New Delhi/Madrid : भारत की ओर से आपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करने के अभियान के तहत, भारतीय संसद के बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल इन दिनों कई देशों की यात्रा पर है। इसी कड़ी में डीएमके सांसद कनिमोझी जब स्पेन पहुँचीं, तो प्रवासी भारतीयों के बीच पूछे गए एक सवाल ने चर्चा का विषय बना दिया। हालांकि कनिमोझी के जवाब ने लोगों को ताली बजाने को मजबूर कर दिया।
भारत की राष्ट्रीय भाषा है ‘एकता में विविधता’
प्रवासी भारतीय समुदाय के एक सदस्य ने कनिमोझी से सवाल किया “भारत की राष्ट्रीय भाषा क्या होनी चाहिए?”
इस पर उनका जो उत्तर आया, वह न केवल अप्रत्याशित था, बल्कि दिल छू लेने वाला भी था। उन्होंने बिना किसी भाषाई वर्चस्व की चर्चा किए बेहद संतुलित और भारत की आत्मा को प्रतिबिंबित करने वाला जवाब दिया, उन्होंने कहा कि “भारत की राष्ट्रीय भाषा है ‘एकता में विविधता’। यही सबसे जरूरी संदेश है, जिसे आज की दुनिया को समझाने की आवश्यकता है।” कनिमोझी ने आगे कहा कि प्रवासी भारतीय समुदाय विश्व मंच पर भारत की बहुलतावादी और शांतिप्रिय छवि को मजबूती से रख सकता है। उनका यह वक्तव्य सुनते ही पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
क्यों अहम है यह बयान?
कनिमोझी का यह वक्तव्य उस समय आया है, जब केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शामिल त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर कई गैर-हिंदी भाषी राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु, ने विरोध जताया है। डीएमके लंबे समय से यह आरोप लगाती रही है कि नई नीति के जरिए हिंदी को राज्यों पर थोपा जा रहा है। ऐसे में कनिमोझी का यह उत्तर भारत की संघीय संरचना और भाषायी विविधता को संजोने वाले दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।
कौन हैं प्रतिनिधिमंडल में शामिल?
कनिमोझी के नेतृत्व में गठित यह आल पार्टी डेलिगेशन स्पेन, ग्रीस, स्लोवेनिया, लातविया और रूस की यात्रा पर है। इसका उद्देश्य है—पाकिस्तान के खिलाफ भारत की आतंकवाद-रोधी नीति को वैश्विक समर्थन दिलाना और आॅपरेशन सिंदूर के तथ्यों से दुनिया को अवगत कराना। प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रमुख सदस्य हैं: राजीव राय (समाजवादी पार्टी), मियां अल्ताफ अहमद (नेशनल कॉन्फ्रेंस), बृजेश चौटा (भाजपा), प्रेम चंद गुप्ता (राजद), अशोक कुमार मित्तल (आप), पूर्व वरिष्ठ राजनयिक मंजीव एस. पुरी एवं जावेद अशरफ।
“हमारी भाषा नहीं, हमारी विविधता हमारी पहचान है।”
कनिमोझी का यह बयान न केवल एक प्रश्न का उत्तर था, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक, बहुभाषी और बहु-सांस्कृतिक पहचान का सार भी था। जब दुनिया बहसों में उलझी है कि किसी देश की पहचान किस भाषा से होनी चाहिए, तब भारत की ओर से यह उत्तर पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बनकर उभरा है। “हमारी भाषा नहीं, हमारी विविधता हमारी पहचान है।”