International Space Station : इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) आज अंतरिक्ष में विज्ञान और मानव सहयोग का सबसे बड़ा प्रतीक है। लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी नींव कब रखी गई? 25 जनवरी 1984 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने NASA को अंतरिक्ष में स्थायी स्टेशन बनाने का निर्देश दिया था, जिससे वैश्विक वैज्ञानिक अनुसंधान को नई ऊंचाई मिल सके। इसके बाद अमेरिका और रूस ने हाथ मिलाया और 20 नवंबर 1998 को ISS का पहला मॉड्यूल “जारिया कंट्रोल मॉड्यूल” लॉन्च किया गया। यह कजाखस्तान के बैकानूर लॉन्च पैड से छोड़ा गया था।
2000 मे पहली बार पहुंचा इंसानों का क्रू
इसके महज दो हफ्ते बाद अमेरिका ने अपना पहला मॉड्यूल “Unity” भेजा जिसे जारिया से जोड़ा गया। फिर रूस ने 2000 में ज़्वेज़्दा मॉड्यूल भेजा और इसी से शुरू हुई अंतरिक्ष की इस प्रयोगशाला की असली रचना। 2 नवंबर 2000 को पहली बार इंसानों का एक क्रू (बिल शेफर्ड, यूरी गिडजेको और सर्गेई क्रिकालेव) ISS पहुंचा और तब से लेकर आज तक अंतरिक्ष स्टेशन कभी खाली नहीं रहा।
धीरे-धीरे आकार लेता रहा अंतरिक्ष स्टेशन
इसके बाद एक-एक कर अमेरिका, यूरोप, जापान जैसे देशों ने अपने मॉड्यूल, लैब और सोलर पैनल्स भेजे जिससे यह स्टेशन धीरे-धीरे आकार लेता गया। नासा का “डेस्टिनी” मॉड्यूल, यूरोप की “कोलंबस” लैब, जापान की “कीबो” लैब इन सभी ने अंतरिक्ष में विज्ञान के लिए एक नया क्षितिज खोला। धीरे-धीरे स्टेशन में रहने की सुविधाएं बेहतर होती गईं और अंतरिक्ष यात्री महीनों तक यहां रहने लगे। अब तक 26 देशों के 283 अंतरिक्ष यात्री यहां जा चुके हैं। रूस के ओलेग कोनोनेंको ने सबसे ज्यादा 1,111 दिन अंतरिक्ष में बिताने का रिकॉर्ड बनाया है।
भारत तेजी से बढ़ रहा है आगे
अब जबकि ISS को 2030 में रिटायर किया जाना है, कई निजी कंपनियां जैसे Axiom Space, Blue Origin और Voyager Space अपने स्पेस स्टेशन के निर्माण की तैयारियों में जुट चुकी हैं। चीन ने पहले ही अपना स्टेशन बना लिया है और भारत भी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ISS न सिर्फ तकनीक का चमत्कार है, बल्कि यह उस वैश्विक सहयोग की मिसाल है जो अंतरिक्ष में सीमाओं से परे जाकर इंसानियत की सेवा कर रहा है। International Space Station
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