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अफगानिस्तान के बाद अब श्रीलंका पर आई नई मुसीबत!

भारतीय मीडिया में आजकल सबसे ज्यादा चर्चा अफगानिस्तान की है। पड़ोसी मुल्क होने के नाते ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन क्या अफगानिस्तान की तुलना में श्रीलंका हमारे ज्यादा करीब नहीं है?

बहुत कम लोगों को पता है कि श्रीलंका में वित्तीय आपातकाल (इकोनॉमिक इमरजेंसी) लगा दि गई है। श्रीलंका, घोर आर्थिक संकट से गुजर रहा है।

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क्या इससे चौंकने की जरूरत है?
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था एशियाई देशों में सबसे अच्छी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है। श्रीलंका की प्रतिव्यक्ति आय भारत से दोगुनी है। श्रीलंका के सामाजिक संकेतक (social indicators) केरल के बराबर हैं। कई हिस्से तो केरल से भी बेहतर हैं।

2.1 करोड़ की आबादी वाला संपन्न देश अचानक इतने बड़े आर्थिक संकट में कैसे फंस गया? इस सवाल का जवाब आपको चौंका सकता है। हालांकि, उससे पहले यह समझना जरूरी है कि यह आर्थिक संकट कितना गहरा है।

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले श्रीलंकाई रुपये की कीमत फिलहाल 230 हो गई है। यानी एक डॉलर पाने के लिए 230 श्रीलंकाई रुपये खर्च करने होंगे। आमतौर पर यह 190 से 195 के बीच हुआ करती थी।

श्रीलंका में महंगाई, कालाबाजारी और जमाखोरी अपने चरम पर है। विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे जा रहा है और यह घटकर 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है। खाने-पीने की चीजों से लेकर अन्य सामान की सप्लाई पर बुरा असर पड़ा है। इस हालात के मद्देनजर श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी है।

सेना को अधिकारी को दी जमाखोरी से निपटने की जिम्मेदारी
राष्ट्रपति ने कालाबाजारी से निपटने के लिए सेना के अधिकारी मेजर जनरल एनडीएसपी निवोनहेला को देश का कंट्रोलर ऑफ सिविल सप्लाई नियुक्त किया है। इनका काम देश के गोदामों और ऐसे ठिकानों पर रेड करना है जहां अवैध तौर पर जमाखोरी हो रही है।

निवोनहेला का काम यह देखना है कि चीनी, चावल, किरॉसिन, खाद्य तेल जैसी आवश्यक चीजों की अवैध जमाखोरी न हो। फिलहाल, श्रीलंका में इन चीजों की सप्लाई या तो रुक गई है या बहुत कम हो गई है। आम इस्तेमाल की इन चीजों में से ज्यादातर का श्रीलंका में आयात किया जाता है।

रुपये की लगातार गिर रही कीमत के चलते इन चीजों का आयात करने वाले व्यापारियों के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है। यही वजह है कि वे इन चीजों की जमाखोरी करने को मजबूर हैं। आम जनता, महंगाई और लगातार कम हो रही सप्लाई के वजह से इन चीजों की होर्डिंग कर रही है। दुकानों के सामने लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं, जबकि इस दौरान श्रीलंका में कोरोना भी तेजी से फैल रहा है।

आयात पर लगा प्रतिबंध
रुपये की गिरती कीमत और विदेशी मुद्रा भंडार में आ रही कम के चलते श्रीलंका सरकार ने आयात पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। बता दें कि एशियाई देशों में श्रीलंका पहला ऐसा देश था जिसने उदारीकरण को सबसे पहले अपनाया था। यही वजह है कि आर्थिक तौर पर वह एशिया के ज्यादातर देशों से बेहतर स्थिति में रहा है।

निर्यात करने वाले व्यापारी अपने धन को अपने बैंक खाते में जमा नहीं करा सकते। क्योंकि, निर्यात के बदले उन्हें डॉलर में भुगतान मिलता है जिसे श्रीलंका के सेंट्रल बैंक में जमा कराना पड़ रहा है। लोगों से कहा जा रहा है कि वह ईंधन का सोच समझकर इस्तेमाल करें।

क्यों संकट में आई श्रीलंका की अर्थव्यवस्था
1. इस संकट का पहला कारण पर्यटन है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदाना सबसे ज्यादा है। पिछले डेढ़ साल से कोरोना ने दुनिया को अपनी जद में ले रखा है और इसने श्रीलंका के पर्यटन उद्योग को भी प्रभावित किया है।

फिलहाल श्रीलंका में कोरोना अपने चरम पर है। पिछले दो हफ्तों से कोरोना की वजह से रोजाना 200 के करीब मौतें हो रही हैं। 2.1 करोड़ की आबादी में 200 मौतें भयावह हैं। रोजाना करीब 5000 लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। दिल्ली की आबादी के बराबर वाले देश में रोजाना इतने लोगों का कोरोना से मरना और संक्रमित होना खतरनाक संकेत है। जबकि, श्रीलंका का पब्लिक हेल्थ सिस्टम भारत के केरल राज्य से भी बेहतर है। इस संकट ने श्रीलंका में पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ दी है।

2. डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट की वजह से मुद्रास्फीति बढ़ रही है जिससे महंगाई बढ़ रही है। साथ ही जमाखोरी और कालाबाजारी का खतरा बढ़ता जा रहा है।

3. इस आर्थिक संकट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार श्रीलंका की सरकार है। श्रीलंका सरकार के एक फैसले ने वहां के किसानों की एक झटके में ही कमर तोड़ दी है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने एक दिन अचानक घोषणा कर दी कि देश में अब पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती की जाएगी। कीटनाशक, यूरिया, खाद सब कुछ अचानक बिकना बंद हो गए।

इस फैसले के बाद श्रीलंका में चाय पत्ती की खेती में 50% की गिरावट आई। बता दें कि श्रीलंका के कुल निर्यात में चाय का योगदान 10% है। सिर्फ चाय के निर्यात में कमी से सरकार को 1.25 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।

इसके अलावा इलायची, दालचीनी, कालीमिर्च, चावल और सब्जियों का उत्पादन आधे से भी कम हो गया है। दुनिया में दालचीनी के कुल निर्यात में 85% हिस्सा अकेले श्रीलंका का था, जो गिरकर आधा हो चुका है।

हालांकि, इसके बाद भी सरकार अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। सरकार अभी भी किसानों से यही कह रही है कि जल्द ही उन्हें जैव उर्वरक दिया जाएगा, ताकि वह ऑर्गेनिक खेती जारी रख सकें। सरकारें जब मनमानी पर उतर आती हैं और विज्ञान की जगह विचारधारा से प्रभावित होकर फैसले करने लगती हैं, तो ऐसे ही भयावह नतीजे सामने आते हैं।

-संजीव श्रीवास्तव

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