Power Struggle : बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जिसे स्थिरता और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी मिली थी, अब खुद अस्थिरता का शिकार होती नजर आ रही है। इसका सबसे बड़ा संकेत है विदेश सचिव मोहम्मद जाशिम उद्दीन को केवल आठ महीने में हटाए जाने की तैयारी। यह फैसला सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे राजनीतिक संकेत छुपे हैं।
क्या है असली कारण?
1. आंतरिक सत्ता संघर्ष :
मुहम्मद यूनुस, जो वर्तमान में सरकार के प्रमुख सलाहकार हैं, और विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन, दोनों के साथ जाशिम उद्दीन के संबंध तनावपूर्ण थे। सूत्रों के अनुसार, महत्वपूर्ण विदेश नीति फैसलों में जाशिम उद्दीन को नजरअंदाज किया जा रहा था।
2. रोहिंग्या शरणार्थी नीति पर टकराव :
यूनुस और एनएसए खलीलुर रहमान संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर “मानवीय गलियारा” और “सुरक्षित क्षेत्र” स्थापित करने की नीति पर काम कर रहे हैं। जाशिम उद्दीन ने इस योजना का विरोध किया, क्योंकि उनका मानना है कि इससे बांग्लादेश की सीमाओं पर सुरक्षा खतरा बढ़ेगा, और यह देश की संप्रभुता पर आंच ला सकता है। सेना भी इस नीति से असहमत है, जिससे यह साफ होता है कि उद्दीन और सेना की सोच एक जैसी है।
3. सेना बनाम यूनुस सरकार :
सेना और यूनुस के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान यूनुस की विदेश नीति, खासकर म्यांमार के प्रति नरम रुख से नाखुश हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, सेना ने राजधानी ढाका में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है, जिससे तख्तापलट की अटकलें लगाई जा रही हैं।
अब तक क्या-क्या हुआ?
प्रोथोम अलो जैसी प्रमुख बंगाली मीडिया रिपोर्टों में खुलासा हुआ कि विदेश सचिव का पद होते हुए भी टोक्यो में सचिव-स्तरीय बैठक की अगुवाई किसी और ने की। पिछले 12 दिनों में जाशिम उद्दीन किसी भी अंतर-मंत्रालयी बैठक में नहीं देखे गए। सूत्रों ने यह भी कहा कि वे अब पारंपरिक कार्यभार से लगभग बाहर हो चुके हैं, और बस प्रतीक्षा में हैं कि उन्हें औपचारिक रूप से हटाया जाए।
संभावित बदलाव
अमेरिका में बांग्लादेश के राजदूत असद आलम सियाम को नया विदेश सचिव बनाए जाने की चर्चा। 20 जून तक वे पदभार संभाल सकते हैं। तब तक रुहुल आलम सिद्दीकी कार्यवाहक सचिव होंगे। संभावना है कि जाशिम उद्दीन को किसी देश में राजदूत या विदेश सेवा अकादमी के रेक्टर के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, एक तरह से शांतिपूर्ण ‘साइडलाइनिंग’। मुहम्मद यूनुस के सामने मुख्य चुनौतियां हैं, सेना का अविश्वास, तख्तापलट की आशंका और सरकार और सेना में नीतिगत दरारें।
देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाए गए
अंतरिम सरकार से अपेक्षा थी कि वह जल्द निष्पक्ष चुनाव कराएगी, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं दिख रही। हाल के हफ्तों में कई घटनाओं ने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाए हैं। हाल के दिनों में अल्पसंख्यकों पर हमले और कट्टरपंथ का उभार देखने को मिला है। भारत और अन्य पड़ोसियों से रिश्तों में गिरावट साफ दिखाई दे रही है। भारत, जो हमेशा बांग्लादेश का रणनीतिक साझेदार रहा है, यूनुस की नीति से असहज नजर आ रहा है।
यूनुस सरकार सेना और आम जनता दोनों के आक्रोश का हो सकती है शिकार
यह घटनाक्रम सिर्फ प्रशासनिक फेरबदल नहीं, बल्कि संविधानिक और सैन्य संतुलन के टूटने का संकेत है। यूनुस सरकार अगर जल्दबाजी में विवादास्पद नीतियां लागू करती है तो यह सेना और आम जनता दोनों के आक्रोश का कारण बन सकती हैं। अगर स्थिति नहीं संभली, तो सिविल-सैन्य टकराव एक बड़े राजनीतिक संकट का रूप ले सकता है। बांग्लादेश में विदेश सचिव को आठ महीने में हटाया जाना अपने-आप में सामान्य बात नहीं। यह सत्ता के भीतर चल रही गहरी राजनीतिक खींचतान और असहमति का प्रतीक है। मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अब एक नाजुक मोड़ पर खड़ी है, जहाँ एक ओर सेना की नाराजगी है, दूसरी ओर कूटनीतिक विफलताएँ, और तीसरी तरफ देश के भीतर कानून-व्यवस्था की चुनौती। यदि समय रहते समाधान नहीं खोजा गया, तो बांग्लादेश एक और राजनीतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संकट के दौर में प्रवेश कर सकता है।
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