International News : यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय मंच पर रूस को अलग-थलग करने की अमेरिका की कोशिशों के बीच अब वॉशिंगटन की नजर भारत-रूस के तेल व्यापार पर टेढ़ी हो गई है। अमेरिकी सीनेट में एक ऐसा प्रस्तावित कानून आने वाला है, जिसके पारित होने पर भारत और चीन जैसे देशों से आने वाले उत्पादों पर 500 प्रतिशत तक का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाया जा सकेगा। अमेरिका का यह कदम भारत के लिए आर्थिक मोर्चे पर भारी साबित हो सकता है। इस विधेयक को रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम और डेमोक्रेट रिचर्ड ब्लूमेंथल ने मिलकर तैयार किया है और इसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन भी प्राप्त है।
विधेयक का उद्देश्य साफ है—जो देश रूस से व्यापार करते हैं, खासकर सस्ते कच्चे तेल की खरीद करते हैं, उन्हें अमेरिकी व्यापार प्रणाली में ‘पेनल्टी’ झेलनी होगी। ग्राहम ने एबीसी न्यूज से बातचीत में दो टूक कहा – अगर कोई देश रूस से ऊर्जा उत्पाद खरीद रहा है लेकिन यूक्रेन का समर्थन नहीं कर रहा है, तो अमेरिका को उसके उत्पादों पर 500% टैरिफ लगाने का अधिकार मिलना चाहिए। भारत और चीन मिलकर पुतिन के तेल का लगभग 70% हिस्सा खरीद रहे हैं। इससे रूस की युद्ध-आधारित अर्थव्यवस्था को संबल मिलता है।
अगस्त में विधेयक पेश होने की संभावना
यह प्रस्तावित बिल संभवतः अगस्त में अमेरिकी सीनेट में पेश किया जाएगा। यदि इसे बहुमत समर्थन मिल गया, तो भारत और चीन को सबसे पहले झटका लगेगा, क्योंकि दोनों देश रियायती रूसी तेल के प्रमुख खरीदार हैं। खास बात यह है कि यह चर्चा ऐसे वक्त पर हो रही है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा रहा है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में कहा था कि दोनों देशों के बीच ट्रेड डील “बहुत नजदीक” है, लेकिन कृषि से जुड़ी कुछ मांगों पर मतभेद भी सामने आए हैं।
भारत को हो सकता है भारी नुकसान
अगर यह विधेयक पारित होता है, तो भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले फार्मास्युटिकल्स, वस्त्र और आईटी सेवाओं पर भारी शुल्क लग सकता है। इससे न केवल भारत के उत्पाद अमेरिका में महंगे हो जाएंगे, बल्कि वहां इनकी मांग भी घट सकती है। यूक्रेन युद्ध के तीसरे वर्ष में भारत ने रूस से लगभग 49 अरब यूरो (करीब 52 अरब डॉलर) का कच्चा तेल खरीदा है। परंपरागत रूप से भारत मध्य पूर्व से तेल आयात करता रहा है, लेकिन फरवरी 2022 के बाद रूस से आयात में जबरदस्त उछाल आया।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, जिसके चलते मास्को ने भारत को गहरे डिस्काउंट पर तेल बेचना शुरू किया। इस सस्ते तेल ने भारत को आर्थिक और रणनीतिक सुरक्षा प्रदान की। कच्चे तेल की कीमतों पर नियंत्रण बना, रिफाइंड उत्पादों का निर्यात बढ़ा और देश का आयात बिल घटा। CREA (Centre for Research on Energy and Clean Air) की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने फरवरी 2022 से मार्च 2025 के बीच रूस से लगभग 112.5 अरब यूरो (करीब 118 अरब डॉलर) का कच्चा तेल खरीदा। युद्ध से पहले यह हिस्सेदारी 1% से भी कम थी, जो अब 35% से अधिक हो गई है। इस कदम से भारत को 25 अरब डॉलर तक की बचत हुई है।
बता दें कि यह विधेयक मार्च 2024 में ही प्रस्तावित कर दिया गया था, लेकिन व्हाइट हाउस के रुख के कारण यह अटक गया। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट बताती है कि ट्रंप ने इसकी भाषा में नरमी लाने के लिए ‘shall’ (करना होगा) की जगह ‘may’ (किया जा सकता है) जैसे शब्दों का उपयोग सुझाया था, ताकि लचीलापन बना रहे। अब जबकि चुनावी माहौल गरम है, ट्रंप ने हाल ही में गोल्फ खेलते हुए ग्राहम को इस विधेयक को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी है। ग्राहम ने ABC को बताया, कल पहली बार ट्रंप ने कहा— अब आपके बिल को आगे ले जाने का समय आ गया है। International News
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