानों पर चलाए जा रहे 'क्लीन-अप आॅपरेशन' ने जनाक्रोश को और अधिक तीव्र कर दिया है। स्थानीय लोग अब इसे जातीय दमन मानते हुए खुलेआम सेना के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा पठानों का है। ये वह समुदाय है जो लंबे समय से खुद को सत्ता से उपेक्षित महसूस करता आया है और अब पहली बार संगठित स्वरूप में बगावत की मुद्रा में दिखाई दे रहा है।बलूचिस्तान : जहां पहले से सुलग रही है बगावत की आग
बलूच विद्रोह तो पहले से ही पाकिस्तान की नींव को झकझोर रहा है। जनवरी से जून 2025 तक बलूच विद्रोहियों ने 286 हमले किए, जिनमें पाकिस्तानी सेना और सुरक्षाबलों के करीब 780 जवान मारे गए। हाल ही में साबरी ब्रदर्स के तीन कव्वालों की हत्या ने यह दिखा दिया कि बलूचिस्तान की ज्वाला अब केवल सुरक्षा प्रतिष्ठानों तक सीमित नहीं रही। कोई समय था जब बलूच आंदोलन को सीमित और अलगाववादी मानकर दबाने की कोशिश की जाती थी, लेकिन अब जब यह आग पठान बहुल प्रांत खैबर पख्तूनख्वा तक फैलने लगी है, तब पाकिस्तान के नीति-नियंताओं के होश फाख्ता हैं।राजनीतिक समीकरणों में भूचाल
इस समय पीटीआई, जो खैबर प्रांत में सत्ता में है, गंभीर संकट में फंसी है। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि आने वाले सप्ताहों में वहाँ राष्ट्रपति शासन जैसे कठोर विकल्पों की चर्चा तेज हो सकती है। लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान की सेना अपने ही देश के इतने बड़े हिस्से की असंतुष्टि और विद्रोह को सिर्फ बल प्रयोग से कुचल पाएगी?क्या गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है पाकिस्तान?
बलूच और पठान दो बड़े समुदाय अब सेना के खिलाफ हथियारबंद या राजनीतिक संघर्ष की राह पर हैं। एक ओर हथियार, दूसरी ओर लोकतांत्रिक आंदोलन... लेकिन दोनों का निशाना एक ही है, पाकिस्तानी सेना और उसके वर्तमान प्रमुख असीम मुनीर। अगर पाकिस्तान की सत्ता और सेना इन चेतावनियों को अनसुना करती रही, तो बहुत संभव है कि पाकिस्तान की एकता का ताना-बाना और अधिक तार-तार हो जाए। भारत सहित समूचे दक्षिण एशिया को यह घटनाक्रम बेहद सतर्कता से देखना होगा। पाकिस्तान में जिस तरह आंतरिक विद्रोह और सैन्य निरंकुशता टकरा रही है, वह क्षेत्रीय अस्थिरता को जन्म दे सकती है।अगली खबर पढ़ें
इमरान खान का आरोप : अगर मुझे कुछ हुआ, तो असीम मुनीर जिम्मेदार
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल ही में जेल से एक पत्र जारी कर साफ तौर पर कहा है कि अगर उनकी मौत होती है, तो इसके लिए सीधे तौर पर सेना प्रमुख असीम मुनीर को जिम्मेदार ठहराया जाए। उन्हें रावलपिंडी की आदियाला जेल के डेथ सेल में रखा गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके सेल की बिजली काट दी गई है, और उन्हें बाहरी दुनिया से पूरी तरह काट दिया गया है। इमरान की पत्नी बुशरा बीबी को भी उसी जेल में मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दिए जाने के आरोप लगे हैं। यह मुद्दा अब पाकिस्तान के लोकतांत्रिक विमर्श और मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।पठानों की बगावत : खैबर में गूंजा विद्रोह का स्वर
खैबर पख्तूनख्वा, जिसे इमरान खान की पार्टी पीटीआई का गढ़ माना जाता है, अब मुनीर आर्मी के विरुद्ध विद्रोह की धरती बन चुकी है। वजीरिस्तान जैसे सीमावर्ती इलाकों में सेना द्वारा पठानों पर चलाए जा रहे 'क्लीन-अप आॅपरेशन' ने जनाक्रोश को और अधिक तीव्र कर दिया है। स्थानीय लोग अब इसे जातीय दमन मानते हुए खुलेआम सेना के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा पठानों का है। ये वह समुदाय है जो लंबे समय से खुद को सत्ता से उपेक्षित महसूस करता आया है और अब पहली बार संगठित स्वरूप में बगावत की मुद्रा में दिखाई दे रहा है।बलूचिस्तान : जहां पहले से सुलग रही है बगावत की आग
बलूच विद्रोह तो पहले से ही पाकिस्तान की नींव को झकझोर रहा है। जनवरी से जून 2025 तक बलूच विद्रोहियों ने 286 हमले किए, जिनमें पाकिस्तानी सेना और सुरक्षाबलों के करीब 780 जवान मारे गए। हाल ही में साबरी ब्रदर्स के तीन कव्वालों की हत्या ने यह दिखा दिया कि बलूचिस्तान की ज्वाला अब केवल सुरक्षा प्रतिष्ठानों तक सीमित नहीं रही। कोई समय था जब बलूच आंदोलन को सीमित और अलगाववादी मानकर दबाने की कोशिश की जाती थी, लेकिन अब जब यह आग पठान बहुल प्रांत खैबर पख्तूनख्वा तक फैलने लगी है, तब पाकिस्तान के नीति-नियंताओं के होश फाख्ता हैं।राजनीतिक समीकरणों में भूचाल
इस समय पीटीआई, जो खैबर प्रांत में सत्ता में है, गंभीर संकट में फंसी है। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि आने वाले सप्ताहों में वहाँ राष्ट्रपति शासन जैसे कठोर विकल्पों की चर्चा तेज हो सकती है। लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या पाकिस्तान की सेना अपने ही देश के इतने बड़े हिस्से की असंतुष्टि और विद्रोह को सिर्फ बल प्रयोग से कुचल पाएगी?क्या गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है पाकिस्तान?
बलूच और पठान दो बड़े समुदाय अब सेना के खिलाफ हथियारबंद या राजनीतिक संघर्ष की राह पर हैं। एक ओर हथियार, दूसरी ओर लोकतांत्रिक आंदोलन... लेकिन दोनों का निशाना एक ही है, पाकिस्तानी सेना और उसके वर्तमान प्रमुख असीम मुनीर। अगर पाकिस्तान की सत्ता और सेना इन चेतावनियों को अनसुना करती रही, तो बहुत संभव है कि पाकिस्तान की एकता का ताना-बाना और अधिक तार-तार हो जाए। भारत सहित समूचे दक्षिण एशिया को यह घटनाक्रम बेहद सतर्कता से देखना होगा। पाकिस्तान में जिस तरह आंतरिक विद्रोह और सैन्य निरंकुशता टकरा रही है, वह क्षेत्रीय अस्थिरता को जन्म दे सकती है।संबंधित खबरें
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