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भारत के लिए धोखेबाज साबित हो रहा है श्रीलंका, बैठा चीन की गोद में

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International News : भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका धोखेबाज साबित हो रहा है। कर्ज के बोझ के नीचे दबे हुए श्रीलंका को भारत ने खूब मदद की। फिर भी श्रीलंका चीन की गोद में बैठने की लगातार गलती कर रहा है। भारत बड़ी गंभीरता से श्रीलंका की धोखेबाजी को देख रहा है तथा श्रीलंका की धोखा देने वाली फितरत को समझ भी रहा है। देखना यह है कि सभी देशों को धोखा देने वाली चीन की चाल को श्रीलंका कब समझ पाएगा?

क्या है पूरा मामला

श्रीलंका ने भारत को कैसे और क्यों धोखा दिया है इसको एक मीडिया रिपोर्ट के जरिए समझना जरूरी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने बुधवार को घोषणा की है, कि चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग (Li Qiang) से मुलाकात और आपसी बैठक के बाद उन्होंने कोलंबो में एयरपोर्ट और हंबनटोटा बंदरगाह (Hambantota port) के विकास के लिए सहमति जताई है। यही श्रीलंका इससे पहले इस प्रकार की सहमति भारत को दे चुका है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री का ये वादा भारत के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि हंबटोटा में रणनीतिक गहरे समंदर में बंदरगाह बनाने का मतलब है, कि चीन को हिंद महासागर में एक और अड्डा मिलना, जो जाहिर तौर पर भारत के लिए अच्छी बात नहीं है।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गनवार्डन ने चीनी प्रधानमंत्री Li Qiang के साथ बैठक के बाद कहा है, कि चीन, श्रीलंका का का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है, जो श्रीलंका के बाहरी ऋण के पुनर्गठन में “सहायता” करेगा, जो 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर के IMF बेलआउट पैजेक दो जारी रखने के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है। लिहाजा, सवाल उठ रहे हैं, कि क्या चीन ने श्रीलंका को ऋण पुनर्गठन में “सहायता” के लिए प्रेशर बनाकर एयरपोर्ट और बंदरगाह के लिए सौदा हासिल करने की कोशिश की है। International News

ऋण पुनर्गठन पर बीजिंग की स्थिति फिलहाल सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन श्रीलंकाई अधिकारियों ने कहा है, कि चीन अपने ऋणों में कटौती करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन ऋण चुकाने के समय को बढ़ा सकता है और ब्याज दरों को एडजस्ट कर सकता है।

आपको बता दें, कि साल 2022 में श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया था, जिसके बाद उसने अपने 46 अरब डॉलर के ऋण को चुकाने से असमर्थता जताते हुए खुद को डिफॉल्ट घोषित कर दिया था। जिसके बाद श्रीलंका में हिंसक प्रदर्शन हुए थे, और तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा था।

माना जा रहा है, कि श्रीलंका के डिफॉल्ट होने के पीछे की वजह चीनी ऋण जाल ही है। लेकिन, अब प्रधानमंत्री गनवार्डन के कार्यालय ने कहा है, कि चीन के प्रधान मंत्री ली कियांग ने वादा किया है, कि चीन “श्रीलंका की ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया में लगातार सहायता करेगा और श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था विकसित करने में मदद करेगा।” ज्यादा जानकारी दिए बगैर श्रीलंका के प्रधानमंत्री गनवार्डेन ने कहा, कि बीजिंग ने कोलंबो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और हंबनटोटा बंदरगाह को “विकसित करने के लिए सहायता” की पेशकश की है। श्रीलंका के संप्रभु ऋण डिफ़ॉल्ट के बाद से, कोलंबो हवाई अड्डे का जापानी-कर्ज फिलहाल रुका हुआ है।

भारत की चिंता बढ़ाई

बता दें कि श्रीलंका ने हंबनटोटा के दक्षिणी बंदरगाह को 2017 में एक चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी को 1.12 अरब डॉलर में 99 साल के लीज पर सौंप दिया था, जिससे भारत में सुरक्षा चिंताएं पैदा हो गईं। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों चिंतित हैं, कि द्वीप के दक्षिणी तट पर हंबनटोटा में चीनी पैर जमाने से हिंद महासागर में चीन की नौसैनिक बढ़त काफी बढ़ सकती है। हालांकि, श्रीलंका ने जोर देकर कहा है, कि उसके बंदरगाहों का उपयोग किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा, लेकिन नई दिल्ली ने हंबनटोटा में चीनी जासूसी जहाजों को बुलाने पर गहरी आपत्ति जताई है। सबसे हैरानी की बात ये है, कि श्रीलंका उस वक्त भी भारत के खिलाफ काम कर रहा है, जब आर्थिक संकट के समय जब चीन ने श्रीलंका का साथ छोड़ दिया था, तब भारत ने 4 अरब डॉलर की मदद अपने पड़ोसी देश को दी थी। श्रीलंका धोखेबाज के साथ-साथ एहसान फरामोश भी साबित हो रहा है।

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