New Delhi/Tehran

New Delhi/Tehran : पिछले कुछ हफ्तों में इजराइल और अमेरिका के बीच सैन्य तनावों के साए में, ईरान ने एक बेहद गंभीर रणनीतिक कदम उठाने की तैयारी की थी ऐसा दावा अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरानी नौसेना ने अपने जंगी जहाजों में पानी के भीतर बिछाई जाने वाली बारूदी सुरंगें लोड की थीं, जिनका संभावित लक्ष्य था हॉर्मुज जलडमरूमध्य। वो संकरी समुद्री राह जिससे दुनिया के करीब 20% तेल और गैस की आपूर्ति होती है।

हॉर्मुज : सिर्फ 34 किलोमीटर का गलियारा, लेकिन पूरी दुनिया की ऊर्जा सप्लाई का रास्ता

फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाला यह संकीर्ण जलमार्ग रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। सऊदी अरब, कतर, यूएई, इराक और कुवैत समेत कई तेल निर्यातक देश इसी रास्ते से वैश्विक ऊर्जा बाजारों तक अपना कच्चा तेल भेजते हैं। भारत, चीन और यूरोप की ऊर्जा निर्भरता इस मार्ग पर काफी हद तक आधारित है।

क्या सचमुच बंद करने वाला था ईरान यह रास्ता?

13 जून को इजराइल के हमलों और 22 जून को अमेरिका की जवाबी कार्रवाई के बीच ईरान की यह गतिविधि सामने आई। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि या तो ईरान वाकई में हॉर्मुज को बंद करने की तैयारी में था, या यह एक रणनीतिक साइकोलॉजिकल वॉरफेयर थी, ताकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों पर दबाव बनाया जा सके। इस संदेह को और बल तब मिला, जब 22 जून को ईरानी संसद ने हॉर्मुज को बंद करने का एक प्रस्ताव पारित किया। हालांकि इस पर अंतिम मुहर अभी तक देश की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल द्वारा नहीं लगाई गई है।

तेल सप्लाई जारी, लेकिन संकट टला नहीं

फिलहाल हॉर्मुज जलडमरूमध्य से तेल का आवागमन सामान्य रूप से चल रहा है और वैश्विक बाजारों में कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। फिर भी अमेरिका की नौसेना, विशेषकर पांचवां बेड़ा जो बहरीन में तैनात है, पूरी तरह अलर्ट मोड पर है। उल्लेखनीय है कि जब हाल ही में ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ, तो अमेरिका ने अपने एंटी-माइन जहाजों को एहतियातन क्षेत्र से हटा लिया था, ताकि वे किसी संभावित ईरानी हमले में क्षतिग्रस्त न हों।

भारत और एशिया के लिए क्या है इसका मतलब?

भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 80% से अधिक आयात करता है, के लिए हॉर्मुज जलडमरूमध्य की स्थिरता बेहद जरूरी है। इसी तरह चीन और जापान जैसे देश भी इस मार्ग पर निर्भर हैं। यदि यह जलमार्ग कभी बाधित होता है, तो इसका सीधा असर तेल की कीमतों, आपूर्ति शृंखलाओं और वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर पड़ेगा।

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