Washington

Washington : पश्चिम एशिया में चल रहे भू-राजनीतिक तनाव के बीच अमेरिका ने अपनी सामरिक सैन्य तैयारियों को तेज कर दिया है। अमेरिकी वायुसेना के सबसे अत्याधुनिक और खतरनाक माने जाने वाले इ-2 ‘स्पिरिट’ स्टेल्थ बॉम्बर्स को हिंद महासागर में स्थित डिएगो गार्सिया एयरबेस पर रवाना किया गया है। यह तैनाती सामान्य बमवर्षक अभ्यास से हटकर रणनीतिक उद्देश्य के संकेत दे रही है।

फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट बन सकता है संभावित निशाना?

सूत्रों के मुताबिक यह मिशन ईरान के फोर्डो यूरेनियम संवर्धन केंद्र पर संभावित हमले की तैयारी से जुड़ा हो सकता है। यह केंद्र जमीन से 90 मीटर गहराई में स्थित है और इसे पारंपरिक बमों से नष्ट करना लगभग असंभव माना जाता है। लेकिन अमेरिका के पास जीयूबी (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग बाम्बस) जैसे हथियार हैं, जिन्हें इ-2 बॉम्बर्स से गिराया जा सकता है। इन बमों की मारक क्षमता सैकड़ों फीट भीतर तक मानी जाती है।

इ-2 : अमेरिका की ‘फर्स्ट-स्ट्राइक’ रणनीति की रीढ़

इ-2 स्पिरिट, अमेरिकी वायुसेना का सबसे गोपनीय और तकनीकी रूप से परिष्कृत बमवर्षक विमान है। इसकी स्टेल्थ तकनीक इसे दुश्मन के रडार से पूरी तरह अदृश्य बना देती है। यह 30,000 पाउंड तक घातक हथियार ले जाने में सक्षम है और इसकी आॅपरेशनल रेंज करीब 9,600 किलोमीटर है। जो इसे दुनिया के किसी भी हिस्से में गुपचुप हमला करने में सक्षम बनाती है।

क्यों खास है डिएगो गार्सिया?

डिएगो गार्सिया, ब्रिटिश इंडियन ओशन टेरिटरी में स्थित एक सामरिक अमेरिकी अड्डा है, जिसकी स्थिति फारस की खाड़ी और दक्षिण एशिया के बीच बेहद रणनीतिक मानी जाती है। अमेरिका अतीत में अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जैसे अभियानों के दौरान यहीं से बड़े हवाई हमलों का संचालन कर चुका है। हालांकि अमेरिकी रक्षा विभाग या व्हाइट हाउस ने फोर्डो पर संभावित हमले की औपचारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन इ-2 की तैनाती एक सटीक संकेत है कि अमेरिका किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तैयारी में है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम या तो इजराइल-ईरान टकराव की स्थिति में एक बैकअप विकल्प के रूप में लिया गया है, या फिर रणनीतिक दबाव बनाने की कूटनीतिक चाल है। Washington

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