International News : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक के बाद एक सफलता मिल रही है। ईरान के चाबहार बंदरगाह के बाद अब म्यांमार का बंदरगाह भी भारत ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। हाल ही में म्यांमार और भारत सरकार के बीच इस समझौते को मंजूरी मिल गई है। आपको बता दें कि विदेश मंत्रालय ने म्यांमार के सिटवे में कलादान नदी पर मौजूद सिटवे बंदरगाह के संचालन को संभालने के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड(IGPL) के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
Sittwe Port में मिली ऑपरेशन की पूरी कमान
भारत की ये उपलब्धि अंतरराष्ट्रीय सामरिक दृष्टि से काफी बड़ी उपलब्धि के रूप में देखी जा रही है। ईरान के चाबहार पोर्ट के बाद भारत का ये दूसरा विदेशी अधिग्रहण है । इसे समुद्र में भारत की उपस्थिति बढ़ाने के रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस पोर्ट के रास्ते भारत को उत्तर पूर्व के राज्यों तक एक नया मार्ग भी मिलेगा, जिससे सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम होगी।
चीन के समुद्री वर्चस्व के सपने को किया चकनाचूर
बता दें कि इस बंदरगाह का संचालन अपने हाथ में लेकर भारत ने चीन के सपने को भी चकनाचूर कर दिया है । चीन म्यांमार के पश्चिमी तट पर क्याऊकफ़ियू बन्दरगाह पर निर्माण कार्ये कर रहा है और यह निर्माण कार्य भारत की चिंता बढ़ा रहा था। ऐसे में अब म्यांमार में सिटवे बंदरगाह में इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी कार्यरत हो गई है। भारत और म्यांमार के बीच ये समझौता क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को भी बढ़ाने में सहयोग देगा ।
सिटवे बंदरगाह पर हुआ समझौता
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सिटवे बंदरगाह पर सागरमाला डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड की सहायक कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय का पूर्ण स्वामित्व होगा। इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भारत की होगी। बंदरगाह पर लीज व्यवस्था लागू की गई है जो र्रिन्यू होती रहेगी। ईरान के चाबहार में टर्मिनल 9 पर सीमित नियंत्रण के साथ सिटवे बंदरगाह पर पूर्ण परिचालन का अधिकार भारतीय वर्चस्व को दर्शाता है । भारत की इस उपलब्धि से चीन के हिंद महासागर में एक छत्र राज के सपने को बड़ी चोट पहुंची है।
भारत को क्या होगा फायदा
यह बंदरगाह कलादान परियोजना का हिस्सा है जिसका मकसद म्यांमार में Sittwe Port और भारतीय राज्य मिजोरम के बीच जल मार्ग और सड़क नेटवर्क को बढ़ाना है। मिजोरम तक जोड़ने वाले इस रूट के तैयार होने के बाद भारत के लिए उत्तर पूर्व में मौजूद राज्यों तक सप्लाई पहुंचाने में आसानी होगी। इससे न केवल पूर्वोत्तर राज्यों में सामान भेजने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग मिलेगा, बल्कि कोलकाता से मिजोरम और उससे आगे तक की लागत और दूरी को भी काफी कम कर देगा। इससे भूटान और बांग्लादेश के बीच स्थित सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता भी कम हो जाएगी, जिसे चिकन नेक के नाम से जाना जाता है। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा।
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